11 फरवरी को एस्टेरॉयड से धरती पर तबाही, नासा रखे हुए है नज़र, जानिए क्या है संकेत

शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022 (15:22 IST)
आकाश में एस्टेरॉयड और मीटीऑराइट सूर्य या किसी ग्रह के चक्कर लगाते रहते हैं ये किसी तारे या ग्रहों के टूकड़े होते हैं। मीटीऑराइट ( meteorite ) छोटे छोटे पत्थर होते हैं जिनसे धरती को इतना खतरा नहीं होता है परंतु धरती को एस्टेरॉयड ( Asteroid ) अर्थात उल्कापिंड या क्षुद्रग्रह से हमेशा खतरा बना रहता है। हाल ही में 11 फरवरी 2022 को धरती के बहुत ही नजदीक से एक एस्टेरॉयड गुजरने वाला है। यदि यह धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति की जद में आ गया तो धरती पर तबाही का मंजर होगा।
 
 
कब गुजरेगा धरती के नजदीक से : हाल ही में अंतरिक्ष एजेंसी नासा (Nasa) ने घोषणा की है कि 11 फरवरी को धरती के बेहद नजदीक से एक बेहद विशालकाय एस्टेरॉइड (Huge Asteroid To Cross Earth) गुजरेगा। इस उल्कापिंड को नासा ने पोटेंशियली हजार्डस (Potentially Hazardous) यानि संभावित खतरनाक खतरा बताया है। हालांकि नासा ने ये तो नहीं बताया है कि ये किस जगह से गुजरेगा। 11 फरवरी के बाद यह 24 अप्रैल को धरती के नजदीक से गुजरेगा। 
 
क्या नाम है इसका : नासा ने इसका नाम 138971 (2001 CB21) रखा है। 
 
कितनी पास से गुजरेगा यह एस्टेरॉयड : नासा का अनुमान है कि यह धरती के महज 3 मिलियन मील दुरी से गुजरेगा। इसे नासा ने धरती के सबसे करीब से गुजरने वाले एस्टेरॉइड की लिस्ट में रखा है।
 
 
क्या होता है एस्टेरॉयड : एस्टेरॉयड को किसी ग्रह या तारे का टूटा हुआ टुकड़ा माना जाता है। ये पत्थर या धातु के टूकड़े होते हैं जो एक छोटे पत्थर से लेकर एक मील बड़ी चट्टान तक और कभी-कभी तो एवरेस्ट के बराबर तक हो सकते हैं।
 
कितना बड़ा है ये एस्टेरॉयड : इस एस्टेरॉइड का साइज अम्पायर स्टेट बिल्डिंग से काफी बड़ा है। इसकी चौड़ाई 4 हजार 2 सौ 65 फ़ीट बताई जा रही है। बताया जा रहा है कि यह करीब 100 मंजिला इमारत जितना बड़ा है। 
 
इससे पहले कब देखा गया था इसे : इस एस्टेरॉइड को सबसे पहले 21 फरवरी 1900 को देखा गया था। इस छुद्र ग्रह को आखिरी बार 18 फरवरी 2021 को देखा गया था। उससे पहले 2011 और फिर 2019 में ये नजर में आया था। यदि यह शांतिपूर्वक पृथ्‍वी के नजदीक से गुजर जाएगा और कोई अनहोनी नहीं होगी तो इसके बाद ये जनवरी 2024 के साल में जून और फिर दिसंबर में दिखाई देगा।
 
क्या होगा यदि धरती से टकरा गया तो : यदि यह धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति की जद में आ गया तो धरती पर तबाही का मंजर होगा। यह धरती से टकरा गया तो कई गुना भूकंप के झटके के साथ ही भयानक आग देखने को मिलेगी। इससे पहले जब विशाल एस्टेरॉइड पृथ्वी से टकराया था तब धरती से डायनासोर खत्म हो गए थे। हालांकि पृथ्वी से इसकी टक्कर की उम्मीद काफी कम है। दरअसल, जहां से यह गुजरेगा वो पृथ्वी से काफी दूर है। हालांकि हमारे सौरमंडल में ऐसी लाखों छोटी-बड़ी चट्टाने हैं, जो सूर्य की परिक्रमा करते हुए कई बार पृथ्वी के निकट आ जाती हैं, निकट से गुजर जाती है या उसके वायुमंडल में आकर जलकर टूकड़े-टूकड़े होकर धरती पर गिर जाती है और कई बार बड़ी चट्टाने सीधे धरती पर गिरकर तबाही मचा देती है। 
एस्टेरॉटड की खास बातें : आकाश में कभी-कभी एक ओर से दूसरी ओर अत्यंत वेग से जाते हुए अथवा पृथ्वी पर गिरते हुए जो पिंड दिखाई देते हैं उन्हें उल्का और साधारण बोलचाल में 'टूटते हुए तारे' अथवा 'लूका' कहते हैं। कहते हैं कि हमारे सौर मंडल में करीब 20 लाख एस्ट्रेरॉयड घूम रहे हैं। NASA के पास पृथ्वी के आसपास 140 मीटर या उससे बड़े करीब 90 प्रतिशत एस्टेरॉयड को ट्रैक की क्षमता है।
 
 
अतीत में इन उल्कापिंडों से कई बार जीवन लगभग समाप्त हो चुका है। एक बार फिर मंडरा रहा है डायनासोर के जमाने का खतरा। अंतरिक्ष में भटक रहा सबसे बड़ा उल्का पिंड '2005 वाय-यू 55' है लेकिन फिलहाल खतरा एस्टेरॉयड एपोफिस से है।
 
अमेरिका में खगोल भौतिकी के हारवर्ड-स्मिथसोनियन सेंटर के डॉ. अर्विंग शापिरो बताते हैं कि पृथ्वी को अतीत में कई बार इस तरह के पिंडों के साथ टक्कर झेलनी पड़ी है। वे कहते हैं, 'इस तरह का सबसे पिछला प्रलयंकारी पिंड साढ़े छह करोड़ साल पहले टकराया था। उसने न जाने कितने जीव-जंतुओं की प्रजातियों का पृथ्वी पर से अंत कर दिया। डायनासॉर इस टक्कर से लुप्त होने वाली सबसे प्रसिद्ध प्रजाति हैं। समस्या यह है कि हम नहीं जानते कि कब फिर ऐसा ही हो सकता है।' वह लघु ग्रह सन फ्रांसिस्को की खाड़ी जितना बड़ा था और आज के मेक्सिको में गिरा था। इस टक्कर से जो विस्फोट हुआ, वह दस करोड़ मेगाटन टीएनटी के बराबर था। पृथ्वी पर वर्षों तक अंधेरा छाया रहा।
 
 
कई बड़े वैज्ञानिकों को आशंका है कि एपोफिस या एक्स नाम का ग्रह धरती के काफी पास से गुजरेगा और अगर इस दौरान इसकी पृथ्वी से टक्कर हो गई तो पृथ्वी को कोई नहीं बचा सकता। हालांकि कुछ वैज्ञानिक ऐसी किसी भी आशंका से इनकार करते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि ब्रह्मांड में ऐसे हजारों ग्रह और उल्का पिंड हैं, जो कई बार धरती के नजदीक से गुजर चुके हैं। 
 
1994 में एक ऐसी ही घटना घटी थी। पृथ्वी के बराबर के 10-12 उल्का पिंड बृहस्पति ग्रह से टकरा गए थे जहां का नजारा महाप्रलय से कम नहीं था। आज तक उस ग्रह पर उनकी आग और तबाही शांत नहीं हुई है। वैज्ञानिक मानते हैं कि यदि बृहस्पति ग्रह के साथ जो हुआ वह भविष्य में कभी पृथ्वी के साथ हुआ तो तबाही तय हैं, लेकिन यह सिर्फ आशंका है। आज वैज्ञानिकों के पास इतने तकनीकी साधन हैं कि इस तरह की किसी भी उल्का पिंड की मिसाइल द्वारा दिशा बदल दी जाएगी। इसके बावजूद फिर भी जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग तबाही का एक कारण बने हुए हैं।

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