मंगल ग्रह की तरह ही शुक्र ग्रह भी हमारी पृथ्वी का दूसरा निकट पड़ोसी है। किंतु, पृथ्वी की अपेक्षा सूर्य के और निकट होने के कारण वहां तापमान बहुत अधिक है। उसका वायुमंडल भी बहुत तेज गतिवाले तूफानों से उमड़ता-घुमड़ाता रहता है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि इन तूफानों की गति समय के साथ रहस्यमय ढंग से और भी बढ़ती ही जा रही है।
वे 400 किलोमीटर प्रतिघंटे से भी अधिक की गति से शुक्र ग्रह को झकझोरे जा रहे हैं। हमारी पृथ्वी पर यह गति सबसे गतिवान बवंडरी तूफान (टोरनैडो) ही प्राप्त कर पाते हैं। शुक्र ग्रह पर इन तूफानों की गति इस तरह बढ़ती गई है कि केवल चार दिनों में ही वे पूरे ग्रह का एक फेरा लगा लेते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि पिछले केवल 6 वर्षों में शुक्र ग्रह की ऊपरी परतों में इन तूफानों की औसत गति 100 किलोमीटर बढ़कर अब 400 किलोमीटर प्रतिघंटे के बराबर पहुंच गई है।
पृथ्वी जितना ही बड़ा : शुक्र ग्रह लगभग पृथ्वी जितना ही बड़ा है। सूर्य की परिक्रमा करते हुए जब दोनों एक-दूसरे के सबसे निकट होते हैं, तब उन के बीच की निकटतम दूरी 3 करोड़ 80 लाख किलोमीटर होती है। दोनों के बीच सबसे बड़ा अंतर उनके वायुमंडल की बनावट और उन पर पाया जाने वाला तापमान है।
शुक्र ग्रह का वायुमंडल 96.5 प्रतिशत कार्बन डाईऑक्साइड और 3.5 प्रतिशत नाइट्रोजन का बना है। वह इतना घना है कि उसके धरातल पर पृथ्वी की अपेक्षा 92 गुना अधिक वायुमंडलीय दबाव रहता है। सूर्य से निकटता, घने वायुमंडल और वायुमंडल में भी लगभग केवल कार्बन डाईऑक्साइड ही भरी होने से वहां औसतन 464 डिग्री सेल्ज़ियस के बराबर दहकते तापमान का सर्वनाशी राज है।
अगले पन्ने पर, सौरमंडल का सबसे बड़ा रहस्य...
PR
रहस्यमय ग्रह : इस रहस्यमय ग्रह के बारे में और अधिक जानकारी पाने के लिए यूरोपीय अंतरिक्ष अधिकरण ESA ने 'वीनस एक्सप्रेस' नाम का एक अंतरिक्ष यान, एक रूसी सोयूज रॉकेट की सहायता से, 9 नवंबर 2005 को उस की तरफ रवाना किया। ठीक 153 दिन बाद 11 अप्रैल 2006 के दिन से 'वीनस एक्सप्रेस' शुक्र ग्रह की परिकक्रमा कर रहा है।
अपनी परिक्रमा के दौरान कभी वह शुक्र ग्रह से केवल 250 किलोमीटर दूर रह जाता है तो कभी 66 हजार किलोमीटर तक दूर चला जाता है। 2008 से दोनों के बीच की निकटतम दूरी केवल 185 किलोमीटर हुआ करती है।
तूफानों की गति 6 वर्षों में 100 किलोमीटर बढ़ी, 'वीनस एक्सप्रेस' से प्रप्त चित्रों और आंकड़ों का अध्ययन कर चुके रूसी और जापानी वैज्ञानिकों ने अपने अलग-अलग विश्लेषणों में पाया कि उस के वायुमंडल की ऊपरी परतों में दिखाई पड़ने वाले तूफानों की औसत गति केवल 6 वर्षों में 100 किलोमीटर बढ़ गई है।
इन वैज्ञानिकों का कहना है कि शुक्र ग्रह पर दिखाई पड़ने वाले तूफानों की गति पहले ही कुछ कम तूफानी नहीं थी, इसलिए वे समझ नहीं पा रहे हैं कि इस गति में इस भारी वृद्धि के पीछे आखीर कारण क्या है।
अपने अध्ययनों के लिए इन वैज्ञानिकों ने शुक्र ग्रह के वायुमंडल की ऊपरी परतों में बनने वाले करीब 4 लाख बादलों की गतियों को जांचा-परखा। ग्रह की ऊपरी सतह से इन बादलों की ऊंचाई लगभग 70 किलोमीटर तक थी। उनका निष्कर्ष शुक्र ग्रह पर के 10 वर्षों के अवलोकनों पर आधारित है। शुक्र पर के 10 वर्ष पृथ्वी पर के लगभग 6 वर्षों के बराबर होते हैं।
अब तक के सबसे बारीकी भरे चित्र : रूसी वैज्ञानिक दल के प्रमुख इगोर खातुंत्सेव का कहना है कि उन्होंने 'वीनस एक्सप्रेस' की 127 परिक्रमाओं के दैरान लिए गए चित्रों का बिना कंप्यूटर के विशलेषण किया और 600 अन्य परिक्रमाओं के चित्रों को सहसंबंध वाले सिद्धांत के आधार पर कंप्यूटर की सहायता जांचा।
यूरोपीय अंतरिक्ष अधिकरण के अनुसार 'वीनस एक्सप्रेस' द्वारा भेजे गए चित्र शुक्र ग्रह के बादलों के अब तक के सबसे विस्तृत और बारीकी भरे चित्र थे। उन से पता चलता है कि वहां के संपू्र्ण वायुमंडल में हवाओं की गति न केवल बढ़ती जा रही है, छोटे दायरे की स्थानीय हवाओं की गति भी कुछ ही समय में अतिशय बदल जाती है। यह पता नहीं चल पा रहा है कि वह कौन-सी क्रिया अथवा शक्ति है, जो शुक्र ग्रह पर हवाओं में उथल-पुथल को इस तेजी से बढ़ा रही है। यह जानकारी संभव है कि पृथ्वी पर हो सकने वाली भावी उथल-पुथल का पूर्वानुमान लगाने में भी सहायक सिद्ध हो।
उल्लेखनीय है कि शुक्र ग्रह न केवल अत्यंत गरम है, वह सारा समय अत्यंत घने बादलों से भी ढंका रहता है। उस पर उठने वाले तूफान हमारी पृथ्वी पर के केवल 4 ही दिनों में पूरे ग्रह का एक चक्कर लगा लेते हैं, जबकि इस ग्रह को स्वयं अपनी धुरी पर एक बार घूमने में हमारे 243 दिनों के बराबर समय लगता है।
सौरमंडल का एक सबसे बड़ा रहस्य : वहां चलने वाली हवाओं की गति और ग्रह के अपने अक्ष पर घूमने की गति में जमीन-आसमान जैसे इस अंतर का पता 1960 वाले दशक में चला था। तब से रूस और अमेरिका के लगभग 20 अन्वेषणयान शुक्र ग्रह के वायुमंडल में झांक चुके हैं, पर वहां की हवाओं के इस 'महाघूर्णन' (सुपर रोटेशन) का कोई सुराग नहीं दे पाए हैं। यूरोपीय अंतरिक्ष अधिकरण के प्रॉजेक्ट मैनेजर के शब्दों में, 'शुक्र ग्रह पर का यह वायुमंडलीय महाघूर्णन हमारे सौरमंडल का एक सबसे बड़ा रहस्य है। नए परिणाम उसे और भी रहस्यमय बना देते हैं।'
शुक्र ग्रह का धरातल, शायद वहां सक्रिय ज्वालामुखी भी हैं।