क्या करते हैं मंदिर चढ़ावे की दौलत का

शनिवार, 16 जनवरी 2016 (12:31 IST)
भारत के धनी मंदिरों की चर्चा अक्सर होती है लेकिन आखिर धन कुबेर बने मंदिर अपनी आमदनी खर्च कैसे करते हैं? देश के धनी मंदिरों में शामिल सिद्धिविनायक मंदिर ट्रस्ट आत्महत्या कर चुके किसानों के बच्चों की मदद कर रहा है।
महाराष्ट्र में किसान आत्महत्या एक ऐसा विषय है जो अक्सर सुर्खियों में रहता है। मौसम की मार झेलने वाले किसानों को मदद पहुंचाने के तमाम सरकारी दावों के बावजूद आत्महत्या जारी है। मुखिया की आत्महत्या के बाद परिवार आर्थिक रूप से और बदहाल हो जाता है तथा बच्चे शिक्षा से दूर हो जाते हैं। ऐसे परिवारों की मदद के लिए मुंबई स्थित सिद्धिविनायक मंदिर ट्रस्ट ने बच्चों की शिक्षा का बीड़ा उठाने की पहल की है।
 
सिद्धिविनायक स्कॉलरशिप स्कीम : सामाजिक दायित्व दिखाते हुए मंदिर ट्रस्ट ने मृत किसान परिवार की चिंताओं को दूर करने का बीड़ा उठाया है। ऐसे परिवारों की सबसे बड़ी चिंता बच्चों की पढ़ाई की रहती है। अब मंदिर ट्रस्ट सूखे और बाढ़ से परेशान होकर आत्महत्या करने वाले किसानों के बच्चों की शिक्षा में आर्थिक मदद देगा। ट्रस्ट ने ऐसे बच्चों की ग्रैजुएशन तक की पढ़ाई का पूरा खर्च वहन करने का फैसला लिया है।
 
सिद्धिविनायक मंदिर ट्रस्ट के संजीव पाटिल के अनुसार ट्रस्ट ऐसे बच्चों की जानकारी जुटा रहा है जिनको मदद की जरूरत है। इस सिलसिले में सभी जिलाधिकारियों को पत्र लिखकर उनसे पीड़ित परिवारों के बारे में जानकारी मांगी गई है।
 
'सिद्धिविनायक स्कॉलरशिप स्कीम' के लिए मंदिर के ट्रस्ट ने एक करोड़ रुपए तय किए हैं। मंदिर की वार्षिक आमदनी 65 करोड़ रुपए के करीब है। मंदिर ट्रस्ट सामाजिक सरोकारों से जुड़ी कई और योजनाएं चला रहा है। एक श्रद्धालु रमेश ठाकुर ट्रस्ट की इस पहल की सराहना करते हुए कहते हैं कि इस तरह भक्तों के द्वारा दिया गया चढ़ावा सार्थक कामों में लगाया जा सकेगा।
 
सिद्धिविनायक की भक्त संगीता सिंह कहती हैं, 'अन्य मंदिरों को भी बचा हुआ धन जरुरतमंदों की मदद में खर्च करना चाहिए।'
 
अन्य धनी मंदिरों के सेवा कार्य : शिरडी स्थित साईं बाबा का मंदिर देश के सबसे अमीर मंदिरों में से एक है। मंदिर की दैनिक आय 60 लाख रुपए से ऊपर है और सालाना आय 300 करोड़ रुपए की सीमा पार कर चुकी है। शिरडी वाले साईं बाबा के दरबार में जितनी दौलत है, उतना ही साईं मंदिर से दान भी किया जाता है।
 
शिरडी साईं बाबा संस्थान अस्पताल, शिक्षा, और अन्य सामाजिक कार्यों में अपनी आय का पचास फीसदी तक खर्च करता है। अब तक साईं बाबा संस्थान ने सुपर-स्पेशिलिटी अस्पताल के अलावा सड़क निर्माण, जल प्रबंध और शिर्डी हवाई अड्डे के विकास के साथ ही मुख्यमंत्री राहत कोष में भी दान किया है।
 
केरल के पद्मनाभ मंदिर से लगभग एक लाख करोड़ रुपए से भी कहीं अधिक का खजाना मिला। इसके बाद यह देश का सबसे धनी मंदिर बन गया है। इसके पहले देश के सबसे धनी मंदिरों की लिस्ट में आंध्रप्रदेश स्थित तिरुपति बालाजी पहले नंबर पर था। इसका सालाना बजट ढाई हजार करोड़ रुपए का है। एक अनुमान के मुताबिक ट्रस्ट के पास मुकेश अंबानी से ज्यादा संपत्ति है।
 
तिरुपति मंदिर ट्रस्ट कर्मचारियों के वेतन और भक्तों की सुविधाओं पर सालाना 695 करोड़ रुपए खर्च करता है। इसके अलावा चिकित्सा सेवा, शिक्षा और कमजोर तबके की मदद में कमाई का एक हिस्सा खर्च किया जाता है। माता वैष्णो देवी, गुरुवायूर स्थित श्री कृष्ण मंदिर और सबरीमाला स्थित भगवान अयप्पा मंदिर भी अपने स्तर पर धर्मार्थ कार्यों में आमदनी का एक हिस्सा चर्च करते हैं।
 
मंदिरों के सोने से विकास : इन सभी मंदिरों के पास जमा अकूत सोने का भंडार देश की अर्थव्यवस्था में जान फूंक सकता है जो फिलहाल निष्क्रिय पड़ा हुआ है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के अनुसार देश के मंदिरों में करीब 3 हजार टन सोना पड़ा है। अर्थशास्त्री सोने के इस भंडार को निष्क्रिय मानते हैं, जिसका अर्थव्यवस्था में कोई योगदान नहीं है।
 
‘गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम' के जरिए सरकार सोने के इस भंडार को सक्रिय पूंजी में बदलना चाहती है। आस्था के चलते देश में मंदिरों से सोना निकलवाना भी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है।
 
सामाजिक दायित्वों में आगे रहने वाले सिद्धि विनायक मंदिर ट्रस्ट ने इस दिशा में सरकार का साथ देने के संकेत दिया है। मंदिर के पास करीब 158 किलो सोने का भंडार है। देश के पांच बड़े मंदिरों के पास करीब 60 हजार किलो ग्राम सोने का भंडार है।
 
सरकार के कब्जे में आने के बाद निष्क्रिय पड़ी यह पूंजी सोने के आयात खर्च को कम कर सकती है और इस तरह वित्तीय घाटे को भी कम करने में मददगार हो सकती है।

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