यदि बजट में ऐसा हो..!

- प्रो. श्रीपाल सकलेचा
जिस प्रकार व्यापार संचालन के लिए व्यापारी करदाता को आवश्यक व्ययों की कटौती मिलती है, मकान संपत्ति की आय की गणना में करों एवं मकान संपत्ति के रखरखाव आदि के लिए कटौती मिलती है, उसी प्रकार वेतनभोगी करदाताओं को भी सेवाओं के निष्पादन हेतु सकल वेतन में से कुछ प्रतिशत कटौती मिलना चाहिए। कुछ वर्षों पूर्व इसके लिए धारा 16 (1) के अंतर्गत प्रमाणित कटौती के रूप में एक निश्चित राशि की छूट दी जाती थी जिसे अब बंद कर दिया गया है। महंगाई की मार झेल रहे कर्मचारी वर्ग को सकल वेतन के 10% के बराबर प्रमाणित छूट पुन: प्रारंभ करना चाहिए।

मकान, संपत्ति से आय की गणना वास्तविक किराए के आधार पर हो :
किराए से दिए गए मकानों की आय वास्तविक किराए या प्रत्याशित किराए, जो दोनों में ज्यादा हो, के आधार पर की जाती है। कई मकान संपत्तियों में वर्षों पुराने किराएदार बहुत कम किराया दे रहे हैं, जबकि मकान स्वामियों को वर्तमान आधार पर स्थानीय कर देना पड़ते हैं और आयकर की दृष्टि से भी वर्तमान आधार पर मूल्यांकन किया जाता है, जो न तो तर्कसंगत है और न प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के अनुरूप है।

आयकर अधिनियम की धारा 23 को संशोधित करके मकान, संपत्ति का मूल्यांकन वास्तविक प्राप्त किराए के आधार पर किया जाना चाहिए।

दीर्घकालीन पूंजी लाभों की गणना के लिए सूचकांक का आधार वर्ष 2001 हो :
दीर्घकालीन पूंजी लाभों की गणना के लिए संपत्ति की लागत ज्ञात करने के लिए जबसे सूचकांकित लागत विधि अपनाई गई है तब से अब तक आधार वर्ष में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। अभी भी 30 वर्ष पुराने 1981 को आधार वर्ष माना गया है। अचल संपत्तियों का 1981 के सही मूल्य का निर्धारण करना न तो करदाता के लिए संभव है और न आयकर विभाग के लिए।

ऐसी ‍स्थिति में अनुमानित मूल्य को आधार पर सूचकांकित लागत ज्ञात की जाती है और विवाद की स्थिति उत्पत्न होती है। आयकर अधिनियम में संशोधन कर वर्ष 2001 को आधार मानकर नए सूचकांक घोषित करना चाहिए। इससे गणना कार्य भी सरल होगा तथा करदाताओं को भी न्याय मिल सकेगा।

दीर्घकालीन पूंजी लाभों की स्थिर दर 20% से घटाकर 15% की जाए :
दीर्घकालीन पूंजी लाभों पर 20% स्थिर दर से कर लेने का उद्देश्य करदाताओं को रियायत प्रदान करना था, लेकिन सामान्य आय पर कर की दरों के स्लैब बढ़ जाने एवं कर की दरें घटने से दीर्घकालीन पूंजी लाभों पर तुलनात्मक रूप से ऊंची दरों से कर चुकाना पड़ रहा है। कई बार 10% के स्लैब में आने वाले छोटे आयकरदाता को दीर्घकालीन पूंजी लाभ पर 20% की दर से कर देना पड़ता है, जो कि न्यायोचित नहीं है। अत: दीर्घकालीन पूंजी लाभ को या तो सामान्य दरों से संबद्ध करना चाहिए या स्थिर दर 20% से घटाकर 15% की जानी चाहिए।

बैंक सावधि जमा पर आधा प्रतिशत कर बैंक जमा करें :
जिस पर लाभांश पर कर चुकाने का दायित्व भुगतानकर्ता कंपनियों का होता है, उसी पर बैंकों द्वारा सावधि जमाओं पर दिए जाने वाले ब्याज पर कर चुकाने का दायित्व ब्याज प्राप्तकर्ता की बजाय बैंकों पर डाला जाना चाहिए, इससे जमाकर्ताओं को टीडीएस आदि से मुक्ति मिलेगी और दूसरी तरफ सरकार को तुलनात्मक रूप से ज्यादा राजस्व मिलेगा। वर्तमान में बैंकों के पास लगभग 50 लाख करोड़ रुपए की सावधि जमाएं हैं।

यदि इस पर 1/2 वार्षिक दर से ब्याज कर वसूला जाए तो सरकार को 25,000 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त हो सकता है, जो जमाकर्ताओं से प्राप्त होने वाले आयकर की तुलना में निश्चित रूप से अधिक होगा। बैंकों पर कर का भार न पड़े, इसके लिए बैंकें जमाकर्ताओं को दिए जाने वाले ब्याज की दरें घोषित दरों से आधा प्रतिशत कम कर सकती हैं।

पेंशन योजना में अंशदान की कटौती का सरलीकरण किया जाए :
धारा 80 CCD के अंतर्गत 1 अप्रैल 2004 या इसके बाद नियुक्त सरकारी कर्मचारियों एवं अन्य नियोक्ताओं के यहां कार्यरत कर्मचारियों के लिए अंशदायी पेंशन योजना लागू की गई है। इसके लिए प्रथम तो कर्मचारी और नियोक्ता दोनों का अंशदान वेतन की आय में शामिल किया जाता है और बाद में सकल कुल आय में से दोनों के अंशदान पर 10%-10% तक कटौती स्वीकृत की जाती है। इस प्रावधान का सरलीकरण किया जा सकता है। नियोक्ता के 10% से अधिक अंशदान को वेतन की आय में शामिल किया जाए और कर्मचारी के अंशदान पर छूट दी जाए तो गणना कार्य सरल हो जाएगा।

लेखक के बारे में :
 
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प्रो. श्रीपाल सकलेचा वर्तमान में पीएमबी गुजराती कॉमर्स कॉलेज इंदौर में कार्यरत हैं। वर्ष 1977 से उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय श्री सकलेचा की आयकर एवं अन्य करों में विशेषज्ञता है साथ वे आयकर एवं अन्य प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों पर 18 किताबें लिख चुके हैं। हिन्दी में इनकम टैक्स पर श्रेष्ठ पुस्तक के लिए वर्ष 1993 में तत्कालीन वित्तमंत्री मनमोहनसिंह (वर्तमान प्रधानमंत्री) द्वारा उन्हें सम्मानित किया जा चुका है।

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