बाल कविता : अम्मा की प्यारी बातों को

नहीं बहुत दिन अभी हुए हैं, मोबाइल जब नहीं बने थे। 
लैंडलाइन कहलाने वाले ही, बस टेलीफोन लगे थे। 
एक्सचेंज को नंबर देते, कहते इस पर बात कराओ। 
उत्तर मिलता 'लाइन व्यस्त है', रुककर जरा देर में आओ।
 

 
बाहर आने-जाने वाले, फोन सभी ट्रंक कॉल कहाते। 
कभी-कभी तो घंटों-हफ्तों में भी, बात नहीं कर पाते। 
अगर बात हो बहुत जरूरी, तो अर्जेंट फोन लगवाते। 
बात फटाफट करने वाले, फोन लाइटनिंग कॉल कहाते।
 
लगा लाइटनिंग कॉल यदि तो, पैसा आठ गुना लगता था। 
टेलीफोन लगाने वाले का चेहरा उतरा दिखता था। 
किंतु हाय अब हर हाथों में, घर-घर में भी मोबाइल हैं। 
बूढ़े-बच्चे-युवक सभी अब मोबाइलजी के कायल हैं।
 
पलभर में ही बात जगत के कोने-कोने से हो जाती। 
फोन लगाने-सुनने वाले की फोटो भी अब दिख जाती।
 
जब‌ पढ़ते थे आठ दिनों में, अम्मा के थे खत आ पाते। 
काश! तभी मोबाइल होते, हम उनसे हर दिन बतियाते। 
ये सब साधन पहले होते, अम्मा वाला टेप लगाते। 
अम्मा की प्यारी बातों को काश! आज हम फिर सुन पाते।

 

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