जम्मू-कश्मीर, हिमाचलप्रदेश और उत्तराखंड की शान समझे जाने वाले सेब खेती के मामले में अब अरुणाचलप्रदेश का नाम भी शुमार हो रहा है। यहाँ पिछले कुछ वर्षों से इसकी खेती की जा रही है, लेकिन इससे संबंधित बुनियादी ढाँचा के अभाव के कारण इसे अभी प्रमुख उत्पादक राज्य बनना बाकी है।
राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (एनएचबी) के प्रबंध निदेशक बिजय कुमार ने बताया हम अरुणाचलप्रदेश में उगाए गए सेब को प्रोत्साहित करना चाहते हैं, जो फसल तोड़ने के बाद उसके रखरखाव की जानकारी के अभाव होने के कारण पीछे चल रहा है।
रखरखाव की जानकारी के अभाव में फलों की हानि होती है। इस पूर्वोत्तर राज्य ने तीन वर्ष पहले सेब की व्यावसायिक खेती को अपनाया, जहाँ इसकी खेती तवांग, दिरांग, पश्चिम सियांग और जेरो जैसे चार जिलों में करीब 11,000 हेक्टेयर में फैली है।
अरुणाचल प्रदेश का कुल उत्पादन महज 9,800 टन है तथा इसकी उत्पादकता देश में सबसे कम यानी एक टन प्रति हेक्टेयर की है।
देश में सेब का अनुमानित वार्षिक उत्पादन करीब 20 लाख टन है, जहाँ इसे 2.71 लाख हेक्टेयर में उगाया जाता है। इनमें से जम्मू-कश्मीर में सर्वाधिक करीब 13.32 लाख टन सेब का उत्पादन किया जाता है, जिसके बाद हिमाचल में 5.10 लाख टन और उत्तराखंड में 1.32 लाख टन का उत्पादन होता है।
पूर्वोत्तर राज्यों में बागवानी के लिए एनएचबी और प्रौद्योगिकी मिशन की योजनाओं के तहत फल तोड़ाई के बाद उसके रखरखाव के लिए एनएचबी सेब उत्पादकों को प्रशिक्षण उपलब्ध करा रहा है।
कुमार ने कहा कि फल के रंग को सुधारने तथा प्रति हेक्टेयर उत्पादकता को बढ़ाने के लिए एनएचबी ने सोलन कृषि विश्वविद्यालय, हिमाचलप्रदेश के विशेषज्ञों को नियुक्त किया है।
उन्होंने कहा कि अरुणाचलप्रदेश के मामले में पूर्वोत्तर क्षेत्र कृषि विपणन निगम लिमिटेड (एनईआरएएमएसी) एनएचबी को मदद कर रहा है।
भारत से कुल 32,655 टन सेब का निर्यात होता है, जिसमें से अधिकांश पड़ोसी देश बांग्लादेश को निर्यात किया जाता है। भारत, बांग्लादेश को करीब 26,100 टन सेब का निर्यात करता है। भारत से नेपाल, चीन, जर्मनी और अमेरिका को भी सेब का निर्यात किया जाता है।