भारत में 2 साल में 228 पत्रकारों पर 256 हमले, पत्रकारिता का पेशा बन गया खतरनाक

DW

शनिवार, 6 नवंबर 2021 (17:04 IST)
रिपोर्ट : विवेक कुमार
 
मई 2019 से इस साल अगस्त के बीच भारत में पत्रकारों पर 256 हमले हुए। न्यूयॉर्क स्थित संगठन पोलिस प्रोजेक्ट ने पत्रकारों के खिलाफ भारत में हिंसा पर एक शोध किया है जिसमें इन हमलों की मैपिंग की गई है।
 
भारत में पत्रकारों को फर्जी मामलों में गिरफ्तारी से लेकर हत्या तक कई तरह की हिंसा झेलनी पड़ी है जिस कारण भारत में पत्रकारिता एक खतरनाक पेशा बन गया है। न्यू यॉर्क स्थित पोलिस प्रोजेक्ट ने यह निष्कर्ण एक विस्तृत अध्ययन के बाद निकाला है। इस अध्ययन में पिछले मई 2019 से लेकर इस साल अगस्त तक की घटनाओं को शामिल किया गया है।
 
पोलिस प्रोजेक्ट ने अलग-अलग विषयों की कवरेज के दौरान हुईं घटनाओं को जमा किया है। इसके मुताबिक जम्मू कश्मीर में 51, सीएए कानून के विरोध प्रदर्शनों के दौरान 26, दिल्ली दंगों के दौरान 19 और कोविड मामलों की कवरेज के दौरान 46 घटनाएं हुईं। किसान आंदोलन के दौरान पत्रकारों के खिलाफ हिंसा की अब तक 10 घटनाएं हो चुकी हैं। बाकी 104 घटनाएं पूरे देश के दौरान अलग-अलग विषयों और समय से जुड़ी हैं।
 
228 पत्रकारों पर हुई हिंसा
 
भारत में इस समय कई पत्रकार जेलों में बंद हैं। केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन को पिछले साल अक्टूबर में उस वक्त गिरफ्तार कर लिया गया था जब वह उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुए एक बलात्कार और हत्या के मामले की खबर के सिलसिले में यूपी गए थे। कप्पन तभी से आईपीसी की धारा 153ए (समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 295ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना), 124ए (देशद्रोह), 120बी (साजिश), यूएपीए के तहत जेल में हैं। पिछले दिनों उनकी 90 वर्षीय मां का निधन हुआ तब वह अपनी मां से मिल भी नहीं पाए।
 
पोलिस प्रोजेक्ट की रिपोर्ट कहती है कि इस समयावधि में कुल 228 पत्रकारों को हिंसा का सामना करना पड़ा। संस्था की सुचित्रा विजयन कहती हैं कि भारत में पत्रकारों को सरकार द्वारा ही अलग-अलग तरीकों से काम करने से रोका जा रहा है। विजयन कहती हैं कि सरकार भारत में पत्रकारों को धमकाकर, गिरफ्तारी या फर्जी मामले दर्ज करके या किसी तरह की पाबंदियां लगाकर चुप करवा रही है। जो सरकार के खिलाफ बोलते हैं उन पर देशद्रोह जैसे मुकदमों और गिरफ्तारी का खतरा लगातार बना रहता है।
 
भारत का रिकॉर्ड खराब
 
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की एक रिपोर्ट में भी भारत को पत्रकारिता के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में शामिल किया गया था। संस्था द्वारा जारी 2021 वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत को 180 देशों में 142 स्थान मिला है, जो मीडिया स्वतंत्रता की खराब स्थिति को जाहिर करता है। इसी साल रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने दुनिया के 37 ऐसे नेताओं की सूची जारी की थी, जो मीडिया पर लगातार हमलावर हैं। उनमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी नाम है।
 
पोलिस प्रोजेक्ट की सुचित्रा विजयन कहती हैं भारत में लगातार दमन और बढ़ती पाबंदियों ने मीडिया की आजादी को बड़ा खतरा पैदा कर दिया है। उन्होंने बताया कि जो पत्रकार सरकार से सवाल करते हैं, उनके खिलाफ सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने का अभियान चलाया जाता है। कई बार तो बलात्कार या हत्या जैसी धमकियां भी दी जाती हैं।
 
किसान आंदोलन की कवरेज कर रहे एक स्वतंत्र पत्रकार मनदीप पूनिया को इसी साल 30 जनवरी को दिल्ली के सिंघु बॉर्डर से गिरफ्तार कर लिया गया था। उनपर IPC की धारा 186 (सरकारी काम में बाधा पहुंचाना) IPC की धारा 353 (सरकारी अधिकारी पर हमला करना) IPC की धारा 332 (लोकसेवक को चोट पहुंचना) और IPC की धारा 34 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। बाद में उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया।

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