हिन्दी से खिलवाड़, सुशील दोशी ने खोला पूर्व क्रिकेटरों के खिलाफ मोर्चा
रविवार, 10 दिसंबर 2017 (20:30 IST)
इंदौर। 'पद्मश्री' से सम्मानित मशहूर खेल कमेंटेटर सुशील दोशी खासकर टीवी चैनलों पर ज्यादातर पूर्व क्रिकेटरों की हिन्दी कमेंट्री के गिरते स्तर के कारण बेहद खफा हैं। उनका कहना है कि क्रिकेट को देश के घर-घर तक पहुंचाने वाली जुबान से इन कमेंटेटरों का खिलवाड़ रोकने के लिए बीसीसीआई को अपनी जिम्मेदारी निभानी ही चाहिए।
अगले साल खेल कमेंट्री की दुनिया में 50 साल पूरे करने जा रहे दोशी ने यहां दिए एक साक्षात्कार में कहा कि ज्यादातर पूर्व क्रिकेटर व्याकरण के हिसाब से निहायत गलत और अशुद्ध हिन्दी बोलकर कमेंट्री कर रहे हैं, नतीजतन खासकर टीवी चैनलों पर हिन्दी को उचित मान-सम्मान नहीं मिल रहा है।
उन्होंने शहर के जावरा कंपाउंड इलाके में स्थित अपने घर पर कहा कि हिन्दी वह जुबान है जिसने भारत में क्रिकेट को मशहूर करने में अहम भूमिका निभाई है। बड़े दर्शक और श्रोता वर्ग के कारण हिन्दी का महत्व दिनोदिन बढ़ ही रहा है। लेकिन मुझे अफसोस है कि देश में पूर्व क्रिकेटरों की गलत हिन्दी कमेंट्री खामोशी से सहन की जा रही है। कमेंट्री के नाम पर इस भाषा से पूर्व क्रिकेटरों का खिलवाड़ बंद होना चाहिए।
दोशी ने कहा कि अच्छे कमेंटेटरों से मुझे कोई शिकायत नहीं है। भारतीय टीम के पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर अच्छी हिन्दी कमेंट्री कर लेते हैं। पूर्व बल्लेबाज नवजोत सिंह सिद्धू भी हिन्दी कमेंटेटर के रूप में खासे लोकप्रिय हैं। भाषायी शुद्धता की कसौटी पर हिन्दी और अंग्रेजी कमेंट्री की तुलना करते हुए वे सवाल करते हैं कि क्या टीवी चैनलों पर कमेंट्री के दौरान गलत अंग्रेजी बोली जा सकती है।
दोशी ने कहा कि मुझे याद है कि दक्षिण अफ्रीका में कुछ पूर्व क्रिकेटरों ने जब एक बार कमेंट्री के वक्त व्याकरण की दृष्टि से गलत अंग्रेजी बोली थी तो वहां के अखबारों में उनकी कड़वी आलोचना की गई थी।
दोशी ने जोर देकर कहा कि कमेंट्री की दुनिया में हिन्दी की अस्मिता की रक्षा की जिम्मेदारी से बीसीसीआई पल्ला नहीं झाड़ सकता। 70 वर्षीय कमेंटेटर ने कहा कि बीसीसीआई टीवी चैनलों को क्रिकेट मैचों के प्रसारण के अधिकार बेचता है लेकिन इस देश में हिन्दी भाषा की अस्मिता को हर्गिज नहीं बेचा जा सकता।
बीसीसीआई को मैचों के प्रसारण अधिकार बेचने के अनुबंध में विशेष प्रावधान करने चाहिए ताकि संबंधित टीवी चैनलों पर शुद्ध हिन्दी कमेंट्री सुनिश्चित हो सके। बीसीसीआई को अच्छे हिन्दी कमेंटेंटरों का चुनाव कर एक पैनल तैयार करनी चाहिए। इसके साथ ही पूर्व क्रिकेटरों को हिन्दी कमेंट्री का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
वे इस बात से कतई सहमत नहीं हैं कि अच्छी क्रिकेट कमेंट्री के लिए एक पेशेवर खिलाड़ी के रूप में खेल की बारीकियां जाननी अनिवार्य है। हिन्दी के सबसे ज्यादा अनुभवी खेल कमेंटेटरों में शामिल इस हस्ती ने कहा कि क्रिकेट कोई रॉकेट साइंस नहीं है। कोई गैरखिलाड़ी कमेंटेटर भी अध्ययन और मनन के जरिए इस खेल की बारीकियां समझकर अच्छी कमेंट्री कर सकता है। इस सिलसिले में हमारे पास उदाहरणों की कोई कमी नहीं है।
हिन्दी कमेंट्री करने वाले कुछ पूर्व क्रिकेटरों का नाम लिए बगैर वे कटाक्ष करते हैं कि हिन्दी कमेंट्री की दुनिया में कुछ ऐसे पूर्व क्रिकेटर भी सक्रिय हैं जिन्होंने अपने करियर में इक्का-दुक्का टेस्ट मैच खेले हैं और इनमें उन्हें नाकाम होते देखा गया है लेकिन आज वे कमेंटेटर के रूप में देश के स्टार क्रिकेटरों के खेल की कुछ इस तरह कमियां निकालते हैं, मानो मौजूदा खिलाड़ियों को खेलना ही नहीं आता। मैंने तो अपनी पारी खेल ली। मैं बस इतना चाहता हूं कि नई पीढ़ी को शुद्ध हिन्दी कमेंट्री सुनने को मिले और इस भाषा की गरिमा बरकरार रह सके।
दोशी ने वर्ष 1968 में मध्यप्रदेश और राजस्थान के बीच इंदौर के नेहरू स्टेडियम में खेले गए रणजी मैच के लिए पहली बार हिन्दी में कमेंट्री की थी। गुजरे 49 सालों में वे अलग-अलग रेडियो और टेलीविजन चैनलों के लिए 400 से ज्यादा एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों और टी-20 मैचों की कमेंट्री कर चुके हैं।
इसके अलावा उन्होंने 85 से ज्यादा टेस्ट मैचों के लिए भी कमेंट्री की है। दोशी संभवत: ऐसे अकेले हिन्दी कमेंटेटर हैं जिन्होंने क्रिकेट के एकदिवसीय और टी-20 प्रारूपों के कुल जमा 10 विश्व कपों का आंखों देखा हाल श्रोताओं और दर्शकों को सुनाया है। खेल कमेंट्री की दुनिया में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'पद्मश्री' से वर्ष 2016 में नवाजा गया था। चित्र सौजन्य : यूट्यूब