रूसी मीडिया की रिपोर्टों के अनुसार सीरिया में सत्ता गंवाने के बाद बशर अल असद परिवार समेत मॉस्को पहुंच गए हैं जहां उन्हें शरण भी मिल गई है। उधर दमिश्क में बड़ी संख्या में आम लोग असद की सरकार गिरने का जश्न मना रहे हैं। इससे पहले रविवार को विद्रोहियों ने राजधानी दमिश्क पर नियंत्रण कर लिया। सीरिया में सरकारी टेलीविजन ने असद की सत्ता के अंत का ऐलान किया।
समाचार एजेंसी तास समेत रूसी मीडिया संस्थानों ने क्रेमलिन के एक अज्ञात सूत्र के हवाले से खबर दी है कि बशर अल असद मॉस्को में हैं। तास की रिपोर्ट में कहा गया है, 'असद और उनके परिवार के सदस्य मॉस्को पहुंचे। रूस ने मानवीय आधार पर उन्हें शरण दे दी है।'ALSO READ: सीरिया छोड़कर भागे राष्ट्रपति बशर, दमिश्क पर विद्रोहियों का कब्जा
इससे पहले रविवार को विद्रोहियों ने राजधानी दमिश्क पर नियंत्रण कर लिया। सीरिया में सरकारी टेलीविजन ने असद की सत्ता के अंत का ऐलान किया।
पीएम ने कहा, विपक्षी गुट के साथ सहयोग को तैयार
हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) के नेतृत्व में विद्रोही गुट ने राजधानी दमिश्क को 'आजाद' कराने की घोषणा की। विद्रोही गठबंधन ने कहा है कि वे अब सीरिया में सत्ता के हस्तांतरण को पूरा करने पर काम कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री मुहम्मद गाजी जलाली ने भी कहा कि उनकी सरकार विपक्ष की ओर हाथ बढ़ाने के लिए तैयार है। ब्रिटिश अखबार 'गार्डियन' के मुताबिक जलाली ने देश छोड़कर ना जाने का आश्वासन देते हुए कहा, 'मैं अपने घर में हूं और मैं कहीं नहीं गया, और ऐसा इसलिए कि मैं इस देश का हूं।'
तुर्की ने भी आधिकारिक स्तर असद सरकार के गिरने की पुष्टि की है। तुर्की के विदेश मंत्री हकान फिदान ने कहा, 'यह एकाएक नहीं हुआ। पिछले 13 साल से देश में उथल-पुथल थी।'
समाचार एजेंसी एपी के अनुसार दमिश्क के लोग सड़कों पर उतरकर असद की सत्ता खत्म होने का जश्न मना रहे हैं। असद परिवार आधी सदी से सीरिया की सत्ता में था। सरकारी टीवी पर प्रसारित एक वीडियो में बताया गया कि जेलों में बंद सभी कैदियों को आजाद कर दिया गया है।
2018 के बाद यह पहली बार है जब विद्रोही गुट दमिश्क में दाखिल हुआ है। विपक्षी गुट की सैन्य कार्रवाई 27 नवंबर को शुरू हुई थी। इदलीब से आगे बढ़ते हुए पहले अलेप्पो, फिर होम्स शहर पर उन्होंने नियंत्रण बनाया। खबरों के मुताबिक विद्रोही गुट को इतनी तेजी से मिली बढ़त का एक बड़ा कारण यह भी है कि बड़ी संख्या में सीरियाई सैनिकों ने हथियार डाल दिए। विद्रोहियों की ओर से घोषणा की गई थी कि अगर वे पीछे हट जाते हैं तो उनपर कार्रवाई नहीं की जाएगी।ALSO READ: सीरिया और दक्षिण कोरिया की विद्रोही घटनाओं पर भारत की करीबी नजर
समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक सीरिया में संयुक्त राष्ट्र के राजदूत गैएर पीडरसन ने देश के घटनाक्रम को 'एक निर्णायक क्षण' बताते हुए कहा, 'आज का दिन सीरिया के लिए ऐतिहासिक दिन है। सीरिया ने करीब 14 साल तक लगातार तकलीफें झेली हैं और इतना कुछ खोया है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता है।'
अपनी लड़ाई में व्यस्त थे रूस और ईरान!
विद्रोही गुट ने जिस नाटकीय रफ्तार से बढ़त हासिल की, एक के बाद एक शहर जीतते हुए दमिश्क पर नियंत्रण किया, दो हफ्ते पहले तक उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। करीब 13 साल से चल रहे गृहयुद्ध के बाद एकाएक दो हफ्ते के भीतर ही असद के हाथ से इलाके बाहर निकलते गए।
आर्थिक संकट ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई। अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण असद के पास आर्थिक संसाधनों की भारी कमी थी। साल 2023 में आए भीषण भूकंप में बुनियादी ढांचे को बड़ा नुकसान हुआ, लेकिन पुनर्निर्माण के लिए फंड नहीं था।
खबरों के अनुसार सैनिकों और सरकारी कर्मचारियों को नियमित वेतन तक नहीं मिल रहा था। संसाधन व मनोबल, दोनों ही तरह से वे एक और युद्ध लड़ने की स्थिति में नहीं नजर आए। विद्रोही गुट ने जब अलेप्पो को नियंत्रण में लिया, तब से ही खबरें आ रही थीं कि वे समर्पण करने वाले सैनिकों को पास दे रहे हैं और बड़ी संख्या में सैनिक और पुलिसकर्मी पास ले रहे हैं।
साल 2011 में गृहयुद्ध शुरू होने के बाद असद सरकार को बचाने में सबसे बड़ी भूमिका रूस ने निभाई थी। इस बार जब असद को जरूरत पड़ी तो रूस, यूक्रेन के साथ अपनी लड़ाई में उलझा था। 1 दिसंबर को अलेप्पो पर विद्रोहियों के नियंत्रण के बाद रूस ने असद के समर्थन में तत्परता तो दिखाई, लेकिन वो बहुत संक्षिप्त रही।
1 और 2 दिसंबर को रूस ने सीरियाई सेना के साथ मिलकर कुछ इलाकों पर हवाई बमबारी की, लेकिन उसके बाद स्पष्ट होता गया कि रूस की भूमिका अब बहुत सीमित है। विशेषज्ञों के मुताबिक यूक्रेन में युद्ध लड़ रहे रूस के लिए एक और मोर्चे पर लड़ना आसान नहीं रह गया था। उस पर असद सरकार के सैनिकों द्वारा बड़ी संख्या में समर्पण करने का मतलब था कि जमीन पर विद्रोही गुट के लिए कोई बड़ी चुनौती नहीं रह गई थी।
ईरान और हिज्बुल्लाह भी पहले की तरह असद की मदद कर पाने की स्थिति में नहीं थे। यही कारण रहा कि हिज्बुल्लाह ने असद के प्रति समर्थन तो दोहराया, लेकिन पहले की तरह अपने योद्धाओं को सीरिया नहीं भेजा। ईरान समर्थित इराकी मिलिशिया के लोग सीरिया आए, लेकिन उनकी संख्या काफी कम थी।