फनी बाल कविता : गधेरामजी

प्रभुदयाल श्रीवास्तव

सोमवार, 15 सितम्बर 2014 (11:54 IST)
गधेरामजी थैली लेकर, पहुंचे मिठया की दुकान।
बोले... तोलो गरम जलेबी, हिला-हिलाकर अपने कान।
 
गरम जलेबी पांच किलो ले, थैली अपनी भरवाई।
किंतु हाय! रुपयों की थैली, पॉकिट से गायब पाई।
 


 
भालू मिठया सीधा-सादा, बोला कोई बात नहीं।
यह मत समझो, मुझको तुम पर, भैयाजी विश्वास नहीं।
 
किंतु यार यह गधेरामजी, नाम तुम्हारा ठीक नहीं।
गधे नाम वालों को जग में, है नसीब भी भीख नहीं।
 
थैला रख दो अभी यहीं पर, दौड़ लगाकर घर जाओ।
दो सौ रुपए ला दो मेरे, फिर थैला लेकर जाओ।
 
जबसे गधेरामजी अपनी, किस्मत पर चिल्लाते हैं।
ढेंचू-ढेंचू बोल-बोलकर, अपनी व्यथा सुनाते हैं।

 

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