शोधार्थियों ने बताया कि नवोन्मेष करते हुए एक सोलर पैनल बनाया, जिससे हवा बैटरी में प्रवेश कर सकती है। बाद में एक विशेष प्रक्रिया के तहत सोलर पैनल और बैटरी के बीच इलैक्ट्रॉन का आदान प्रदान होता है। उपकरण के अंदर प्रकाश और ऑक्सीजन की मौजूदगी से रासायनिक प्रक्रिया होती है, जिससे बैटरी चार्ज हो जाती है।
इस सौर बैटरी के उत्पादन के लिए लाइसेंस लिया जाएगा। इससे अक्षय उर्जा की लागत को कम करने में मदद मिलेगी। इस आविष्कार से सौर ऊर्जा की कार्यक्षमता भी बढ़ाई जा सकेगी। पारंपरिक तौर पर सोलर सेल से एक अलग बैटरी में ऊर्जा का संरक्षण किए जाने के दौरान ऊर्जा का क्षय होता है। अमूमन 80 प्रतिशत इलैक्ट्रॉन ही बैटरी में संग्रहीत किए जा सकते हैं।