यूपी में भारी कामयाबी के बाद बीजेपी की निगाहें अब लोकसभा की 42 सीटों वाले पश्चिम बंगाल पर हैं। बीजेपी के मिशन-2019 के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने उसकी जमीन मजबूत करने की कवायद शुरू कर दी है।
बीजेपी के इस मिशन-2019 के लिए आरएसएस ने रामनवमी को चुना है। संघ ने अबकी पांच अप्रैल को पूरे राज्य में रामनवमी के मौके पर डेढ़ सौ कार्यक्रम व रैलियां करने की योजना बनाई है। संघ के लगातार बढ़ते प्रभुत्व से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चिंतित हैं। इससे पहले तृणमूल कांग्रेस सरकार ने संघ से जुड़े सवा सौ स्कूलों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। वर्चस्व की इस लड़ाई के चलते तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी-संघ के बीच झड़पें भी तेज हो रही हैं।
रामनवमी पर आयोजन
पश्चिम बंगाल में अब तक दुर्गापूजा और कालीपूजा के त्योहारों का ही बड़े पैमाने पर आयोजन किया जाता रहा है। लेकिन अबकी पहली बार आरएसएस ने रामनवमी को भी इन त्योहारों के मुकाबले खड़ा करने का फैसला किया है। संगठन के महासचिव जिष्णु बसु कहते हैं, "हम इन कार्यक्रमों के जरिए हिंदू समाज को एकजुट करेंगे। राज्य के तमाम जिलों में बड़े पैमाने पर होने वाले आयोजनों का मकसद हिदुओं को बंगाल में एकजुट होने की जरूरत के बारे में आगाह करना है।"
बंगाल में बीजेपी के दो सांसद हैं और तीन विधायक। हालांकि उसके वोटों का प्रतिशत तेजी से बढ़ा है। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनावों में जहां उसे महज छह फीसदी वोट मिले थे, वहीं वर्ष 2014 में यह बढ़ कर 16.8 फीसदी तक पहुंच गया। अगले लोकसभा चुनावों पर निगाह रखते हुए राज्य के दोनों भाजपा सांसदों को केंद्र में मंत्री बनाया गया है।
विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के प्रवक्ता सौरीश मुखर्जी कहते हैं, "हम इन कार्यक्रमों के जरिए यहां रामजन्मभूमि आंदोलन की जमीन तैयार करना चाहते हैं। यह सिर्फ भगवान राम का त्योहार नहीं बल्कि बंगाल के हिंदुओं की ताकत का प्रदर्शन का भी मौका होगा।"
आरएसएस ने पांच अप्रैल को जहां रैलियों और गीता पाठ की योजना बनाई है वहीं वीएचपी ने रंग बिरंगे जुलूस निकालने और विशेष पूजा अर्चना का आयोजन किया है। संगठन ने 11 अप्रैल को महानगर में एक हिंदू धर्म सभा की भी योजना बनाई है, जहां उसके तमाम नेता मौजूद रहेंगे।
आरोप-प्रत्यारोप
भगवा ब्रिगेड की इस योजना ने विपक्षी राजनीतिक दलों के खेमे में हलचल पैदा कर दी है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि रामनवमी मनाने पर उनको कोई एतराज नहीं है लेकिन इससे राज्य के सांप्रदायिक ढांचे के नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। सीपीएम महासचिव सूर्यकांत मिश्र आरोप लगाते हैं, "संघ परिवार ने रामनवमी की आड़ में राज्य के विभिन्न हिस्सों में सांप्रदायिक दंगे फैलना की योजना बनाई है।" उन्होंने पार्टी के काडरों से इन कार्यक्रमों पर नजदीकी निगाह रखने और सांप्रदायिक सद्भाव की रक्षा करने की अपील की है।
दूसरी ओर, आरएसएस का आरोप है कि सरकार मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति के तहत असामाजिक तत्वों के साथ मिल कर काम कर रही है। प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, "संघ की इस पहल से बंगाल के हिंदुओं का आत्मविश्वास मजबूत होगा। यहां हिंदुओं पर हमले लगातार बढ़ रहे हैं। एक तरह से यह कार्यक्रम हिंदुओं की ताकत के प्रदर्शन का मौका होगा।" वह कहते हैं कि बीजेपी औपचारिक तौर पर इन आयोजनों से नहीं जुड़ी है। लेकिन उसके नेता व कार्यकर्ता इसमें शिरकत करेंगे।
स्कूलों पर टकराव
आरएसएस से संबद्ध संगठनों की ओर से संचालित स्कूलों के पाठ्यक्रम के मुद्दे पर भी संघ और ममता बनर्जी सरकार में तनातनी चल रही है। कथित रूप से धर्मिक असहिष्णुता का पाठ पढ़ाने और इसे बढ़ावा देने के आरोप में सरकार ने ऐसे 125 स्कूलों को कारण बताओ नोटिस भेजा है। दूसरी ओर, संघ ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा है कि सरकार को इन स्कूलों की बजाय तेजी से बढ़ते मदरसों और क्रिश्चियन स्कूलों पर अंकुश लगाना चाहिए।
सरकार ने कथित रूप से धार्मिक असहिष्णुता और नफरत का पाठ पढ़ाने वाले स्कूलों के लाइसेंस रद्द करने की चेतावनी दी है। इन सवा सौ स्कूलों से अपने पाठ्यक्रम की सूची स्कूली शिक्षा विभाग को सौंपने को कहा गया है ताकि उसकी समीक्षा की जा सके। उनसे राज्य शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रम का पालन करने को भी कहा है। सरकार का दावा है कि इन स्कूलों में खासकर पहली से चौथी कक्षा तक के छात्रों के लिए आयोजित क्रायक्रमों में धार्मिक असहिष्णुता की सीख दी जाती है।
स्कूली शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी कहते हैं, "शिक्षा के नाम पर धार्मिक असहिष्णुता को बढ़ावा देने वाली गतिविधियां बर्दाश्त नहीं की जाएंगी।" वह कहते हैं कि जिन सवा सौ स्कूलों को नोटिस भेजी गई है, उनमें से 96 ने सरकार से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) नहीं लिया है। लेकिन संघ के नेता इन आरोपों को निराधार करार देते हैं।
आरएसएस के प्रवक्ता जिष्णु बोस कहते हैं, "पहले राज्य की लेफ्ट फ्रंट सरकार ने भी इन स्कूलों की स्थापना का विरोध किया था और अब तृणमूल कांग्रेस सरकार भी उसी राह पर चल रही है।"
उनका आरोप है कि यह सरकार बंगाल को बांग्लादेश बनाने का प्रयास कर रही है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि स्कूलों और रामनवमी के जरिए बंगाल में बीजेपी की जमीन मजबूत कवायद करने के प्रयास में जुटे आरएसएस और ममता बनर्जी सरकार के बीच विवाद और तेज होने का अंदेशा है। उनकी निगाहें अब ममता की रणनीति पर टिकी हैं।