लाल किताब के अनुसार इस तरह बनाते हैं कुंडली

लाल किताब में दो प्रकार से कुंडली बनाई जाती है। पहले प्रकार में हाथ की रेखा, पर्वत, भाव, राशि का निरीक्षण और निशानों को जांच परखकर कुंडली बनाते हैं दूसरे प्रकार में प्रचलित ज्योतिष शास्त्र की पद्धति द्वारा बनी कुंडली को परिवर्तित करके नई कुंडली बनाई जाती है। आओ जानते हैं कि कैसे बनाई जाती है कुंडली।
 

 
हॉरोस्कोप का परिवर्तन करना : ज्योतिषी पद्धति से बनी हॉरोस्कोप को लाल किताब के अनुसार बनाया जाता है। जैसे 12 ही खानों में कोई सी भी राशि हो सभी को हटाकर पहले खाने में मेष राशि को रखा जाता है और ग्रहों की स्थिति याथावत रहती है। मतलब यह कि राशियां हटा दी जाती है। पहले खाने या लग्न में यदि तुला राशि में कोई भी ग्रह है तो उसे तुला राशि में नहीं मानकर पहले भाव या लग्न में ही माना जाएगा। अर्थात मेष लग्न या राशि में ही माना जाएगा। 
 
 
लाल किताब में कुंडली में स्थित राशियों को नहीं माना जाता है। केवल भावों को ही माना जाता है। प्रत्येक व्यक्ति की हॉरोस्कोप मेष लग्न की ही होती है। बस फर्क होता है तो सिर्फ ग्रहों का। फिर कारकों को और स्वामी ग्रहों को अपने अनुसार बनाकर लिख लेते हैं।

1.पहले भाव का स्वामी ग्रह मंगल होता है जिसका कारक ग्रह सूर्य है।
2.दूसरे भाव का स्वामी ग्रह शुक्र होता है जिसका कारक ग्रह गुरु है।
3.तीसरे भाव का स्वामी ग्रह बुध होता है जिसका कारक ग्रह मंगल है।
4.चौथे भाव का स्वामी ग्रह चंद्र होता है जिसका कारक ग्रह भी चंद्र ही है।
5.पाचवें भाव का स्वामी ग्रह सूर्य होता है जिसका कारक ग्रह गुरु है।
6.छठे भाव का स्वामी ग्रह बुध होता है जिसका कारक ग्रह केतु है।
7.सातवें का स्वामी शुक्र होता है जिसका कारक ग्रह शुक्र और बुध दोनों हैं।
8.आठवें भाव का स्वामी ग्रह मंगल होता है जिसका कारक ग्रह शनि, मंगल और चंद्र हैं।
9.नवें भाव का स्वामी ग्रह गुरु होता है जिसका कारक ग्रह भी गुरु होता है।
10.दसवें भाव का स्वामी ग्रह शनि होता है और कारक भी शनि है।
11.ग्यारहवें भाव का स्वामी शनि होता है, लेकिन कारक गुरु है। 
12.बारहवें भाव का स्वामी गुरु होता है, लेकिन कारक राहु है।

इस प्रकार से लाल किताब अनुसार हॉरोस्कोप का निर्माण होता है, लेकिन फलादेश कथन से पहले ग्रहों की प्रकृति पर विचार करना बहुत जरूरी है। 
 
इसके बाद ग्रहों के मसनुई ग्रह देखे जाते हैं। जैसे सूर्य और बुध एक ही भाव में हो तो उसे बुध और सूर्य ग्रह नहीं मानकर मंगल नेक अर्थात उच्च का मंगल मानते हैं। इसी तरह सूर्य और शनि मिलकर मंगल बद अर्थात नीच का मंगल बन जाते हैं। ऐसे में कुंडली में उन्हीं की स्थिति मानकर फलादेश करते हैं। इसी तरह अन्य ग्रहों की युति से दूसरा ही ग्रह जन्म ले लेता है तब कुंडली में वे ग्रह ना मानकर दूसरा ही ग्रह मानकर ही फलादेश करते हैं। 

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