'अता' नाम है केवल 13 सेंटीमीटर लंबे एक विचित्र शव के कंकाल (ममी) का। वह जितना विचित्र है उतना ही रहस्मय भी। दस साल पहले चिली में मिला था। सभी हैरान हैं कि वह क्या है? किसी दूसरी दुनिया से आए महाबौने एलियन का अस्थिपंजर या कोई महाविकृत मानवीय भ्रूण! पहली नजर में वह किसी एलिय़न बच्चे का अस्थिपंजर ही लगता है।
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'अता' को अपना यह नाम लैटिन अमेरिकी देश चिली के अताकामा मरुस्थल से मिला है। वहीं 2003 में एक उजड़ चुकी बस्ती में वह मिला था। अताकामा की बेहद शुष्कता में त्वचा सहित सूखकर कंकाल बन गया यह शव पहले तो काफ़ी समय तक ग़ायब रहा। उसकी रहस्यमय विचित्रता के कारण शायद उसे कई बार बेचा-ख़रीदा जाता रहा। कई हाथों से होता हुआ अंततः वह स्पेन के बार्सेलोना शहर पहुंचा।
वहीं उड़न तश्तरियों और इतरलोकवासी तथाकथित एलियन लोगों संबंधी एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान, अमेरिका के डॉ. स्टीवन ग्रीयर की उस पर नज़र पड़ी। वे पृथ्वी से परे अन्य ग्रहों पर मनुष्यों जैसे बुद्धिमान जीवधारियों के अस्तित्व में विश्वास करते हैं। 'अता' को दिखाकर दुनिया में वे जो खलबली मचा सकते थे, उसकी कल्पना करते हुए उन्होने उसे तुरंत ख़रीद लिया।
आगे पढ़ें... क्या एलियन का सचमुच अस्तित्व है?...
क्या एलियन का सचमुच अस्तित्व है? : डॉ. ग्रीयर इमर्जेंसी डॉक्टर रह चुके हैं। उन्होंने सोचा कि 'अता' के माध्यम वे सिद्ध कर दिखाएंगे कि एलियन लोगों का सचमुच अस्तित्व है। वे पृथ्वी पर आते-जाते रहते हैं और हमारे शुभचिंतक हैं। उन्होंने डंके की चोट पर घोषित किया कि वे 'अता' के अस्थिपंजर की वैज्ञानिकों द्वारा परीक्षा करवाएंगे और जो भी परिणाम सामने आएगा, उसे 'साइरियस' नाम की एक डॉक्यूक्मेंट्री फ़िल्म के माध्यम से दुनिया के सामने पेश करेंगे।
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पटियाला में पैदा हुए और अब अमेरिका में रह रहे, एमी पुरस्कार विजेता, 34 वर्षीय अमरदीप कलेका द्वारा निर्देशित डॉ. ग्रीयर की यह डॉक्यूक्मेंट्री फ़िल्म गत 22 अप्रैल से वाकई खलबली मचा रही है। लेकिन यह खलबली फिल्म में बहुत से तथ्यों को छिपाने, वैज्ञानिक जांच-परख के परिणामों को बहुत कम समय देने और दूसरी कथा-कहानियों द्वारा बार-बार यही दोहराने पर आधारित है कि कोई माने या न माने, पृथ्वी से परे बुद्धिमान जीवधारियों का अस्तित्व है और वे हमारा भला ही चाहते हैं।
क्या वाकई एलियन है अता, क्या कहती है जांच...आगे पढ़ें..
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कथित एलियन के कंकाल की शव परीक्षा : जिन दो विशेषज्ञों ने 'अता' के अस्थिपंजर-शव की जांच-परख की, वे न तो एलियन-प्रेमी हैं और न अनजान वैज्ञानिक। प्रो़. जेरी नोलैन कैलीफ़ोर्निया के नामी स्टैनफर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं और दुनिया के एक प्रसिद्ध जीन-शोधक माने जाते हैं। इसी विश्वविद्यालय के प्रो. राल्फ़ लचमैन अस्थिदोष के जाने-माने विशेषज्ञ हैं।
दोनों ने अपनी जाँच के परिणाम किसी विज्ञान पत्रिका में अभी तक प्रकाशित नहीं किये हैं। पर, दोनो का मिल-मिलाकर यही कहना है कि 'अता' निसंदेह एक मानवीय अस्थिपंजर ही है, हालाँकि है बहुत ही रहस्यमय। उसका कद इतना छोटा, सिर इतना लंबा और शरीर की बनावट इतनी अनोखी है कि वह "शारीरिक विकृति या बीमारी के किसी भी वर्ग में फिट नहीं बैठता।"
'अता' का कद केवल 13 सेटीमीटर, यानी छह इंच से भी कुछ कम ही है। संसार का सबसे बौना आदमी चंद्रबहादुर डांगी भी उससे साढ़े चार गुना बड़ा (57 सेंटीमीटर) है। नवजात बच्चे भी अधिकतर 50 सेंटीमीटर के आस-पास होते हैं। समय से बहुत पहले पैदा होने वाले जीवित बच्चे भी 20 सेंटीमीटर से कुछ बड़े ही होते हैं। 'अता' का सीना केवल 10 पसलियों का बना है। मानवीय सीने में 12 और बहुत अपवादस्वरूप ही 11 पसलियाँ होती हैं।
क्या कहती है अता की हड्डियों की बनावट... आगे पढ़ें...
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एक से एक अनोखेपन : एक दूसरा अनोखापन यह मिला कि 'अता' के घुटने के एक्स-रे चित्र में हड्डियों की कुछ ऐसी बनावटें दिखती हैं, जो बचपन के दौरान बनती हैं। इसका मतलब यह होना चाहिए कि बॉलपेन जितना बड़ा 'अता' जन्म के समय न केवल ज़िंदा था, बल्कि 6 से 8 साल तक की आयु तक पहुँचा रहा होना चाहिए।
जर्मनी के अस्थि विशेषज्ञ युर्गन श्प्रांगर ने भी एक्स-रे चित्रों की जाँच की है। लेकिन, उन्हें संदेह है कि 'अता' 6 से 8 साल तक की आयु का रहा होना चाहिये। उनका कहना है कि घुटने के भीतर की कुछेक बनावटें यह संकेत ज़रूर करती हैं कि 'अता' कुछेक साल जिया होगा, लेकिन दूसरी तरफ़ हाथों और कमर के पास की हड्डियों की बनावटों में कुछ ऐसी चीज़ें नहीं हैं, जो कुछ साल जी चुके बच्चों में हुआ करती हैं।
कितना पुराना हो सकता है अता का शव... आगे पढ़ें...
'अता' मानवीय भ्रूण : श्प्रांगर ने इन विचित्रताओं पर अन्य विशेषज्ञों से भी विचार-विमर्श किया। सबकी सामूहिक राय यही है कि 'अता' एक ऐसा मानवीय भ्रूण रहा होना चाहिए, जो गर्भ के 24 वें सप्ताह में ही, यानी छठे महीने में ही पैदा हो गया। यही नहीं, बहुत संभव है कि वह तथाकथित "वीडेमान-राउटनश्ट्राउख़ सिंड्रोम" से भी पीड़ित था। उसके अस्थिपंजर में इस अस्थिदोष के कुछ और संकेत भी मिले हैं। यह इतना विरल अस्थिदोष है, जिसके अब तक केवल 25 विश्वव्यापी उदाहरण ज्ञात हैं।
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प्रो़. जेरी नोलैन के जीन-परीक्षण किसी स्पष्ट निष्कर्ष पर नहीं पहुँचाते। उनसे इतना ही पता चल सका कि 'अता' चिली के अताकामा मरुस्थल में रह चुकी किसी इंडियो (रेड इंडियन) महिला का पुत्र रहा होना चाहिए। वह कब पैदा हुआ होना चाहिए, यह जीन-परीक्षणों से पता नहीं चल सका।
उसका शव, जहाँ तक है, 30 से 40 साल ही पुराना है। नोलैन को 'अता' के डीएनए में कई अजीब बातें मिलीं, लेकिन उन से यह नहीं पता चलता कि उसके इतना अधिक बौना और विकृत होने के पीछे किस तरह का आनुवंशिक उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) ज़िम्मेदार रहा होना चाहिये।
क्या सुलझ पाएगी यह पहेली... आगे पढ़ें...
विज्ञान के लिए एलियन जैसी ही पहेली : अता' यदि किसी दूसरी दुनिया से नहीं भी आया था, समय से बहुत पहले पैदा हो गया मानवीय भ्रूण या कुछ साल का बच्चा ही था, तब भी विज्ञान के लिए किसी एलियन से कम रहस्यमय नहीं है। क्योंकि यह पहेली पूरी तरह सुलझ नहीं पाई, इसलिए डॉ. स्टीवन ग्रीयर की बनाई डेढ़ घंटे की फ़िल्म में उससे जुड़े वैज्ञानिक तथ्यों और पक्षों को 10 मिनट का भी समय नहीं दिया गया है।
फ़िल्म में घुमा-फिराकर यही विश्वास दिलाने की कोशिश की गई है कि एलियन हैं, पृथ्वी पर आते-जाते रहते हैं, जबकि हमें हमारी सरकारें तथा वैज्ञानिक गुमराह करने में लगे हैं। ग्रीयर भारत में श्री कृष्ण की जलमग्न हो गई द्वारका नगरी का भी उदाहरण देते हैं कि वहाँ इतरलोकवासी आते-जाते थे और वहाँ ब्रह्मास्त्र कहलाने वाले पहले परमाणु बम का भी उपयोग हो चुका है।
ज्ञातव्य है कि जब से पता चला है कि द्वारका के पास समुद्र में पुरानी द्वारका नगरी के अब भी अवशेष हैं, जो 10 से 32 हज़ार वर्ष पुराने हैं, तब से पुरातत्व विज्ञान जगत में तहलका मच गया है। मानव सभ्यता और नगर-निर्माण कला के बारे में वैज्ञानिकों के अब तक के सारे सिद्धांत खंडित होने लगे हैं।
सभ्यताओं की कालगणनाएँ उलट-पुलट होने लगी हैं। वेद-पुराण मिथक नहीं, ऐतिहासिक सच्चाई लगने लगे हैं। ग्रीयर ने अपनी फ़िल्म में इसका भरपूर लाभ उठाने की कोशिश की है।