कपिल की कप्तानी ने किया कमाल

रविवार, 23 जनवरी 2011 (08:45 IST)
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प्रूडेंशियल विश्वकप का यह तीसरा संस्करण (1983) खेला तो गया इंग्लैंड में ही पर थोड़े से परिवर्तन के साथ। स्पर्धा में शामिल 8 टीमों को अपने-अपने समूह में शामिल टीमों के खिलाफ एक नहीं बल्कि दो-दो मैच खेलना थे। इससे 12 के स्थान पर लीग मैचों की संख्या 24 हो गई तथा स्पर्धा रोचक और जीवंत।

इस विश्वकप के पूर्व श्रीलंका को सातवीं टीम के रूप में टेस्ट दर्जा प्राप्त हो गया था। आठवीं टीम बनी जिम्बाव्वे। जिम्बाव्वे ने बरमूडा को आईसीसी कप फाइनल में पराजित कर विश्व कप में पहली बार प्रवेश किया था। 9 से 20 जून के बीच लीग के 24 मुकाबले दोनों समूह की टीमों ने खेले।

जिम्बाब्वे के खिलाफ टनब्रिज में 17/5 की विषम स्थिति में कपिल की 175 रनों की नाबाद कप्तानी पारी ने भारतीय उम्मीदों में नए प्राण फूँके। इंग्लैंड, पाकिस्तान ने अ तथा वेस्टइंडीज, भारत ने ब समूह से सेमीफाइनल में प्रवेश किया।

पहली बार सेमी में पहुँचे भारत का मुकाबला इंग्लैंड से हुआ। बिन्नी (43/2) व मोहिंदर (27/2) की गेंदों ने इंग्लिश टीम का प्रारंभ बिगाड़ा तो कप्तान कपिल ने अंत और मैन ऑफ द मैच रहे मोहिंदर अमरनाथ ने 46, यशपाल शर्मा ने 61 व संदीप पाटिल ने 51 रन बनाते हुए भारत को फाइनल की राह दिखाई।

उधर इंडीजी गेंदबाजों ने मोहसिन की पारी (70) को अनदेखा करते हुए पाकिस्तान की पारी को 184/8 पर सीमित किया और विव रिचर्ड्स (नाबाद 80) व लेरी गोम्स (नाबाद 50) के बीच की अविजित साझेदारी (132/3) ने कप्तान लॉयड को लगातार तीसरा फाइनल सुख दे दिया।

लॉर्ड्स के फाइनल में जिस आश्वस्ति भाव से इंडीजी गेंदों ने भारतीय पारी को निपटा दिया (183 रन) उससे लगा इंडीजी विजय की हैटट्रिक को रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है। पर जिस नायाब तरीके से कपिल ने विव व लॉयड तथा गावस्कर ने गोम्स व मार्शल के कैच लिए तथा मोहिंदर (12/3) व मदन (31/3) ने गेंदें कीं उससे भारत व कपिल की कप्तानी पर सफलता का नशा चढ़ ही गया। (नईदुनिया)

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