जर्मनी में भी भारतीय कोरोना स्ट्रेन पर चिंता

DW
गुरुवार, 22 अप्रैल 2021 (08:56 IST)
रिपोर्ट : गुडरुन हाइजे
 
भारतीय कोरोना कितना खतरनाक है, यह अभी भी पता नहीं, लेकिन स्वास्थ्य अधिकारियों के लिए चिंता तो पैदा कर ही रहा है। अब जर्मनी में भी उसके खतरों की बात की जा रही है। भारत में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। भारत की 1.38 अरब की कुल आबादी में रोजाना करीब 3,00,000 नए इंफेक्शन सामने आ रहे हैं।

इस तेज रफ्तार इंफेक्शन में कोरोना के बी.1.617 के भारतीय स्ट्रेन की कितनी भागीदारी है, इसके बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन इस बात का संदेह व्यक्त किया जा रहा है कि वायरस के तेजी से फैलने में नए प्रकार के म्यूटेशन की भूमिका है।
 
वायरस के म्यूटेशन की भूमिका
 
जब भी किसी देश में कोरोनावायरस के फैलने में तेजी आई, तो ज्यादातर मामलों में उसका वायरस के नए रूप से लेना देना था। कुछ विशेषज्ञ तो भारतीय स्ट्रेन के मामले में एक तरह के सुपर म्यूटेशन की बात कर रहे हैं जो दुनिया भर में तेजी से फैल सकता है। जर्मनी में सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी के स्वास्थ्य विशेषज्ञ कार्ल लाउटरबाख ने भी इस खास तौर पर तेजी से फैलने वाले म्यूटेशन के खिलाफ चेतावनी दी है। कार्ल लाउटरबाख संसद के सदस्य हैं और खुद डॉक्टर हैं। वे कहते हैं कि भारत में कोविड आपदा का खतरा बढ़ रहा है।
 
दूसरे देशों में भी कोरोना का भारतीय स्ट्रेन बी.1.617 मिलना शुरू हो गया है। उनमें जर्मनी, बेल्जियम, ब्रिटेन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर जैसे देश शामिल हैं। जर्मनी में फिलहाल भारतीय स्ट्रेन वाले कोरोना के सिर्फ 8 मामले हैं, जबकि ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार वहां 77 मामले पाए गए हैं।
 
भारतीय स्ट्रेन से कैसा खतरा?
 
भारतीय स्ट्रेन कहे जा रहे बी.1.617 में तथाकथित स्पाइक प्रोटीन के 2 म्यूटेशन हैं। यह खतरनाक वायरस सार्स-कोव-2 के शरीर में घुसने को आसान बनाता है और इस तरह इंफेक्शन को संभव बनाता है। आशंका व्यक्त की जा रही है कि यह शरीर में तेजी से फैल सकता है क्योंकि वह इम्यून सिस्टम या टीके से बने एंटी बॉडी को छका सकता है।
 
इस बात का भी खतरा है कि कोरोना इंफेक्शन के बाद स्वस्थ हो गए लोग या टीका ले चुके लोग भी भारतीय स्ट्रेन से संक्रमित होने से कम सुरक्षित हो सकते हैं। कोरोनावायरस के दूसरे स्ट्रेन में यह खतरा नहीं था।
 
भारतीय स्ट्रेन की खास बातें
 
कोरोना के भारतीय रूप वाले म्यूटेशन को E484Q/E484K का नाम दिया गया है। ये अंजाने बदलाव नहीं हैं। वे कोरोना के दक्षिण अफ्रीकी स्ट्रेन बी.1.353 और ब्राजील वाले P1 में भी शामिल हैं। कुछ मामलों में ये ब्रिटिश स्ट्रेन बी.1.1.7 में भी पाया गया है। इसके विपरीत L452R म्यूटेशन कोरोना के कैलीफोर्निया स्ट्रेन बी.1.429 में पाया गया है। उसे जर्मनी में हो रहे कुछ संक्रमित लोगों में भी पाया गया है।
 
अलग-अलग अनुमान
 
यूरोप में हो रही चिंता से अलग विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारतीय स्ट्रेन को 'वेरिएंट ऑफ इंटेरेस्ट' कहा है। इसका मतलब है कि उस पर नजर रखी जा रही है लेकिन अभी उसे चिंताजनक नहीं माना जा रहा है। वेलकम सेंगर इंस्टीट्यूट में कोविड-19 जेनोमिक्स इनीशिएटिव के डाइरेक्टर डॉ. जेफ्री बैरेट का भी कहना है कि भारतीय स्ट्रेन पिछले महीनों में बहुत तेजी से नहीं फैला है। उनके विचार में ये बी.1.1.7 की तरह फैलने वाला नहीं है।
 
लेकिन बहुत से वैज्ञानिक इससे अलग नजरिया रखते हैं। इस समय हो रहा विकास उन्हें सही साबित करता लगता है। भारत में महाराष्ट्र प्रांत में कोरोना से हुए संक्रमण का 60 फीसदी बी.1.617 की वजह से हुआ है। यह बात जिनोम सिक्वेंस से पता चली है। लेकिन साथ ही स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि स्पष्ट रूप से कहने के लिए कि संक्रमण की वजह बी.1.617 है, जिनोम सिक्वेंसिंग की संख्या बहुत छोटी है।

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