एक दिन एक चिड़िया के मन में खयाल आया कि सारे लोग होली पर एक-दूसरे को रंग लगाते हैं, तो इस बार वह भी होली मनाएगी। चिड़िया ने पोखर में जाकर देखा तो पानी नहीं था।
गर्मियों की शुरुआत में ही सूखे पोखर को देखकर चिड़िया को लगा कि रंग बने तो ऐसे जिन्हें छुड़ाने में ज्यादा पानी नहीं लगे तो अच्छा।
अपना ही खयाल चिड़िया को जम गया कि वह वैसे रंग से होली नहीं खेलेगी, जिससे सब खेलते हैं। वह अपना रंग बनाएगी। पर मुश्किल थी। चिड़िया के सामने मुश्किल यह थी कि वह रंग कहां से लाएगी। तभी उसे याद आई टेसू के पेड़ की।
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टेसू के पेड़ पर तो कितने ही रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं। क्यों न टेसू (पलाश) के इन फूलों का रंग ले लें। चिड़िया ने टेसू के पास जाकर अपनी बात कही। एक भरे-पूरे पेड़ को अपने फूल देने में क्या हर्जा होता। उसने चिड़िया को टप्प से दो फूल दे दिए।
अब चिड़िया की रंग की दिक्कत भी दूर हो गई। उसने टेसू के फूलों को थोड़े से पानी में भिगोकर रंग बनाया। दूसरे दिन जब रंग बन गया तो चिड़िया बहुत खुश हुई। उसके रंग में से अच्छी महक भी आ रही थी।
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चिड़िया अब तैयार थी होली खेलने के लिए। अब चिड़िया चाहती थी कि वह जंगल से थोड़ी दूर रहने वाले किसान के बेटे पुन्नू को रंग लगाए।
पुन्नू को इसलिए क्योंकि वह चिड़िया के खाने के लिए कुछ अनाज के दाने बापू की नजर चुराकर बिखरा देता था। चिड़िया ने चोंच में थोड़ा-सा रंग भरा और ले जाकर पुन्नू पर डाल दिया।
पुन्नू को पता भी नहीं चला, बस उसे इत्ता भर लगा कि उसके ऊपर कुछ गिरा है। उसने ऊपर देखा कि एक चिड़िया चहक रही है। पर चिड़िया इससे बहुत खुश होकर गा रही थी- होली है, भई होली है।