महंगी हो रही बैटरी भारत की ईवी क्रांति में रुकावट

DW

शुक्रवार, 30 जुलाई 2021 (08:36 IST)
रिपोर्ट : अविनाश द्विवेदी
 
इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बैटरी में इस्तेमाल होने वाले खनिजों के दामों में बढ़ोतरी से यह बैटरियां भारत में भी महंगी हुई हैं। लेकिन जानकार इससे भी बड़ी समस्या इनके निर्माण के लिए भारत की चीन पर निर्भरता को मानते हैं।
 
दुनियाभर में इलेक्ट्रिक गाड़ियों में इस्तेमाल होने वाली लीथियम आयन बैटरी के दाम बढ़ रहे हैं। इसकी वजह इसमें इस्तेमाल होने वाले खनिजों के दाम बढ़ना है। लीथियम और कोबाल्ट जैसे इन खनिजों के दाम इसलिए बढ़ रहे हैं, क्योंकि कोरोना के बाद इनकी मांग तेजी से बढ़ी है लेकिन पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो पा रही है। हालांकि इस परेशानी के लिए कोरोना कुछ हद तक ही जिम्मेदार है क्योंकि लीथियम की आपूर्ति में पिछले कई सालों से गड़बड़ी आ रही थी।
 
जानकार कहते हैं कि पिछले एक दशक से लीथियम आयन बैटरी के दामों में गिरावट आ रही थी। साल 2018 से 2020 के बीच लीथियम की आपूर्ति, मांग से ज्यादा रही जि ससे इस दौरान बैटरी के दाम तेजी से गिरे।
 
ऐसा होने से नए प्रोजेक्ट लगने की दर तेज हुई और सरकारों की ओर से इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा देने का काम किया जाने लगा। इससे लीथियम की मांग और ज्यादा बढ़ी। इसने भी आपूर्ति में कमी को बढ़ाने में योगदान दिया। अब मीडिया रिपोर्ट्स में डर जताया जा रहा है कि एक दशक तक लीथियम आपूर्ति में दिक्कत बनी रह सकती है।
 
बैटरी के लिए चीन पर निर्भर भारत
 
इन खनिजों के दामों में बढ़ोतरी से भारत में भी बैटरी महंगी हुई है। लेकिन जानकार इससे बड़ी समस्या इस तथ्य को बताते हैं कि ईवी की बैटरी के मामले में भारत अब भी लगभग पूरी तरह चीन पर निर्भर है।
 
एक बड़ी बैटरी निर्माता कंपनी एक्सिकॉम में काम करने वाले सलाहुद्दीन अहमद बताते हैं कि अभी भारत इस सेक्टर में तीसरे खरीददार जैसा है यानी चीन पहले ज्यादातर कच्चे खनिजों की खरीद कर उनकी प्रॉसेसिंग करता है और फिर इसे भारत जैसे देशों को बेचता है। जब तक भारत इस निर्भरता को कम करने पर काम नहीं करता, ईवी बैटरी के मामले में आत्मनिर्भरता सपना ही रहेगी।
 
निवेश और मैनेजमेंट कंपनी गोल्डमैन सैश के आंकड़े भी यही कहते हैं। इसकी एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन बैटरी में इस्तेमाल होने वाले खनिजों की प्रॉसेसिंग में दुनिया में सबसे आगे है, जबकि वह इसके लिए जरूरी ज्यादातर खनिजों को विदेशों से मंगाता है।
 
एनोड पदार्थों और इलेक्ट्रोलेट्स के 65% का और कैथोड पदार्थों के 42% का उत्पादन चीन अकेले करता है। भारत भी बैटरी के लिए यह चीजें चीन से ही मंगाता है। यही वजह है कि भारत में अभी इलेक्ट्रिक बैटरी के दाम अपेक्षाकृत ज्यादा हैं। इसके चलते इलेक्ट्रिक गाड़ियां ज्यादातर जनसंख्या के लिए अफोर्डेबल नहीं हैं।
 
भारत को तलाशना होगा अलग रास्ता
 
इलेक्ट्रिक गाड़ियों के दाम में बैटरी का दाम अहम होता है। इस मसले पर इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बैटरी के रिसर्च एंड डेवलपमेंट (आरएंडडी) से जुड़े सलाहुद्दीन अहमद कहते हैं कि भारत को सोडियम आयन बैटरियों के आरएंडडी के काम को तेज कर देना चाहिए।
 
वहीं कोबाल्ट की जगह एल्युमीनियम, मैंगनीज या निकल के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की कोशिश करनी चाहिए। ये सारे ही खनिज भारत में पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैं। इनकी मदद से न सिर्फ बड़ी मात्रा में इलेक्ट्रिक बैटरी का उत्पादन किया जा सकता है बल्कि उनके दाम भी कम किए जा सकते हैं।
 
वह कहते हैं कि एक लाख रुपए या उससे ज्यादा की दोपहिया गाड़ियां भारत में हर कोई नहीं खरीद सकता ऐसे में आरएंडडी के जरिए इनके दाम कम करना जरूरी है। दाम के बारे में जानकार यह भी कहते हैं कि भारत अगर ऐसे ही विदेशों से ईवी के लिए जरूरी खनिजों का आयात करता रहा, तो उसके लिए निकट भविष्य में बैटरी के दाम नियंत्रित करना संभव नहीं होगा।
 
उनके मुताबिक भारत ईवी के लिए बैटरियां बनाने की दौड़ में पहले ही चीन से 20-30 साल पीछे है, ऐसे में अगर भारत ऐसे खनिजों पर निर्भर रहा जि नकी आपूर्ति भी उसके लिए आसान नहीं है तो वह इस दौड़ में और पिछड़ेगा।

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