कविता : नए साल! तुम जल्दी आना...

- ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
 
नए साल! तुम जल्दी आना ।
संग में अपने खुशियां लाना ।।
 
छोड़ दिए हैं काम अधूरे 
उसको पूरे करके जाना ।
स्वप्न सलौने अपने हैं
रंगों से है उसे सजाना।।
 
देख रहा हूं मैं तुम को 
चुस्ती-स्फूर्ति लेकर आना।
नए साल! तुम जल्दी आना ।
संग में अपने खुशियां लाना ।।
 
मैं पौधे भी खूब लगाऊंगा 
पानी भी खूब पिलाऊंगा ।
पढ़कर अच्छी-अच्छी बातें 
परीक्षा में भी अव्वल आऊंगा।।
 
बस तुम आना और जगाना
उत्सव-आनंद से भर जाना।
नए साल! तुम जल्दी आना ।
संग में अपने खुशियां लाना ।।
 
दादा-दादी के घर जाऊंगा 
मम्मी-पापा की संगत पाऊंगा।
काका काकी भी प्यारे हैं 
उनका भी मन बहलाऊंगा ।
 
है रिश्ते हंसी-खुशी निभाना 
है प्यार सभी का ही पाना ।
नए साल! तुम जल्दी आना ।
संग में अपने खुशियां लाना ।।

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