बालगीत : रसीले आम

- रामानुज त्रिपाठी




 
लटक रहे हैं
शाखाओं पर,
हरे-भरे
चटकीले आम।
 
दिख रहे हैं
पत्तों में से,
लटके जैसे
गरम समोसे
 
कुछ अधपके
और कुछ कच्चे,
लाल-सुनहरे
पीले आम।
 
बही हवा जब
झूमी डाली,
छुए भूमि पर
हरी-डाली।
 
लंगड़ा-चौसा
और दशहरी,
मीठे पके
रसीले आम।
साभार - देवपुत्र 
 

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