ब्रह्मांड में जिंदगी टटोलता दक्षिण अफ्रीका

शनिवार, 12 जनवरी 2013 (13:08 IST)
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अंतरिक्ष रहस्यों से भरा है। किस्से, कहानियों में एलियन और उड़नतश्तरियों का जिक्र होता है। विज्ञान अलग अलग ग्रहों में जाकर जीवन टटोलता है। आखिर इंसान के लिए अंतरिक्ष इतना अहम क्यों है।

अंतरिक्ष दूरबीन से हम हजारों मील दूर तारों को करीब से देख सकते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, हम इनसे यह भी देख सकते हैं कि सालों पहले ये तारे कैसे हुआ करते थे। दक्षिण अफ्रीका में दुनिया का सबसे बड़ा रेडियो टेलीस्कोप स्क्वेयर किलोमीटर ऐरे लगाया गया है।

वैज्ञानिकों का दावा है कि इसकी मदद से वे उस समय की तस्वीरें भी निकाल पाएंगे जब पहली बार ये तारे आसमान में जगमगाए थे। बिग बैंग के सिद्धांत के अनुसार एक विशाल विस्फोट के बाद ही सौर मंडल को ऐसी शक्ल मिली।

वैज्ञानिकों को भरोसा है कि उनके शक्तिशाली एंटीने अंतरिक्ष में जीवन की संभावनाएं भी खोज सकेंगे। प्रोजेक्ट से जुड़े वैज्ञानिक कहते हैं कि अगर अंतरिक्ष में कहीं जीवन हैं और वह अपने संकेत छोड़ रहा है तो उसकी पहचान अफ्रीकी महाद्वीप की सबसे बड़ी अंतरिक्ष प्रयोगशाला कर लेगी।

अंतरिक्ष कार्यक्रम सिर्फ आकाश के लिए ही नहीं हैं। इनकी मदद से अब तक धरती को ही ज्यादा फायदा हुआ है। सैटेलाइटों की मदद से सटीक नक्शे बने। तेल, पानी और खनिजों के सुराग मिले। लेकिन एक काम बाकी रह गया, यह है पूरी धरती की त्रिआयामी तस्वीर बनाना।

अब दो सैटेलाइट धरती की 3डी तस्वीरें बना रही हैं। जर्मनी के ये उपग्रह धरती से 500 किलोमीटर की दूरी पर रह कर काम कर रहे हैं। हर रोज ये पृथ्वी के 15 चक्कर लगाते हैं और रडार के जरिए तसवीरें भेजते हैं। अगले कुछ सालों में पूरी पृथ्वी की 3डी तसवीरें उपलब्ध होंगी जिनका इस्तेमाल मोबाइल फोन पर भी किया जा सकेगा। सटीक 3डी तस्वीरें आपदा प्रबंधन, नेवीगेशन, नए रास्तों के निर्माण और जैव विविधता के लिए भी फायदेमंद होगी। इनके जरिए सीमा विवादों का भी हल खोजा जा सकेगा।

मंथन के इस अंक में अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर चर्चा भी है। इंटरव्यू में जर्मनी के डीएलआर रिसर्च सेंटर के बारे जानकारी दी जा रही है। डीएलआर रिसर्च सेंटर से ही इन उपग्रहों पर लगातार नजर रखी जा रही है। यह समझने की कोशिश भी की जा रही है कि दुनिया भर में अंतरिक्ष को ले कर ऐसी होड़ क्यों मची है।

कार्यक्रम में पर्यावरण से जुड़ी एक दिलचस्प रिपोर्ट है। अकसर बड़ी रसोइयों में खाना बनाने के बाद बचे तेल को फेंक दिया जाता है। नाली में बहता ये तेल नदियों को गंदा करता है। सर्दियों में यह जम जाता है और पाइपों को बंद कर सकता है। लेकिन इन सब परेशानियों को टालने के लिए एक विकल्प है।

ऑस्ट्रिया के टिरोल शहर में बर्बाद तेल को रिसाइकिल किया जा रहा है। पुराने जहाज के इंजन का इस्तेमाल कर तेल से बिजली बनाई जा रही है। बिजली से वाटर ट्रीटमेंट बड़ा प्लांट चल रहा है। सफाई के दौरान पानी से निकले कचरे से सीमेंट उद्योग के लिए कच्चा माल तैयार हो रहा है।

इस अंक कतर के तेल उद्योग और प्लास्टिक व रबर के कचरे से बनते स्कूलों पर भी रिपोर्टें हैं। आखिरी रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह से समुद्र के भीतर बिछाए जाने वाले मजबूत पाइपें बनाए जाते हैं। उच्च दबाव और कठिन हालात में काम करने वाले इन पाइपों को बनाना किसी बेजोड़ कारीगरी से कम नहीं है।

तो उम्मीद है कि आपको शनिवार सुबह साढ़े दस बजे दूरदर्शन (डीडी) नेशनल पर प्रसारित होने वाला हमारा कार्यक्रम मंथन पसंद आएगा। मंथन से जुड़ी रिपोर्टों के बारे में आप अपने सवाल, सुझाव और राय हम तक डॉयचे वेले हिंदी के फेसबुक पेज के जरिए पहुंचा सकते हैं।

- आईबी/ओएसजे

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