पूरे यूरोप में हो रही भीषण बर्फबारी और रिकॉर्डतोड़ सर्दी को क्या आइस एज (हिमयुग) के आगमन से जोड़ कर देखा जा सकता है? क्या हमारी पृथ्वी ग्लोबल कूलिंग की तरफ बढ़ रही है? ये तमाम सवाल इस समय वैज्ञानिक समुदाय की चिंता का विषय बने हुए हैं।
यूरोप में चल रहे भीषण बर्फबारी के दौर और तापमान के असामान्य ढंग से शून्य से 15 डिग्री नीचे जाने से जलवायु परिर्वतन से जुड़े कई सवाल उठ रहे हैं। हाल के वर्षों में बर्फबारी के निर्धारित समय से पहले होने का ट्रेंड दिखाई दे रहा है।
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वैसे पिछले कुछ सालों से वैज्ञानिकों का एक खेमा यह कह रहा है कि ग्लोबल वार्मिंग नहीं ग्लोबल कूलिंग या जलवायु परिवर्तन के संकेत मिल रहे हैं। दुनियाभर के करीब एक हजार वैज्ञानिक इस दिशा में काम कर रहे हैं कि ग्लोबल वार्मिंग और आइस एज के दौर हमारी पृथ्वी के इतिहास का हिस्सा रहे हैं।
वैज्ञानिकों का यह खेमा तापमान में आ रहे इन भीषण परिवर्तनों को ऐसे ही देखते हैं। उनका कहना है कि पृथ्वी गर्म होने के बाद ठंडी होती है और इसे ही हिमयुग कहते हैं।
इस हिमयुग में पृथ्वी का तापमान बेहद कम हो जाता है, चारों तरफ बर्फ का राज होता है। इसके बाद फिर समुद्री करंट से धरती गर्म होती है और फिर नए टापू-द्वीप तथा पहाड़ उभरते हैं। वैज्ञानिकों के इस खेमे का मानना है कि ये प्रक्रिया चलती रहती है।
इस बारे में चंडीगढ़ के प्लेनेट अर्थ सेंटर से जुड़े भूगर्भशास्त्री प्रो.अरुण दीप अहलूवालिया ने कहा कि धरती के गर्म होने और ठंडे होने की प्रक्रिया चलती रहती है। इस समय इस बात के संकेत हैं कि धरती ठंडी होने की तरफ बढ़ रही है। यूरोप की बर्फबारी ही नहीं इस बारे में कई संकेत मिल रहे हैं।
हमारा सीधा सा मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग को लेकर जितना खौफ मचाया जा रहा है वह सही नहीं है, क्योंकि अब पृथ्वी ठंडी होने की तरफ बढ़ रही है। इसी वजह से पहले जहाँ ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता था, अब उसे जलवायु परिवर्तन कहा जाने लगा है। इस शब्द में दोनों ही संभावनाएँ छुपी हुई हैं-धरती के गर्म होने और ठंडे होने की।
प्रो.अहलूवालिया का मानना है कि इस समय ग्लोबल वार्मिंग को गरीब देशों के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। उनका कहना है कि पृथ्वी में इस तरह के परिवर्तनों की लंबा इतिहास रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के पिछले 18 हजार साल के इतिहास में दो लघु हिमयुग आ चुके हैं। (भाषा सिंह)