उड़न तश्तरी की हकीकत, कितनी सही कितनी झूठ

शनिवार, 23 मार्च 2013 (16:05 IST)
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नई दिल्ली। चीन के एक खगोल विज्ञानी ने दुनिया में पहली बार उड़न तश्तरी देखने का दावा किया था। उसके बाद से आकाश में इस तरह की चमकती वस्तुएं देखने की घटनाएं लगातार सामने आने लगीं और अमेरिका, फ्रांस, स्वीडन, रूस आदि देशों में इस पर अध्ययन के लिए कई समितियां गठित की गईं।

प्रत्यक्षदर्शी दावे से कह रहे हैं कि ये चमकदार उड़न तश्तरियां चीन की सीमा से आती हैं। चीन के खगोल विज्ञानी ने ईसा पूर्व 410 वर्षा में उड़न तश्तरी देखने का दावा किया था, तब से आज तक इंसानों की दिलचस्पी उड़न तश्तरी में जरा भी कम नहीं हुई है। यही वजह है कि उन पर दुनियाभर में कई फिल्में बन चुकी हैं एवं सैकड़ों किताबें लिखी जा चुकी हैं।

दिलचस्प बात यह है कि पिछले 2 हजार साल में अज्ञात वस्तुओं को आकाश में उड़ता देखने का दावा करने वालों की संख्या सैकड़ों थी, लेकिन पिछले 200 सालों में यह संख्या बढ़कर हजारों में पहुंच गई है।

अमेरिकी कारोबारी कैनेथ अर्नाल्ड ने जून 1947 में अपने हेलीकॉप्टर से वॉशिंगटन की नजदीकी पहाड़ियों के ऊपर अर्ध चंद्राकार की 9 अज्ञात वस्तु आकाश में उड़ती देखी थी। उसका दावा था कि उनकी गति कम से कम कई हजार किलोमीटर की रही होगी।

उसने बताया था कि अज्ञात वस्तुएं ऐसी लग रही थीं जैसे समुद्र में तेज गति से तश्तरियां तैर रही हों। अगले ही दिन अखबारों की सुर्खियां थी- अमेरिका में उड़न तश्तरी देखी गईं। इस तरह आकाश में उड़ने वाली अज्ञात वस्तुओं का नाम उड़न तश्तरी यानी अनआइडेंटीफाइडऑब्जेक्ट (यूएफओ) पड़ गया।

 

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स्टोनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पीटर स्टार्क और प्रो. वोन आर. ईशलमैन के नेतृत्व में एक कांफ्रेस आयोजित गई थी। दो दशक पहले आयोजित इस सम्मेलन में उन 8 खगोल वैज्ञानिकों को बुलाया गया था जिन्होंने उड़न तश्तरी के बारे में ठोस दावे किए थे।

हालांकि सम्मेलन के अंत में यही रिपोर्ट जारी की गई कि ऐसी अनोखी घटनाओं के बारे में विज्ञान को और अधिक अध्ययन करने की आवश्यकता है। इससे पहले भी उड़न तश्तरियों पर अमेरिका के साथ ही रूस, स्वीडन, फ्रांस, बेल्जियम ब्राजील, चिली, मैक्सिको आदि देशों में अध्ययन किए गए थे।

स्पेन के वैज्ञानिकों ने तो अपने अध्ययन में ऐसे करीब 6 हजार दावों को तर्क की कसौटी पर परखा और अमेरिका को इस मामले में मनगढ़ंत अफवाहें फैलाने का दोषी भी माना। हालांकि ऐसे अध्ययन जारी रहे।

वर्ष 1968 में ईडवर्ड कान्डान के कोलोराडो परियोजना में भी कोई ठोस नतीजा हाथ नहीं आया। उन्होंने अनेक प्रत्यक्षदशियों और खगोल वैज्ञानिकों के साथ अध्ययन करके कहा था कि विज्ञान को अभी और ठोस सबूतों की जरूरत है।

इसके दो साल बाद खगोल विज्ञान का अध्ययन करने वाली अमेरिकी इंस्टीट्यूट एआईएए की रिपोर्ट में भी ऐसी घटनाओं के उच्चस्तरीय अध्ययन की जरूरत पर जोर दिया गया था।

मिल गए दूसरे ग्रह के लोग, लेकिन सच्चाई छिपा रही है अमेरिकी सरकार...


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वर्ष 1997 में एक जनमत संग्रह में 80 फीसदी अमेरिकियों का मानना था कि सरकार उड़न तश्तरियों के मामले में उनसे सच्चाई छिपा रही है। इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि राष्ट्रपति भवन को बयान जारी करके लोगों को भरोसा दिलाना पड़ा कि सरकार कोई जानकारी नहीं छिपा रही है।

दुनियाभर में उड़न तश्तरी देखे जाने के हजारों दावे किए जा चुके हैं लेकिन विज्ञान की कसौटी पर उड़न तश्तरी अब भी खरी नहीं उतरी है।

तेल अवीव यूनीवर्सिटी के प्रोफेसर कोलिन प्राइस उड़न तश्तरी को प्राकृतिक परिघटना के रूप में देखते हैं। उन्होंने अपनी अध्ययन रिपोर्ट में कहा था कि दरअसल उड़न तश्तरी एक प्राकृतिक परिघटना है। उन्होंने इसका नाम स्प्राइट यानी जादुई परी रखा था।

हालांकि वर्ष 1989 में दुर्घटनावश स्प्राइट की परिघटना को रिकॉर्ड कर लिया गया था। उस समय एक खगोल विज्ञानी ने तारों का अध्ययन करते समय अपनी शक्तिशाली दुरबीन से जुड़े कैमरे में कौतूहलपूर्ण क्षणिक घटना को कैद कर लिया था।

बाद में प्रो. प्राइस और उनकी टीम ने उस पर गंभीर अध्ययन किया तो पाया कि धरती से 50 से 120 किलोमीटर पर इस तरह की घटनाएं खास परिस्थितियों में लगातार होती रहती हैं।

बादलों के टकराने से जिस ऊंचाई पर बिजली बनती है, स्प्राइट उससे भी 20 किमी पर बनती है। इसका संबंध इन्हीं प्राकृतिक घटनाओं से है। चूंकि यह आकाश में नाचती हुई दिखाई देती है इसलिए इसे स्प्राइट नाम दिया गया है। यह दृश्य चंद सेकंड ही दिखाई देता है।

अनेक देशों के वायुसैनिक, यात्री विमान पायलट, खगोल विज्ञानी और दूरदराज जंगलों में काम करने वाले किसान से लेकर चरवाहे तक उड़न तश्तरी को देखने का अपना अनुभव दर्ज करा चुके हैं।

इतना ही नहीं, उन्होंने कई सबूत भी पेश किए। इनमें फोटोग्राफ, राडार में पकड़े गए सिग्नल, उड़ते विमान, हेलिकॉप्टर के उपकरणों में आई बाधाएं, प्रत्यक्षदर्शियों के शरीर में आए बदलाव और कई जगह पाए गए कथित अवशेष भी शामिल हैं, पर वैज्ञानिक उन सबूतों को पर्याप्त मानते हैं।

वैज्ञानिक मानते हैं कि खास प्राकृतिक घटनाओं की वजह से ऐसा दिखाई देता है। आकाश में काफी ऊंचाई पर बनने वाले शक्तिशाली चक्रवातों की वजह से विद्युतीय तरंगें पैदा होती है, जो विमानों और राडारों को प्रभावित करती हैं। कई बार तो इन परिस्थितियों में व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक रूप से भी प्रभावित हो जाता है, ऐसे में चक्रवात जैसी प्राकृतिक घटनाएं भी चमत्कारिक लग सकती हैं।

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PTI
संसद में हाल ही में गुजरात के जामनगर में उड़न तश्तरी देखे जाने पर सवाल उठा था। 6 महीने पहले लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश तक चीन की सीमा पर तैनात भारतीय जवानों ने सैकड़ों अज्ञात चीजों के आकाश में उड़ने की शिकायत की थी। ज्यादातर लोगों ने इसे पड़ोसी देश की शरारत माना था।

बाद में जब कथित उड़न तश्तरियों की सेना के राडार और स्पेक्ट्रम एनालाइजर से जांच की गई तो नतीजे चौंकाने वाले रहे। इन अज्ञात उड़न तश्तरियों में किसी भी वस्तु का नामोनिशान नहीं है तो क्या ये रिमोट से चलने वाली चीनी लालटेन थीं? विशेषज्ञ इस पर चुप्पी साध रहे हैं लेकिन दावे से कोई कुछ भी कहने के लिए तैयार नहीं है।

तो फिर अगली बार जब कभी उड़न तश्तरी को देखने की बात सुनें तो समझ लीजिए कोई चाइनीज लालटेन उड़ रही है या फिर दूर आकाश में प्रकृति कोई खेल रच रही है। (भाषा)

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