बाल कविता : लड़की है घर की मुस्कान‌

प्रभुदयाल श्रीवास्तव

मंगलवार, 23 सितम्बर 2014 (14:38 IST)
मुझे काम कुछ करने ना दे,
यह गुड़िया कितनी शैतान। 
 
पढ़ने बैठूं पढ़ने ना दे,
लिखने बैठूं कलम छीन ले। 
अगर कहीं कुछ बोलूं तो फिर‌,
खींचे मेरे दोनों कान। 
 
खेल खेलना मुश्किल कर दे,
बल्ला-गेंद छुपाकर रख दे। 
अगर कहीं कुछ पूछा मैंने,
आ जाता जैसे तूफान। 
 
उठा-उठाकर फेंके कपड़े,
रंग लेकर गालों पर चुपड़े। 
गुड़िया या आफत की पुड़िया। 
कैसी लड़की हे भ‌गवान। 
 
फिर भी मुझ‌को गुड़िया प्यारी,
छोटी बिट्टू राजदुलारी। 
अम्मा-बापू दोनों कहते,
लड़की है घर की मुस्कान। 
 

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