चाणक्य ने कहा, 'राजन, इंसान की पहचान उसके गुणों से होती है, रूप से नहीं।'
तब चाणक्य ने राजा को दो गिलास पानी पीने को दिया।
फिर चाणक्य ने कहा- 'पहले गिलास का पानी सोने के घड़े का था और दूसरे गिलास का पानी मिट्टी के घड़े का, आपको कौन-सा पानी अच्छा लगा।'
चंद्रगुप्त बोले- 'मटकी से भरे गिलास का।'
नजदीक ही सम्राट चंद्रगुप्त की पत्नी मौजूद थीं, वह इस उदाहरण से काफी प्रभावित हुई।
उन्होंने कहा- 'वो सोने का घड़ा किस काम का जो प्यास न बुझा सके। मटकी भले ही कितनी कुरूप हो, लेकिन प्यास तो मटकी के पानी से ही बुझती है, यानी रूप नहीं गुण महान होता है।'