कुण्डली में राहु-केतु परस्पर 6 राशि और 180 अंश की दूरी पर दृष्टिगोचर होते हैं जो सामान्यतः आमने-सामने की राशियों में स्थित प्रतीत होते हैं। कुण्डली में राहु यदि कन्या राशि में है तो राहु अपनी स्वराशि का माना जाता है। यदि राहु कर्क राशि में है तब वह अपनी मूलत्रिकोण राशि में माना जाता है। कुण्डली में राहु यदि वृष राशि मे स्थित है तब यह राहु की उच्च स्थिति होगी। मतान्तर से राहु को मिथुन राशि में भी उच्च का माना जाता है। कुण्डली में राहु वृश्चिक राशि में स्थित है तब वह अपनी नीच राशि में कहलाएगा। मतान्तर से राहु को धनु राशि में नीच का माना जाता है। लेकिन यहां राहु के पहले घर में होने या मंदा होने पर क्या सावधानी रखी जानिए।
कैसा होगा जातक : दौलतमंद तो होगा पर खर्चा बहुत होगा। यहां व्यक्ति की बुद्धि ही उसका साथ देगी बशर्ते वह अति कल्पनावादी न हो। 1 से 6 तक जैसी बुध की हालत वैसी राहु की मानी जाएगी। 7 से 12 तक जैसी केतु की हालत वैसी राहु होगी। पहला घर मंगल और सूर्य से प्रभावित होता है, यह घर किसी सिंहासन की तरह होता है। पहले घर में बैठा ग्रह सभी ग्रहों का राजा माना जाता है। जातक अपनी योग्यता से बड़ा पद प्राप्त करेगा। इस घर में राहु उच्च के सूर्य के समान परिणाम देगा, लेकिन सूर्य को ग्रहण माना जाएगा अर्थात सूर्य जिस भाव में बैठा है उस भाव के फल प्रभावित होंगे। यदि मंगल, शनि और केतु कमजोर हैं तो राहु बुरे परिणाम देगा अन्यथा यह पहले भाव में अच्छे परिणाम देगा।
2. सोच-समझकर बुद्धि से काम लें और अति कल्पना से बचें।
3. व्यर्थ के तंत्र, मंत्र या यंत्र आदि के चक्कर में न पढ़ें।
4. पिता, गुरु और अपने से बड़ों का सम्मान करें।
5. ससुराल पक्ष से संबंध अच्छे रखें। ससुराल वालों से बिजली के उपकरण या नीले कपड़े नहीं लेने चाहिए।
3. बहते पानी में 400 ग्राम सुरमा बहाएं।
4. गुरु का उपाय करें।
5. 1:4 के अनुपात में जौ में दूध मिलाएं और बहते पानी में बहाएं।