इसमें कहा गया है कि यहां तक कि उद्योग भी अभी निवेश करने के मूड में नहीं दिख रहे हैं। वास्तव में उद्योग अपनी मौजूदा क्षमता का भी पूरा इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। उद्योगों में जो भी निवेश आ रहा है वह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के रूप में या टेलीकॉम स्पेक्ट्रम की खरीद जैसे जरूरी निवेश के रूप में आ रहा है।
इसमें कहा गया है कि बाजार में तरलता विदेशों से आ रही है, जहां जमा पर मिलने वाली ब्याज दर लगभग शून्य या ऋणात्मक है। विकसित देशों के केंद्रीय बैंकों द्वारा छापे जा रहे मुद्रा नोट एफडीआई के रूप में भारतीय बाजार में आ रहे हैं। इससे अल्पकाल में रुपए के विनिमय को स्थिरता जरूर मिल रही है।
एसोचैम का कहना है कि अच्छे मानसून से पैदावार अच्छी होने की स्थिति में ग्रामीण मांग में सुधार आएगा। सेवा क्षेत्र और कृषि क्षेत्र अर्थव्यवस्था की गति बनाए रखेंगे, साथ ही चुनींदा उद्योग क्षेत्रों में भी तेजी देखी जाएगी, लेकिन इसका प्रभाव इतना ज्यादा नहीं होगा कि कंपनियां नए सिरे से निवेश शुरू कर सकें। (वार्ता)