शिक्षकों को समर्पित

गुरुवार, 4 सितम्बर 2014 (14:56 IST)
- संगीता श्रीवास्तव


                                                                 Teachers Day
समाज की विसंगतियों के बीच
कभी-कभी
विक्षुब्ध हो उठता है मन
यह देखकर कि
मनों बोझ उठाने पर भी
घोड़ों पर कोड़े फटकारे जाते हैं
और
गधे गुलाब जामुन खा रहे हैं।
विक्षुब्ध क्यों हो?
पत्तियों-सा ये जीवन
तुमने ही चुना था
तुमने ही चाहा था
सूरज की तपती किरणों को झेलकर
दुनिया को छाया दोगे।
तुमने ही स्वीकारा था कि
पर्यावरण का जहरीलापन पीकर
उसे प्राणवायु दे जाओगे।
चुनाव तुम्हारा ही था
नहीं तो
फूलों-सी सुन्दरता, आकर्षण और पराग
तो तुम में भी था
तुम भी बन सकते थे
किसी देवता के गले का हार
परंतु
निर्माल्य का मूल्य ही क्या है?
एक बार फिर सोचो
पूजा में तो स्थान तुम्हारा भी है
कलश में दीपक के अंधियारे को
तुमने ही तो अपनी हरियाली दी है।
खुशी मनाओ आज जीकर यह जीवन
क्योंकि
इस संसार को तुम ही तो देते हो
ऑक्सीजन!!!!!
 
 

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