अपना खून बेचकर घर चलाने पर मजबूर हैं अमेरिकी, जानें क्या है इस दावे में सचाई

नृपेंद्र गुप्ता

गुरुवार, 17 नवंबर 2022 (15:39 IST)
अमेरिका में महंगाई चरम पर है। तेजी से बढ़ते दामों की वजह से लोगों का हाल-बेहाल है। हाल ही में 'द गॉर्जियन' में छपी खबर में कहा गया कि लोगों को घर चलाने के लिए 2-2 नौकरियां भी कम पड़ रही हैं। लोगों को अपना गुजारा करने के लिए अपना खून तक बेचना पड़ा रहा है।
 
'वेबदुनिया' ने अमेरिका में रहने वाले लोगों और वित्त विशेषज्ञों से बातचीत कर जाना कि आखिर क्यों बढ़ रही है अमेरिका में महंगाई? और क्या है अपना खून बेचकर घर चलाने संबंधी दावे का सच? 
 
इस समय अमेरिकी अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी समस्या इंटरेस्ट रेट (ब्याज दरों) में बढ़ोतरी है। इसे ऐसे समझते हैं कि 2020 में 10 साल का बॉन्ड यील्ड .25 प्रतिशत था, जो नवबंर 2022 में बढ़कर 3.83 प्रतिशत हो गया। इससे पता चलता है कि डॉलर से दुनियाभर की अर्थव्यवस्‍था का संचालन करने वाले अमेरिका में घरेलू मोर्चे पर महंगाई किस कदर कहर ढा रही है।
 
जनवरी 2013 में यील्ड बॉन्ड की कीमत 0.08 प्रतिशत थी, 2018 के अंत में यह बढ़कर 2.40 हो गई हालांकि 2022 की शुरुआत तक यह घटकर 0.08 प्रतिशत पर पहुंच गई। इस वर्ष यूक्रेन युद्ध के बाद बढ़ती महंगाई से अमेरिका की हालत खराब हो गई। महंगाई को काबू में करने के लिए फेडरल रिजर्व को ब्याज दर बढ़ानी पड़ी। देखते ही देखते यह ब्याज दर 3.83 तक पहुंच गई।
 
कोरोना के दुष्प्रभावों, यूक्रेन युद्ध के चलते प्रमुख तौर पर 3 कारणों- महंगाई, बढ़ती हुई बयाज दर और घटते रोजगार से अमेरिका एक नए संकट में घिर गया।
 
बढ़े ब्याज से आम आदमी हुआ बेहाल: महंगाई के दौर में बढ़ी हुई ब्याज दर ने आम आदमी की कमर तोड़ दी। अगर किसी व्यक्ति ने अमेरिका में घर खरिदते समय वेरिएबल विकल्प चुना था और उस समय सब खर्च मिलाकर 2% की दर से ब्याज लगता था तो वह आज सब खर्च मिलाकर 7 से 7.30 प्रतिशत हो गया। 2022 के पहले तक किसी ने नहीं सोचा था कि अमेरिका में इस वर्ष ब्याज दर तक 4 प्रतिशत के करीब पहुंच सकती है।
 
टेक इंडस्ट्री पर मंदी का असर : संयुक्त राष्‍ट्र में प्रिंसिपल प्लानिंग ऑफिसर सिद्धार्थ राजहंस ने बताया कि अगर टेक इंडस्ट्री और सिलिकॉन वैली की बात की जाए, जहां मैंने काफी साल गुजारे हैं, वहां पर आर्थिक मंदी सबसे ज्यादा जोर पकड़ रही है। layoffs काफी ज़्यादा बढ़ गए हैं और इस वजह से मिडिल क्लास अमेरिकियों के लिए बहुत मुश्किल हो गया है।
 
पहले ट्विटर में ढेरों जॉब्स कट किए गए, एलन मस्क आगे भी काफी जॉब्स हटाने वाले हैं। इसी तरह मेटा (फेसबुक) में भी 11,000 जॉब्स हटाए गए हैं। यही ट्रेंड अभी अमेजन में भी हो रहा है। यहां बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोगों को भी जॉब्स से हाथ धोना पड़ा है। हाल ही में एक परिचित सॉफ्टवेयर इंजीनियर जिन्हें मेटा ने ले-ऑफ कर दिया जिसके बाद उन्होंने अपने बेटों की तस्वीर सोशल मीडिया पर डालकर लोगों से नौकरी ढूंढने में मदद करने की गुहार लगाई थी।
 
लोगों के खून बेचकर गुजारा करने संबंधी खबरों की पुष्टि करते हुए राजहंस ने कहा कि दरअसल जो लोग अनस्किल्ड लेबर श्रेणी में हैं, उन्हें सबसे ज्यादा नौकरियों से निकाला गया है, क्योंकि आसानी से उनको रिप्लेसमेंट मिल जाएगा, ऐसे में कुछ इस तरह के एक्सट्रीम केसेस भी सामने आए हैं।
 
मुश्किल होगा आने वाला समय : फिनेस्ट्रोसाइकल्स के फाउंडर, फाइनेंशियल एस्ट्रोलॉजर और लंबे समय से अमेरिकी शेयर बाजार से जुड़े नितिन भंडारी के अनुसार अमेरिकियों के सामने महंगाई के साथ ही लोन की इंटरेस्ट रेट भी बड़ी समस्या बनी हुई है। उन्होंने कहा कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था क्रेडिट की अर्थव्यवस्था है। आम अमेरिकियों पर खर्चे के साथ ही होम लोन, कार लोन, क्रेडिट कार्ड आदि का भी भार होता है। वहां पर प्रवृत्ति जो है खर्च करने की है और जो सैलरी आने वाली होती, वह भी पहले ही खर्च हो जाती है।
 
उन्होंने कहा कि यूज कार की रीसेल वैल्यू 15% तक गिर चुकी है। यह बड़े आर्थिक संकट की ओर इशारा करता है। अगर यूएस फेडरल बैंक ने इंटरेस्ट रेट बढ़ाना बंद नहीं किया तो 2023 अंत 2024 के पहली छमाही में हमको अमेरिकी अर्थव्यवस्था में और भी कई बड़ी समस्याएं देखने को मिलेंगी।
 
क्या होगा भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर? : भंडारी ने कहा कि जिस गति से अमेरिका ने इंटरेस्ट रेट बढ़ाया है, उतनी तेजी से भारत में ब्याज दर नहीं बढ़ी है। इस वजह से निवेशकों को अमेरिका में गवर्नमेंट बॉन्ड में निवेश करने पर ज्यादा पैसा मिलेगा। इस वजह से अमेरिकी निवेशक अमेरिका में ही ज्यादा निवेश कर रहे हैं। इसका असर रुपए पर पड़ रहा है और भारतीय करेंसी की वैल्यू कम हो रही है।

बहरहाल अमेरिका का यह हाल देखकर ऐसा लगता है कि आने वाला समय राष्ट्रपति जो बाइडन, अमेरिकी नागरिकों के साथ ही पूरी दुनिया के लिए खासा मुश्किल साबित हो सकता है। यूरोप के कई देशों की आर्थिक स्थिति भी उतनी अच्छी नहीं है। अमेरिका और यूरोप के कंधों पर ही दुनिया की आर्थिक स्थिति काफी हद तक निर्भर करती है। अत: सभी देशों को अमेरिका से सबक ‍सीखने की आवश्कता है। 

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