कुण्डली में राहु-केतु परस्पर 6 राशि और 180 अंश की दूरी पर दृष्टिगोचर होते हैं जो सामान्यतः आमने-सामने की राशियों में स्थित प्रतीत होते हैं। केतु का पक्का घर छठा है। केतु धनु में उच्च और मिथुन में नीच का होता है। कुछ विद्वान मंगल की राशि में वृश्चिक में इसे उच्च का मानते हैं। दरअसल, केतु मिथुन राशि का स्वामी है। 15ए अंश तक धनु और वृश्चिक राशि में उच्च का होता है। 15ए अंश तक मिथुन राशि में नीच का, सिंह राशि में मूल त्रिकोण का और मीन में स्वक्षेत्री होता है। वृष राशि में ही यह नीच का होता है। लाल किताब के अनुसार शुक्र शनि मिलकर उच्च के केतु और चंद्र शनि मिलकर नीच के केतु होते हैं। लेकिन यहां केतु के ग्यारहवें घर में होने या मंदा होने पर क्या सावधानी रखें, जानिए।
कैसा होगा जातक : गीदड़ स्वभाव वाला कुत्ता। दयालु, परोपकारी, मधुर भाषी लेकिन चिंतित। केतु ग्यारह के समय शनि यदि तीसरे भाव में है तो राजा के समान जीवन व्यतीत होगा।
यहां केतु शुभ है तो धन देता है। यह घर बृहस्पति और शनि से प्रभावित होता है। शनि तीसरे घर में हो तो यह बहुत धन देता है, जातक के द्वारा अर्जित धन उसके पैतृक धन से अधिक होगा, लेकिन फिर भी उसे अपने भविष्य के बारे में चिंता करने की आदत होगी। यदि बुध तीसरे भाव में हो तो यह एक राजयोग होगा। लेकिन यदि केतु यहां अशुभ हो तो जातक को पेट में समस्या बनी रहेगी। वह भविष्य के बारे में बहुत चिंचित रहेगा। यदि शनि भी अशुभ हो तो जातक की दादी अथवा मां परेशान रहेंगे। साथ की जातक को पुत्र या घर से कोई लाभ नहीं होगा।
4. व्यर्थ के खर्चें न करें।
5. पैतृक संपत्ति को न बेचें।
क्या करें :
1. शनि तथा शुक्र का उपाय करें।