नाट्‍य प्रस्तुति : स्वच्छता सर्वोपरि...

नाटक - कुसुम अग्रवाल
 

 
पात्र
 
विद्यार्थी- संयम, सलोनी, भाविक, भव्या, स्नेहा, कार्तिक
 
शशांकजी- कक्षा सात के अध्यापक
 
शुक्लाजी- शाला के प्रधानाचार्य।
 
(दृश्य- प्रथम) 
 
(कक्षा सात के कमरे का। सभी बच्चे अपने-अपने स्थान पर बैठे हैं। बच्चे काफी उत्साहित लग रहे हैं। शशांकजी उन्हें कुछ समझा रहे हैं।)
 
शशांकजी- बच्चों! यह तो तुम सबको पता ही होगा कि कल हमारे विद्यालय का स्‍थापना दिवस है। 
 
सभी बच्चे- (एकसाथ) जी हां। 
 
शशांकजी- हर बार की तरह इस बार भी हम यह दिन मनाएंगे। लेकिन अबकी बार अंदाज कुछ हटकर होगा। 
 
संयम- तो क्या अबकी बार सांस्कृतिक संध्या नहीं होगी? 
 
शशांकजी- होगी, परंतु कुछ‍ दिनों बाद और उसमें भाग लेने के लिए विद्यार्थियों का चयन कुछ अलग तरीके से किया जाएगा। 
 
भव्या- पर कैसे? हर बार तो जो अच्छा अच्छा प्रदर्शन करता है, उसे चुन लिया जाता है। क्या यह तरीका सही है? परंतु इससे कई ऐसे बच्चे पीछे रह जाते हैं, जो शर्मीले होते हैं या किसी कारणवश उस समय अच्‍छा प्रदर्शन नहीं कर पाते।
 
स्नेहा- आप ठीक कह रहे हैं। इस तरीके से वही बच्चे बार-बार चुन लिए जाते हैं, जो एक बार अध्यापकों की नजरों में चढ़ जाते हैं। कार्यक्रम में भाग लेने की इच्छा और भी बहुत से बच्चों की होती है। 
 
सलोनी- सो तो ठीक है, परंतु कार्यक्रम अच्‍छा करने के लिए तो अच्छे कलाकारों की आवश्यकता होती है और जिन बच्चों को अनुभव होता है, वही अच्‍छा प्रदर्शन कर पाते हैं। 
 
भाविक- इसका अर्थ है कि बाकी बच्चों को तो सीखने का मौका ही नहीं मिलना चाहिए? ये तो सरासर गलत है। 
 
शशांकजी- तुम लोग आपस में बहस मत करो। हमने इस समस्या का हल निकाल लिया है।
 
सभी बच्चे- वह क्या है?
 
शशांकजी- कल विद्यालय के स्थापना दिवस पर हर कक्षा के विद्यार्थी अपनी-अपनी कक्षा को सजाएंगे और जिस बच्चे का योगदान प्रधानाचार्यजी को अच्‍छा लगेगा, उसी को कार्यक्रम में हिस्सा लेने दिया जाएगा।
 
संयम- वाह! क्या अनोखा तरीका निकाला है चयन का।
 
सलोनी- यह ठीक रहेगा। इससे सभी बच्चों को कुछ कर दिखाने का मौका भी मिलेगा।
 
शशांकजी- तो ठीक है। आप सब बारी-बारी से मुझे बता दीजिए कि कौन क्या करेगा? 
 
स्नेहा- मेरे घर में बहुत सुंदर बगीचा है। मैं वहां से कुछ फूल लेकर पुष्प गुच्छ बना लाऊंगी तथा शिक्षक की मेज पर सजा दूंगी।

 

 
 
भाविक- मैंने रंगीन कागज के सुंदर-सुंदर कलाकृतियां बनानी सीखी थीं। मैं वह बनाकर लाऊंगा और पूरी कक्षा में लटका दूंगा।
 
शशांकजी- वाह तुम तो छुपे रुस्तम निकले। संयम, तुम क्या करोगे? 
 
संयम- मैं कक्षा की दीवारों पर चिपकाने के लिए कुछ सुंदर व ज्ञानवर्धक पोस्टर बना लाऊंगा। देखना, उनसे अपनी कक्षा का रूप ही बदल जाएगा। 
 
भव्या- मैंने इस बार छुट्टियों में कुछ कलाकृतियां बनाई थीं। मैं वह लाकर कक्षा के मुख्य द्वार के पास लगा दूंगी।
 
सलोनी- अरे भाई, तुम सबने तो अच्छे-अच्‍छे काम चुन लिए, अब मैं क्या करूं? ठीक है, मैं कक्षा के सामने वाले बरामदे में सुंदर रंगोली बना दूंगी। मुझे रंगोली बनानी बहुत अच्‍छी तरह से आती है। 
 
शशांकजी- बस-बस अब काफी हो गया, अब इससे ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं। आवश्यकता से अधिक सजावट भी अच्‍छी नहीं लगती।
 
(तभी कार्तिक कक्षा में प्रवेश करने की अनुमति मांगता है।) 
 
कार्तिक- क्या मैं अंदर आ सकता हूं?
 
शशांकजी- हां, आ जाओ, पर तुम इतनी देर से थे कहां?
 
कार्तिक- मैं दूसरी कक्षा में गया था। मेरा छोटा भाई बहुत रो रहा था इसलिए उसके अध्यापक ने बुलाया था। 
 
शशांकजी- ठीक है, बैठ जाओ। (फिर सभी बच्चों की ओर मुंह करके) तो बच्चों! याद रखना अपना-अपना काम। अब देखते हैं कौन बाजी मारता है।
 
कार्तिक- कैसा काम? 
 
शशांकजी- कार्तिक! तुमको देरी हो गई, अब तो कक्षा सज्जा के सारे काम बांट चुके हैं। 
 
कार्तिक- परंतु, यदि मैंने कुछ नहीं किया तो मेरा चयन कैसे होगा। अबकी बार मैं नाटक में हिस्सा लेना चाहता हूं। मुझे अभिनय का बहुत शौक है। 
 
शशांकजी- ठीक है, तो तुम इन सबकी मदद कर देना या फिर जो तुम्हारी इच्छा हो कर लेना। 
 
कार्तिक- परंतु मैं क्या करूं? 
 
शशांकजी- यह मैं कैसे बता सकता हूं, तुम खुद निर्णय लो। 
 
(यह कहकर वे कक्षा से बाहर चले जाते हैं।) 

(दृश्य द्वितीय) 
 
(अगले दिन कक्षा 7 का ही कमरा। कमरा खूब सजा-संवरा साफ-सुथरा लग रहा है। सभी बच्चे साफ-सुथरी गणवेश में अपनी-अपनी जगह पर बैठे हैं। शशांकजी का प्रधानाचार्य शुक्लाजी के साथ प्रवेश)
 
सभी बच्चे (एकसाथ उठकर)- शुभ प्रभात! 
 
शुक्लाजी- शुभ प्रभात! कमाल है तुम सबने मिलकर तो कमरे का रूप ही बदल दिया है। काफी मेहनत की है तुम लोगों ने।
 
सभी बच्चे- जी! 
 
शशांकजी- बच्चों! अब तुम आकर प्रधानाचार्यजी को बताओ कि इस सज्जा में किसका क्या योगदान है?
 
शुक्लाजी (मेज पर पुष्पगुच्छ की ओर इशारा करके)- बहुत सुंदर पुष्पसज्जा है। यह किसने की है? 
 
स्नेह- (खड़ी होकर)- मैंने, यह मेरी मां ने सिखाई है।
 
शुक्लाजी (पोस्टर की ओर इशारा करके)- काफी सुंदर पोस्टर हैं, किसने बनाए हैं? 
 
संयम- (खड़ा होकर) मैंने, मैंने पोस्टर प्रतियोगिता में भी प्रथम स्‍थान प्राप्त किया था। 
 
शशांकजी- वाह! क्या खूब। यह कागज में झाड़-फानूस भी कम आकर्षक नहीं है। 
 
भाविक- ये मैंने बनाए हैं। ये मैंने हॉबी क्लासेस में सीखे थे। 
 
शुक्लाजी- रंगोली तो मैंने कक्षा में प्रवेश करते ही देख ली थी और मुझे पता है कि वह सलोनी ने बनाई होगी। वह विद्यालय में पहले भी सुंदर रंगोलियां बना चुकी हैं। 
 
सलोनी- जी! मैं रंगोली प्रतियोगिता में सदा भाग लेती हूं। 
 
शशांकजी- वहां पेंटिंग देखिए, वह भव्या ने बनाई है। कितनी सजीव दिखती है। 
 
शुक्लाजी- वास्तव में सजीव है (फिर कार्तिक की ओर इशारा करके)- बेटा, तुमने क्या सजावट की है? तुम अभी तक चुप क्यों हो? 
 
कार्तिक- सर! मुझे क्षमा कीजिए, मेरा कक्षा को सजाने में ऐसा कोई योगदान नहीं है। मैंने तो सभी दोस्तों की मदद की है। हां, मैंने एक काम अवश्य किया है। मैंने पूरी कक्षा की सफाई की है। दीवारों, फर्श, श्यामपट्ट- यहां तक कि सभी बेंचों को साफ किया है। मेरे मित्रों से कुछ फूल, कागज के टुकड़े रंग आदि इधर-उधर बिखर गए थे, मैंने उन्हें उठाकर कचरा पात्र में डाल दिया है ताकि कक्षा साफ-सुथरी लगे। 
 
प्रधानाचार्यजी- बेटा कार्तिक! जानते हो तुमने अनजाने में ही कक्षा की सजावट का सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया है, वह है कक्षा को स्वच्‍छ बनाने का। ऊपरी सजावट चाहे कितनी भी हो, जब तक जगह साफ-सुथरी नहीं हो, उसका महत्व नहीं होता। स्वच्‍छता सबसे महत्वपूर्ण और सर्वोच्च है। (बच्चों की ओर मुंह करके) सोचो, यदि कक्षा में चारों ओर गंदगी होती तो क्या ये कमरा इतना साफ व सुंदर लग सकता था?
 
सभी बच्चे- नहीं...! 
 
प्रधानाचार्यजी- इसका मतलब आज की बाजी कौन जीता? 
 
सभी बच्चे- कार्तिक... कार्तिक... कार्तिक...।
 
शशांकजी- कार्तिक, तुम नाटक में भाग लेना चाहते थे ना, अब तुम उसमें अवश्य भाग ले सकोगे और हां, तुम उस नाटक में नायक का अभिनय करोगे।
 
कार्तिक- क्या सचमुच ऐसा होगा? क्या मेरा सपना सच हो जाएगा? 
 
प्रधानाचार्यजी- क्यों नहीं, यह सब चयन विधि के नियमानुसार हो रहा है (फिर सब बच्चों से)- तुम सबने भी बहुत सुंदर काम किया है। तुम सब भी कार्यक्रम में भाग ले सकोगे। 
 
सभी बच्चे (एकसाथ)- धन्यवाद! 
 
(परदा गिरता है।)

साभार- देवपुत्र 

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