अफगानिस्तान : तालिबान के लौटने के खौफ से सहमी लड़कियां

DW

रविवार, 2 मई 2021 (11:22 IST)
अफगानिस्तान में ऐसी लड़कियां अब खौफ में जी रही हैं जिन्होंने कभी तालिबान के शासन का अनुभव नहीं किया है। देश में पिछले 20 सालों में महिलाओं ने जो तरक्की हासिल की है, अब उसके पलट जाने का खतरा सता रहा है।

अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में सादत के ब्यूटी पार्लर में सुल्ताना करीमी ग्राहक के भौंहों को सावधानी के साथ बना रही हैं। 24 साल की सुल्ताना करीमी बड़े ही आत्मविश्वास के साथ इस ब्यूटी पार्लर में काम करती हैं और उन्हें मेकअप और हेयर स्टाइल करने का जुनून है। करीमी और अन्य युवा महिलाएं जो पार्लर में काम कर रही हैं, उन्होंने कभी तालिबान के शासन का अनुभव नहीं किया।

लेकिन वे सभी यह चिंता करती हैं कि अगर तालिबान सत्ता हासिल कर लेता है, तो उनके सपने खत्म हो जाएंगे, भले ही वह शांति से एक के हिस्से के रूप में नई सरकार में शामिल हो जाए। करीमी कहती हैं, तालिबान की वापसी के साथ समाज बदल जाएगा और तबाह हो जाएगा। महिलाओं को छिपना पड़ेगा और उन्हें घर से बाहर जाने के लिए बुर्का पहनना पड़ेगा।

अभी जिस तरह के कपड़े करीमी पहनती हैं उस तरह के कपड़े तालिबान के शासन के दौरान नामुमकिन थे। तालिबान ने अपने शासन के दौरान ब्यूटी पार्लर पर बैन लगा दिया था। यही नहीं उसने लड़कियों और महिलाओं के पढ़ने तक पर रोक लगा दी थी, तालिबान की कट्टर विचारधारा की शिकार सबसे अधिक लड़कियां और महिलाएं हुईं।

महिलाओं को परिवार के पुरुष सदस्य के बिना घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी। अब जब अमेरिकी सैनिकों की वापसी का समय नजदीक आ रहा है, देश की महिलाएं तालिबान और अफगान सरकार के बीच रुकी पड़ी बातचीत पर नजरें टिकाई हुईं हैं। वे अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं।

महिला अधिकार कार्यकर्ता महबूबा सिराज कहती हैं, मैं निराश नहीं हूं कि अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान से जा रहे हैं। उनके जाने का समय आ रहा था। वे अमेरिका और नाटो बल के लिए आगे कहती हैं, हम चिल्ला रहे हैं और कह रहे हैं कि खुदा के वास्ते कम से कम तालिबान के साथ कुछ करो। उनसे किसी तरह का आश्वासन लो। एक ऐसा तंत्र बने जो महिलाओं के अधिकारों की गारंटी दे।

तालिबान पर महिलाओं को नहीं भरोसा
पिछले हफ्ते तालिबान ने एक बयान में कहा कि वह किस तरह की सरकार चाहता है। उसने वादा किया कि महिलाएं शिक्षा के क्षेत्र में सेवा दे सकती हैं, व्यापार, स्वास्थ्य और सामाजिक क्षेत्र में काम कर सकती हैं। इसके लिए उन्हें इस्लामी हिजाब का सही ढंग से इस्तेमाल करना होगा। साथ ही उसने वादा किया कि लड़कियों को अपनी पसंद का पति चुनने का विकल्प होगा, अफगानिस्तान के रूढ़िवादी और कबीलों वाले समाज में इसे अस्वीकार्य माना जाता है।

लेकिन बयान में कुछ ही विवरणों की पेशकश की गई, बयान में यह नहीं बताया गया कि क्या महिलाओं की राजनीति में शामिल होने की गारंटी होगी या उन्हें एक पुरुष रिश्तेदार के बिना घर से बाहर जाने की आजादी होगी। ब्यूटी पार्लर की मालकिन सादत बताती हैं कि वह ईरान में पैदा हुई थी, उनके माता-पिता ने उस समय ईरान में शरण ली हुई थी। वह ईरान में बिजनेस करने के लिए वर्जित थी, इसलिए उन्होंने 10 साल पहले अपने देश लौटने का फैसला किया, जिसे उन्होंने कभी नहीं देखा था।

उन्होंने समाचार एजेंसी एपी से पूरा नाम नहीं छापने को कहा। उन्हें डर है कि इससे लोगों का ध्यान आकर्षित होगा और वे निशाने पर आ जाएंगी। हाल के दिनों में अफगानिस्तान में हिंसा की घटनाएं बढ़ने से वे चिंतित हो गई हैं और अब ज्यादा सतर्क हो गई हैं। सादत कभी अपनी कार चलाती थी लेकिन अब वे ऐसा नहीं करती हैं।

महिलाओं की चिंता बढ़ी
ब्यूटी पार्लर में काम करने वाली एक और युवती कहती है, सिर्फ तालिबान का नाम ही हमारे मन में खौफ भर देता है। तमिला पाजमान कहती हैं कि वह पुराना अफगानिस्तान नहीं चाहती हैं लेकिन वे शांति चाहती हैं। वे कहती हैं, अगर हमे यकीन हो कि हमारे पास शांति होगी, तो हम हिजाब पहनेंगे, काम करेंगे और पढ़ाई करेंगे लेकिन शांति होनी चाहिए।

20 साल की आयु वर्ग की युवतियां तालिबान के शासन के बिना बड़ी हुईं, अफगानिस्तान में इस दौरान महिलाओं ने कई अहम तरक्की हासिल की। लड़कियां स्कूल जाती हैं, महिलाएं सांसद बन चुकी हैं और वे कारोबार में भी हैं। वे यह भी जानती हैं कि इन लाभों का उलट जाना पुरुष-प्रधान और रूढ़िवादी समाज में आसान है।

करीमी कहती हैं, अफगानिस्तान में जिन महिलाओं ने आवाज उठाई, उनकी आवाज दबा दी गई, उन्हें कुचल दिया गया। करीमी कहती हैं कि ज्यादातर महिलाएं चुप रहेंगी क्योंकि उन्हें पता है कि उन्हें कभी समर्थन हासिल नहीं होगा।

जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय की सूचकांक के मुताबिक अफगानिस्तान महिलाओं के लिए दुनिया के सबसे खराब देशों में से एक है, अफगानिस्तान के बाद सीरिया और यमन का नंबर आता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक अफगानिस्तान में तीन में से एक लड़की की शादी 18 साल से कम उम्र में करा दी जाती है। ज्यादातर शादियां जबरन होती है।
- एए/आईबी(एपी)

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