यूक्रेन के साथ जारी युद्ध के कारण रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उनके नीति निर्माताओं पर दबाव बढ़ रहा है। मॉस्को अपने बढ़ते बजट घाटे से निपटने के लिए कर बढ़ाने और खर्च घटाने की योजना बना रहा है।
घाटा कम करने के लिए 25 सितंबर को सरकार ने मूल्य वर्धित कर (वीएटी) को 20 फीसदी से बढ़ाकर 22 फीसदी करने की घोषणा की। जबकि, पुतिन ने पहले वादा किया था कि 2030 से पहले टैक्स नहीं बढ़ाया जायेगा।
इसके अलावा, गैर-रक्षा खर्चों में भी कटौती की संभावना है। मसलन कुछ सामाजिक खर्च, क्योंकि पिछले कुछ समय में तेल से होने वाली आय में भारी गिरावट हुई है।
रूस का बजट घाटा अब लगभग 4।2 ट्रिलियन रूबल (करीब 5,000 करोड़ डॉलर) तक पहुंच गया है। यह देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 1।9 फीसदी है और 2025 के लिए तय गए लक्ष्य 0।5 फीसदी से लगभग चार गुना अधिक है। रुसी वित्त मंत्रालय के अनुसार, वर्ष के अंत तक यह घाटा 5।7 ट्रिलियन रूबल तक भी पहुंचने की संभावना है।
कीव स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में रूसी अर्थव्यवस्था की विशेषज्ञ एलीना रिबाकोवा का मानना है कि मॉस्को उच्च सैन्य खर्च जारी रखने के लिए अन्य क्षेत्रों में कटौती बनाए रख सकता है। उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "परिणाम वैसे ही होंगे, जैसे हमने 2014 में देखे थे। यानी बाकी सब कटता जाएगा और सैन्य खर्च बढ़ता जाएगा। शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक खर्च, पर्यावरण संरक्षण सभी में भारी कटौती देखी जाएगी।"
कंसल्टिंग फर्म 'मैक्रो एडवाइजरी' के लिए काम करने वाले वित्तीय विश्लेषक क्रिस वीफर ने डीडब्ल्यू को बताया कि बजट कटौती की योजना पिछले दिसंबर से ही चल रही है, जब पुतिन ने इसका संकेत दिया था। उन्होंने कहा, "सरकारी खर्च में जानबूझकर धीमी गति दिखाई जा रही है, खासकर गैर-आवश्यक क्षेत्रों में। इसका मतलब है कि गैर-आवश्यक सैन्य और गैर-आवश्यक सामाजिक खर्चों में कटौती की जा रही है।"
खतरे की घंटी
रूसी अर्थव्यवस्था लंबे समय से संकट से जूझ रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने 24 सितंबर को अपने सोशल मीडिया पोस्ट में भी इसका जिक्र किया और वह खुलकर यूक्रेन का समर्थन करते नजर आए। उन्होंने लिखा, "पुतिन और रूस बड़े आर्थिक संकट में हैं और यह यूक्रेन के लिए कार्रवाई करने का सटीक समय है।"
ट्रंप ने रूस के चल रहे ईंधन संकट का भी जिक्र किया। इसकी वजह यह है कि यूक्रेन के सफल ड्रोन हमलों ने रूस के बुनियादी ऊर्जा ढांचे, जैसे रिफाइनरी और निर्यात टर्मिनलों को गंभीर नुकसान पहुंचाया। इसके कारण कई प्रकार के ईंधनों की कमी हो गई है और कीमतें भी बढ़ गई हैं।
रूस की आर्थिक मुश्किलों का एक बड़ा कारण तेल और गैस से होने वाली आय में लगातार हो रही गिरावट भी है। साल 2022 में बढ़ती तेल कीमतों और चीन व भारत जैसे नए खरीदारों की वजह से रूस की ऊर्जा आय बढ़ी थी। यह ट्रेंड 2023 में भी जारी रहा।
लेकिन तेल की कीमत में गिरावट, रूबल के मजबूत होती दर, रिफाइनरी पर हमले और प्रतिबंधों के असर ने क्रेमलिन के मुख्य राजस्व स्रोत को कमजोर कर दिया है। सितंबर के महीने में तेल और गैस से होने वाली आय में पिछले वर्ष के मुकाबले लगभग 23 फीसदी गिरावट की संभावना है। यह रूस के आर्थिक भविष्य के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
जुलाई के महीने में रूस का जीडीपी, पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में केवल 0।4 फीसदी ही बढ़ा। यह देश में आर्थिक ठहराव का संकेत देता है। हालांकि, आधिकारिक पूर्वानुमान इस साल एक फीसदी वृद्धि का संकेत दे रहे हैं लेकिन फिर भी यह पिछले अनुमान (2।5 फीसदी) से कम ही है। पिछले साल इस समय तेजी से बढ़ती महंगाई ने दिखाया था कि अर्थव्यवस्था की हालत गंभीर है। इसके बावजूद रक्षा खर्च में की गई भारी बढ़ोतरी और बजट इजाफे ने इसे और बढ़ा दिया।
रक्षा खर्च 2021 की तुलना में चार गुना बढ़ गया है और जून 2025 में यह लगभग 16 ट्रिलियन रूबल के स्तर पर पहुंच गया।
क्रिस वीफर के अनुसार, आधिकारिक दलील यह है कि सब "संचालित प्रक्रिया" के अंतर्गत हो रहा है। केंद्रीय बैंक ने महंगाई और बढ़ते उपभोक्ता खर्च को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरें बढ़ाई हैं और यह रणनीति काम भी कर रही है।
बजट में कटौती
क्रिस वीफर का कहना है कि रूस का बजट "अस्थिर रूप से बहुत ज्यादा" है। अगर अगले कुछ सालों में इसे कम नहीं किया गया, जिसमें सैन्य खर्च भी शामिल है। तो यह "रूस की स्थिरता और अर्थव्यवस्था की मजबूती का जो दिखावा है, उसे नष्ट कर देगा।"
वीफर के अनुसार, "आप अर्थव्यवस्था को तबाह कर देंगे।" वह मानते हैं कि बढ़ते आर्थिक दबाव के कारण पुतिन और क्रेमलिन अब शांति समझौते पर विचार करने के लिए तैयार हो रहे हैं। उन्होंने कहा, "घरेलू बजट पर दबाव और स्थिरता बनाए रखने के दबाव के कारण यह लगता है कि यह स्थिति जल्द समाप्त होनी चाहिए।"
हालांकि, रिबाकोवा ज्यादा आशावादी नहीं हैं। उनका कहना है, "जब उन्होंने 2022 में आक्रमण शुरू किया था, तब वह आर्थिक लागतों से बखूबी वाकिफ थे। उन्होंने इसका हिसाब लगाकर ही राजनीतिक स्तर पर तय किया होगा कि उनको यह लागत मंजूर है।"
और ज्यादा आर्थिक प्रतिबंध
रूसी अर्थव्यवस्था पर बढ़ते दबाव को देखते हुए यूरोपीय संघ (ईयू) और अमेरिका पर मौजूदा प्रतिबंधों को और सख्त करने का दबाव बढ़ रहा है, ताकि शांति वार्ता सफल हो सके।
हाल ही में ट्रंप ने यूरोप से कहा कि वह रूस से गैस की खरीद, खासकर लिक्विफाइड नेचुरल गैस को पूरी तरह बंद करें। यूरोपीय देश अभी भी रीफाइन किए जा चुके उत्पादों के रूप में रूसी तेल खरीद रहे हैं।
अमेरिका ने भारत और चीन जैसे देशों पर भी सेकेंडरी सैंक्शंस लगाने का विचार दिया है, जो बड़ी मात्रा में रूसी तेल खरीदते हैं। ऐसे में मॉस्को की आर्थिक चुनौतियां और बढ़ सकती हैं। रिबाकोवा का मानना है कि मॉस्को पर अधिक प्रतिबंधों के जरिए दबाव बढ़ाने का यह सही समय है, क्योंकि रूस की अर्थव्यवस्था काफी कमजोर हो गई है।
हालांकि, वह यह भी मानती हैं कि वेनेजुएला, उत्तर कोरिया और ईरान जैसे देशों में जहां सरकार पर बहुत ऊंचे सैंक्शन लगे हैं, वहां आर्थिक संकट के बावजूद वो शक्तियां सत्ता में बनी हुई हैं। इसका मतलब साफ है कि केवल प्रतिबंधों से यूक्रेन को सुरक्षा नहीं मिल सकती है। उन्होंने कहा, "प्रतिबंध कुछ समस्याओं को ठीक जरूर कर सकते हैं, लेकिन सभी का पूर्ण समाधान नहीं हैं।"
दूसरी ओर, क्रिस वीफर का मानना है कि सेकेंडरी सैंक्शंस जल्द ही मॉस्को को बातचीत के लिए मजबूर कर सकते हैं। उन्होंने उम्मीद जताई, "अगर अमेरिका, रूसी तेल के खरीदारों पर 20 से 30 फीसदी का अतिरिक्त प्रतिबंध लगा देता है, तो इससे बजट अस्थिर हो सकता है और घरेलू स्थितियों में बड़े बदलाव आ सकते हैं।"