लॉकडाउन और अर्थव्यवस्था पर मंडराते बादल

सोमवार, 30 मार्च 2020 (10:26 IST)
रिपोर्ट प्रभाकर, कोलकाता
 
कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए भारत में 21 दिनों के लॉकडाउन को अभी महज 5 दिन ही बीते हैं, लेकिन अर्थयव्यवस्था पर मंदी के काले बादल मंडराने लगे हैं।
 
अकेले पश्चिम बंगाल में मेडिकल टूरिज्म के कारोबार को 500 करोड़ रुपए महीने की चपत लग रही है तो पर्यटन और दूसरे उद्योगों का नुकसान सैकड़ों करोड़ में पहुंचने का अंदेशा है। मिठाइयों के शौकीन बंगाल में रोजाना 2 लाख लीटर दूध नाले में बहाया जा रहा है। वजह, इसकी कहीं कोई मांग नहीं है। नुकसान का आंकड़ा है रोजाना 1 करोड़ रुपए। यह तो महज एक नमूना है।
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पूरे देश की अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान की भरपाई तो शायद अगले कई वर्षों तक मुमकिन नहीं होगी। भरपाई की बात तो दूर, फिलहाल कितना नुकसान होगा, इसी का आकलन लगाना ही मुश्किल है। विभिन्न अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने भारत की रेटिंग पहले ही घटा दी है। शेयर बाजार वर्षों पहले के स्तर पर पहुंच गया है। इसके चलते निवेशकों को कई लाख करोड़ का चूना लग चुका है।
बंगाल में असर
 
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता और उसके आसपास के इलाके में आधे से ज्यादा ताजा दूध मोटे अनुमान के मुताबिक रोजाना लगभग 2 लाख लीटर दूध बर्बाद हो रहा है। इस दूध की सप्लाई मुख्य रूप से मिठाई की दुकानों पर होती थी। लेकिन मिठाई की दुकानें बंद होने के चलते वहां उत्पादन ठप है। दूध की बर्बादी से हताश डेयरी फॉर्म मालिकों ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को चिट्ठी लिखकर इस मामले से सरकार के हस्तक्षेप की मांग की है।
 
पश्चिम बंगाल मिष्ठान्न व्यवसायी समिति ने गुरुवार को ममता बनर्जी को पत्र लिखकर दूध की बर्बादी रोकने के लिए दुकानें खोलने की अनुमति देने की अपील की थी। जोरासांको दुग्ध व्यवसायी समिति के अध्यक्ष राकेश सिन्हा बताते हैं कि ताजे दूध के उत्पादन में से लगभग 60 फीसदी की खपत मिठाई की दुकानों में होती है लेकिन दुकानें बंद होने के चलते दूध की सप्लाई रुक गई है। इसकी वजह से डेयरी मालिक दूध को नाले में बहा रहे हैं।
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लॉकडाउन से छोटे और मझौले व्यापारी सबसे ज्यादा परेशान हैं। इस दौरान राशन के सामानों के अलावा सब्जी, मांस, मछली और दूध, दवा जैसी जरूरी चीजों को छूट दी गई है। लेकिन बंगाल में हजारों की तादाद में चलने वाले छोटे और मझौले उद्योगों में काम पूरी तरह बंद है।
 
हावड़ा जिले में ऐसी ही एक फैक्टरी के मालिक बलराम महतो बताते हैं कि तमाम कर्मचारी गांव चले गए हैं। काम बंद है। पूंजी भी धीरे-धीरे खत्म हो रही है। अब तो भविष्य अंधकारमय ही नजर आता है। मोटे अनुमान के मुताबिक अकेले बंगाल में ही लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था को 2 से ढाई हजार करोड़ का धक्का लगने का अंदेशा है। अब अगर एक राज्य की यह स्थिति है तो पूरे देश की अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान का आकलन करना कोई खास मुश्किल नहीं है।
21 दिनों तक सामाजिक और आर्थिक लॉकडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था में आपूर्ति से जुड़े पहलू यानी वस्तुओं के उत्पादन और वितरण को कितना गंभीर नुकसान पहुंचेगा, यह अनुमान लगाने के लिए अर्थशास्त्र का जानकार होना जरूरी नहीं है।
 
मांग की कमी, बढ़ती बेरोजगारी और औद्योगिक उत्पादन व मुनाफे में गिरावट के चलते पहले से ही दबाव में चल रही अर्थव्यवस्था में आपूर्ति के पहलू की राह में पैदा होने वाली बाधाएं एक गंभीर झटका साबित होंगी। इससे जहां विकास दर को झटका लगेगा वहीं करोड़ों लोगों की सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा भी प्रभावित होगी।
 
उत्पादन और वितरण पर असर
 
अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अभिरूप चंद्र सेन कहते हैं कि फिलहाल सप्लाई के पहलू पर ही लॉकडाउन का सबसे ज्यादा असर है। गैर-जरूरी वर्ग में आने वाली चीजों का उत्पादन व वितरण ठप हो गया है। तीन सप्ताह के लॉकडाउन से यह नुकसान 2 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है।
 
वह कहते हैं कि लॉकडाउन के बाद बिक्री तेज जरूर होगी, लेकिन उत्पादन और बिक्री पहले के स्तर तक पहुंचने में और कई महीनों का समय लगेगा। इस दौरान छंटनी बढ़ेगी। ऐसे में लाखों नौकरियां जा सकती हैं।
 
एक अन्य अर्थशास्त्री श्यामल सामंत कहते हैं कि कोरोना का झटका अर्थव्यवस्था के लिए बेहद गंभीर साबित होगा। हालांकि इस वायरस की चपेट में दुनिया के ज्यादातर देश हैं। लेकिन भारत की आबादी और आर्थिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए 21 दिनों का लॉकडाउन अर्थव्यवस्था के लिए भारी साबित होगा।
आर्थिक मंदी की आशंका
 
फिलहाल अर्थशास्त्रियों के लिए भी यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि कोरोना के चलते जारी लॉकडाउन का अर्थव्यवस्था कितना असर होगा। लेकिन एक बात तय है कि यह असर नोटबंदी और जीएसटी लागू करने के बाद होने वाले असर से कई गुना ज्यादा गंभीर होगा।
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जानकारों का कहना है कि ठोस योजना के आधार पर आगे बढ़ने की स्थिति में आम लोगों और कारोबार को लगने वाले झटकों को कुछ हद तक कम किया जा सकता था। मिसाल के तौर पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 21 दिनों के लॉकडाउन के एलान के लगभग 42 घंटे बाद 26 मार्च की दोपहर को 1760 अरब रुपये के राहत पैकेज का एलान किया।
 
इससे असंगठित क्षेत्र के मजदूरों, गरीबों और दैनिक मजदूरी करने वालों को राहत मिलेगी। इसके बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी गरीबों के लिए राहत, नकद सहायता और खाने-पीने की व्यवस्था करने का एलान किया। लेकिन लॉकडाउन के पहले ही इनका एलान किया जा सकता था।
 
क्रेडिट रेटिंग घटी
 
तमाम क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने भारत की वृद्धि दर का अनुमान घटा दिया है। ग्लोबल क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज इंवेस्टर्स सर्विस ने वर्ष 2020 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर के अपने पहले के अनुमान को कम करके 2।5 फीसदी कर दिया है। इससे पहले उसने सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के 5.3 फीसदी रहने का अनुमान जताया था।
 
मूडीज ने कहा है कि अनुमानित वृद्धि दर के हिसाब से भारत में 2020 में आय में बड़ी गिरावट आ सकती है। इससे पहले फिच रेटिंग्स ने भी देश की जीडीपी विकास दर का अनुमान घटाया था। एस एंड पी ग्लोबल रेटिंग एजेंसी ने वर्ष 2020 में भारत की आर्थिक वृद्धि का अनुमान घटाकर 5.2 फीसद कर दिया है। पहले उसने इसके 5।7 फीसदी रहने की बात कही थी।
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एक शोध एजेंसी डन एंड ब्रैडस्ट्रीट की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए किए गए 21 दिनों के लॉकडाउन से कई सेक्टरों पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। एजेंसी के ताजा आर्थिक अनुमान के मुताबिक देश के मंदी में फंसने और कई कंपनियों के दिवालिया होने की आशंका बढ़ गई है।
 
कोरोना वायरस के चलते भारतीय शेयर बाजार ने भी गिरावट के पिछले तमाम रिकार्ड तोड़ दिए हैं। यह बाजार अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि लॉकडाउन और कोरोना वायरस के इस पूरे दौर में उड्डयन, पर्यटन और होटल क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित होगा।
 
प्रोफेसर सेन कहते हैं कि अर्थव्यवस्था पर मौजूदा परिस्थिति का कितना गहरा असर पड़ेगा, यह 2 बातों पर निर्भर करेगा। पहला यह कि भविष्य में देश में कोरोना वायरस की समस्या भारत में कितनी गंभीर होती है और दूसरा कि इस पर पूरी तरह काबू पाने में कितना समय लगेगा। लेकिन फिलहाल इन दोनों सवालों पर कयास ही लगाए जा सकते हैं।

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