अध्ययनकर्ताओं के अनुसार इसकी वजह यह है कि इन खाद्य सामग्रियों का इस्तेमाल शुरू करने के बाद मनुष्य की शिकार पर निर्भरता कम होने लगी और मुलायम चीजों को चबाने से उसके जबड़ों पर दबाव पड़ना भी कम हो गया। डेलीमेल ऑनलाइन में प्रकाशित एक लेख में सेबेस्टियन मर्फी-बेस्ट्स लिखते हैं कि खेती करने के तौर-तरीके और बेहतर भोजन मिलने के चलते मनुष्य की खोपड़ी का आकार छोटा होने लगा।
वैज्ञानिकों का कहना है कि चारा खोजने, खेती करने के युग में जहां आदमी की खोपड़ी का आकार ओरांगउटान के बराबर था लेकिन कालांतर में यह छोटा हो गया। शोधकर्ताओं ने करीब एक हजार मानव खोपड़ियों का अध्ययन किया। ये खोपड़ियां पूरे विश्व के अलग-अलग हिस्सों से एकत्रित की गई थीं। इनमें मानव के खेती बाड़ी और डेरी प्रोडक्ट के इस्तेमाल के बाद और उससे पहले शिकार पर निर्भर मनुष्यों की खोपड़ियां शामिल की थीं।
दोनों की तुलना करने पर इस शोध में यह निष्कर्ष सामने आया कि जैसे-जैसे मनुष्य फार्मिंग और पशुपालन की तकनीक विकसित करके फल सब्जियों और पशुओं के दूध से बनने वाले डेरी उत्पादों का प्रयोग बहुतायत में करने लगा उसके जबड़े सिकुड़ने लगे और खोपड़ी का आकार भी घटने लगा। इसी तरह शरीर की हड्डियों की मजबूती भी कमजोर होने लगी।