कई लोग शनि के लिए लोहे का छल्ला या अंगुठी पहनते हैं। कुछ लोग घोड़े की नाल की अंगुठी बनवाकर पहनते हैं। यह शनि की ढैय्या, साढ़े साती, दशा, महादशा या अन्तर्दशा से बचने के लिए पहनते हैं। सामान्यतया इसका प्रयोग शनि, राहु और केतु के दुष्प्रभावों और बुरी आत्माओं से बचने के लिए शनिवार के दिन शाम के समय या अनुराधा, उत्तरा, भाद्रपद एवं रोहिणी नक्षत्र में शाम के समय दाहिने हाथ की माध्यम अंगुली में किया जाता है। लाल किताब के में छल्ला पहनने के कुछ नियम है। आओ जानते हैं वो नियम।
4. यदि बुध यदि 12वें भाव में हो या बुध एवं राहु मुश्तर्का या अलग-अलग भावों में मंदे हो रहे हों तो अंगुली में लोहे की रिंग पहनने से नुकसान होगा परंतु यह छल्ला जिस्म पर धारण करेंगे तो मददगार होगा। 12वां भाव, खाना या घर राहु का घर भी है। खालिस लोहे का छल्ला बुध शनि मुश्तर्का है। बुध यदि 12वें भाव में है तो वह 6टें अर्थात खाना नंबर 6 के तमाम ग्रहों को बरबाद कर देता है।