क्या है भविष्य के लिए संधि जो यूएन में पारित हुई

DW

मंगलवार, 24 सितम्बर 2024 (07:57 IST)
संयुक्त राष्ट्र महासभा में ‘भविष्य के लिए संधि’ को अपना लिया गया है। 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना करने के लिए इस संधि में दुनिया को एकजुट करने पर बात की गई है।
 
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना करने के लिए 'भविष्य के लिए संधि' का प्रस्ताव पारित किया है। अब असली चुनौती यह है कि दुनिया के बंटे हुए देशों को एकजुट कर संधि के 56 लक्ष्यों को तेजी से लागू किया जाए।
 
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने 193 सदस्यों वाली महासभा को इस संधि को मंजूर करने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि इससे जलवायु परिवर्तन, एआई, बढ़ते संघर्ष, असमानता और गरीबी जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए देशों का एकजुट होकर काम करने का रास्ता खुला है और आठ अरब लोगों का जीवन बेहतर बनाया जा सकता है। 
 
उन्होंने कहा, "हम यहां बहुपक्षीयता को संकट से उबारने के लिए आए हैं। अब यह हमारा साझा भविष्य है कि हम इस रास्ते पर चलें। इसके लिए केवल सहमति नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाई की आवश्यकता है।"
 
दो-दिवसीय शिखर सम्मेलन
रविवार को शुरू हुए दो दिवसीय 'भविष्य के शिखर सम्मेलन' के उद्घाटन के दौरान 42 पेज की इस संधि को अपनाया गया। सोमवार को भी यह सम्मेलन जारी रहेगा, जहां ईरान के मसूद पेसेशकियन, यूक्रेन के वोलोदिमीर जेलेंस्की, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन और रूस के उप विदेश मंत्री सर्गेई वर्शिनिन के भाषण होंगे।
 
संधि को अपनाने को लेकर रविवार को महासभा की बैठक की शुरुआत में संशय बना हुआ था। स्थिति इतनी अनिश्चित थी कि महासचिव गुटेरेश ने तीन अलग-अलग भाषण तैयार किए थे, एक पारित हो जाने के लिए, एक नामंजूर हो जाने के लिए और एक उस स्थिति के लिए जब परिणाम स्पष्ट न हो।
 
रूस के प्रतिनिधि सर्गेई वर्शिनिन ने शुरुआत में ही संधि में एक संशोधन का प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा, "कोई भी इस संधि से खुश नहीं है।" लेकिन उनका यह अनुमान गलत साबित हुआ। अफ्रीका के 54 देशों ने रूस के संशोधन का कड़ा विरोध किया। कांगो गणराज्य ने अफ्रीकी देशों की ओर से संशोधन पर मतदान न करने का प्रस्ताव रखा, जिसे मेक्सिको ने भी समर्थन दिया। 
 
मतदान में अफ्रीकी देशों के इस प्रस्ताव को 143 देशों का समर्थन मिला, जबकि केवल 6 देशों, ईरान, बेलारूस, उत्तर कोरिया, निकारागुआ, सूडान और सीरिया, ने रूस का समर्थन किया। 15 देश गैरहाजिर रहे। 
 
इसके बाद महासभा के अध्यक्ष फिलेमॉन यांग ने संधि पर मतदान कराया और स्वीकृति के संकेत में हथौड़ा मारा, जिसके बाद हॉल तालियों से गूंज उठा।
 
कई देशों ने जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए अमीर देशों द्वारा धन उपलब्ध कराने की फौरी जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने विभिन्न देशों के बीच बढ़ते अविश्वास पर चिंता जताई और जलवायु परिवर्तन के कारण संभावित संकटों के जोखिम बढ़ने पर बात की।
 
गुटेरेश ने कहा, "अंतरराष्ट्रीय चुनौतियां, हमारे उन्हें हल करने की क्षमता से ज्यादा तेजी से बढ़ रही हैं। संकट एक दूसरे से मिलकर और ज्यादा बढ़ रहे हैं। जैसे कि डिजिटल तकनीकें जलवायु के बारे में गलत जानकारियों को बढ़ावा दे रही हैं। इससे ध्रुवीकरण और अविश्वास बढ़ता है।”
 
बार्बेडोस की प्रधानमंत्री मिया मोटली ने कहा, "हमारी संस्थाओं में अविश्वास, शासकों और शासितों में अविश्वास तब तक दुनिया को अलग-थलग करता रहेगा जब तक हम उन लोगों तक नहीं पहुंचते जो नई दुनिया बनाने के लिए जरूरी हैं।”
 
रूस की अफ्रीका में बढ़ती पकड़ को झटका
रूस ने अफ्रीका के कई देशों जैसे माली, बुर्किना फासो, नाइजर और मध्य अफ्रीकी गणराज्य आदि में अपनी प्रभावशाली उपस्थिति बनाई है। लेकिन अफ्रीकी महाद्वीप द्वारा रूस के संशोधनों को खारिज करना और मेक्सिको जैसे प्रमुख लैटिन अमेरिकी देश का समर्थन, कुछ कूटनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, मॉस्को के लिए एक बड़ा झटका है।
 
गुटेरेश ने इस फैसले पर राहत जाहिर करते हुए दुनिया के नेताओं से इस संधि को तुरंत लागू करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि नेताओं को संवाद और बातचीत को प्राथमिकता देनी चाहिए, मध्य पूर्व, यूक्रेन और सूडान में चल रहे युद्धों को समाप्त करना चाहिए, शक्तिशाली संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार करना चाहिए, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली में तेजी से सुधार लाना चाहिए, जीवाश्म ईंधनों को छोड़ने की प्रक्रिया को तेज करना चाहिए और युवा पीढ़ी को सुनना चाहिए व उन्हें निर्णय प्रक्रिया में शामिल करना चाहिए।
 
विकासशील देशों का समूह जी77
संयुक्त राष्ट्र के विकासशील देशों के प्रमुख समूह जी77, जिसमें अब 134 सदस्य हैं, ने गुटेरेश की बात का समर्थन किया। युगांडा की प्रधानमंत्री रोबिनाह नबांजा ने महासभा में कहा कि यह संधि केवल एक औपचारिकता नहीं बननी चाहिए बल्कि इसमें वैश्विक नेतृत्व के सभी स्तरों पर राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रतिबद्धता होनी चाहिए ताकि वर्तमान चुनौतियों का व्यावहारिक समाधान निकाला जा सके और भविष्य में वैश्विक प्रगति के लिए एक मजबूत नींव रखी जा सके। 
 
उन्होंने जोर देकर कहा कि भविष्य "किसी भी प्रकार के उत्पीड़न से मुक्त" होना चाहिए और विकसित व विकासशील देशों के बीच बढ़ती खाई को कम करना चाहिए। नबांजा ने यह भी कहा कि जी77 को इस बात का अफसोस है कि संधि में विकसित देशों द्वारा इस अंतर को पाटने के लिए उठाए जाने वाले कदमों को साफ तौर पर जाहिर नहीं किया गया है।
 
संधि की चुनौतियां और उम्मीदें
'भविष्य के लिए संधि' कहती है कि यह ऐसे समय में हो रही है जब दुनिया बहुत बड़े बदलावों से गुजर रही है। संधि यह चेतावनी देती है कि "बढ़ते विनाशकारी और वजूद के लिए जोखिम" दुनिया को संकट और बिखराव की स्थिति में धकेल सकते हैं। गुटेरेश ने संधि के कुछ प्रमुख प्रावधानों और उसकी दो सहसंधियों, ग्लोबल डिजिटल कॉम्पैक्ट और भविष्य की पीढ़ियों पर घोषणा पत्र, पर जोर दिया। 
 
संधि में इस बात पर प्रतिबद्धता जताई गई है कि संयुक्त राष्ट्र की 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद में सुधार किए जाएं ताकि यह आज की दुनिया का बेहतर ढंग से प्रतिनिधित्व कर सके और अफ्रीका के खिलाफ ऐतिहासिक अन्याय को दूर कर सके। सुरक्षा परिषद में अफ्रीका का कोई स्थायी सदस्य नहीं है। इसमें एशिया-प्रशांत क्षेत्र और लैटिन अमेरिका के प्रतिनिधित्व में कमी को भी दूर करने की बात कही गई है।
 
अंतरिक्ष में हथियारों की होड़
गुटेरेश ने कहा कि इस संधि के जरिए एक दशक से अधिक समय में पहली बार परमाणु हथियारों को खत्म करने पर बात हुई है और इसमें अंतरिक्ष में हथियारों की होड़ को रोकने और घातक ऑटोमेटिक हथियारों के इस्तेमाल को नियंत्रित करने की प्रतिबद्धता भी शामिल है। ग्लोबल डिजिटल कॉम्पैक्ट में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर वैश्विक स्तर पर पहला समझौता करने की बात कही गई है। एआई पर कानून बनाने को लेकर पिछले कुछ समय से बहस हो रही है। 
 
जहां तक मानवाधिकारों का सवाल है, गुटेरेश ने कहा, "महिलाओं के अधिकारों में गिरावट और प्रजनन अधिकारों पर हो रहे हमलों के बीच, सरकारें उन कानूनी, सामाजिक और आर्थिक अवरोधों को हटाने के लिए प्रतिबद्ध हैं जो महिलाओं और लड़कियों को हर क्षेत्र में अपनी पूरी क्षमता हासिल करने से रोकते हैं।"
 
वीके/सीके (एपी, रॉयटर्स)

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