हालिया आंकड़े बताते हैं कि शिक्षा और करियर के बेहतर अवसरों की तलाश में विदेश जाने वाले भारतीय स्टूडेंट की संख्या में कमी आई है। कनाडा, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई के लिए जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में खासतौर पर कमी दिखी है। यह कमी पढ़ाई के लिए भारत से विदेश भेजे जाने वाले पैसों में आई गिरावट में झलक रही है। इस साल जून में भारतीयों ने विदेश में शिक्षा के लिए 14 करोड़ डॉलर भेजे। जबकि सितंबर, 2021 में यह आंकड़ा कई गुना ज्यादा करीब 72 करोड़ डॉलर था। यानी मौजूदा गिरावट पिछले 5 वर्षों में सबसे बड़ी है।
इसका मुख्य असर अमेरिका और कनाडा पर पड़ा है। अमेरिका में शिक्षा से जुड़े फंड ट्रांसफर में लगभग 30 फीसदी की गिरावट आई है। पिछले साल की तुलना में इस बार 44 फीसदी कम भारतीय छात्र अमेरिका गए हैं। यह संख्या कोविड महामारी के बाद से सबसे कम है।
वहीं भारतीय स्टूडेंट की ओर से पढ़ाई के नए ठिकाने चुनने का फायदा यूके, जर्मनी, आयरलैंड, दुबई, न्यूजीलैंड और साइप्रस जैसे देशों को हो रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय छात्रों के लिए विदेश में पढ़ाई की सबसे बड़ी वजह वहां नौकरी और करियर बनाने के अवसर होते हैं। जिन नए देशों की ओर भारतीय स्टूडेंट का रुझान हो रहा है, उनमें पढ़ाई पर अपेक्षाकृत कम खर्च होता है और इनके वीजा नियम भी आसान हैं।
कनाडा में क्यों कम हो रहे हैं छात्र?
भारतीय छात्रों के लिए कनाडा अब पहली पसंद नहीं रहा है। कनाडा की ओर से साल 2023 में भारतीय स्टूडेंट्स को कुल 2,78,045 स्टडी परमिट जारी किए गए थे। जबकि साल 2024 में यह संख्या घटकर सिर्फ 1,88,465 रह गई यानी लगभग 32.3 फीसदी कम। जबकि इस साल की बात करे तो कनाडा ने पहले सात महीनों में भारतीय छात्रों को कुल मिलाकर सिर्फ 52,765 स्टडी परमिट जारी किए हैं। जो साल 2024 में इसी दौर की तुलना में आधे ही हैं।
कनाडा पहले छात्रों की संख्या' पर ध्यान दे रहा था। लेकिन अब वो अपने देश में योग्य और अति कुशल छात्रों को ही बुलाना चाहता है। पिछले साल तक छात्र किसी भी कोर्स में एडमिशन ले सकते थे। लेकिन नए नियम के मुताबिक उनकी पिछली पढ़ाई का भविष्य के करियर से जुड़ा हुआ होना जरूरी है। स्टूडेंट्स के बैंक अकाउंट से जुड़े नियम भी सख्त किए गए हैं। शैक्षिक योग्यताएं कठोर की गई हैं। अब इंग्लिश प्रोफिशिएंसी टेस्ट में अच्छे अंक लाना जरुरी हो गया है। कनाडा पढ़ने जाने का खर्चा भी काफी बढ़ा है। पहले 10 से 12 लाख रूपए में लोग कनाडा में पढ़ाई कर लेते थे लेकिन अब ये बजट कम से कम दोगुना बढ़ गया है।
पंजाब के बरनाला में स्थित शिव शक्ति ट्रेडमार्ट पिछले 15 सालों से युवाओं को विदेश में पढ़ने के लिए मदद कर रहा है। कंपनी के निदेशक अरुण कुमार बताते हैं कि कनाडा ने नियम सख्त कर दिए हैं। अब कनाडा स्टूडेंट्स की आर्थिक स्थिति को भी गंभीरता से देख रहा है। यदि स्टूडेंट के पास पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए पर्याप्त साधन नहीं होंगे तो वह पढ़ाई के बजाय नौकरी या कमाई पर ज्यादा ध्यान देगा।
अरुण डीडब्लू से कहते हैं, "गारंटीकृत निवेश प्रमाणपत्र जीआईसी एक फाइनेंशियल डॉक्युमेंट होता है जो कनाडा में पढ़ाई के लिए जा रहे अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए जरूरी है। यह एक तरह की फिक्स्ड डिपॉजिट होती है जो कनाडा के किसी बैंक में की जाती है। इसे दिखाकर स्टूडेंट यह साबित करते हैं कि वह कनाडा में पढ़ाई के दौरान अपना खर्च उठा सकते हैं। पहले यह 10 हजार कनाडियन डॉलर थी। इस साल इसे 22,895 हजार कनाडियन डॉलर कर दिया गया है। साल 2026 तक इसमें 2200 कनाडियन डॉलर की अतिरिक्त वृद्धि की बात चल रही है।"
पंजाब में कहते हैं कि बच्चा पढ़ने कनाडा जा रहा है तो दो पैसे भी कमा लेगा। लेकिन अब ऐसा बहुत मुश्किल हो गया है। कनाडा की अर्थव्यवस्था मंदी का सामना कर रही है। अप्रैल 2025 में यहां महंगाई दर 2.6 फीसदी दर्ज की गई। यह 2026 के मध्य तक 3.5 फीसदी तक पहुंचने का अनुमान है। कनाडा में घर खरीदना भी महंगा और मुश्किल हो गया है। भारतीय छात्रों के लिए नौकरी के कम विकल्प और अवसर बचे हैं। बेरोजगारी बढ़ गई है। कनाडा पोस्ट-स्टडी वीजा देने में भी कटौती कर रहा है।
अमेरिका जाने से क्यों बच रहे हैं भारतीय छात्र
ट्रंप का 'अमेरिका फर्स्ट' भारतीयों की मुश्किलें बढ़ा रहा है। स्टैनफोर्ड जैसी प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटियों में भारतीय छात्र नहीं दिखाई दे रहे। इस साल अगस्त में भारत से अमेरिका जाने वाले स्टूडेंट वीजा धारकों की संख्या 74,825 से घटकर 41,540 हो गई। इसके पीछे कई कारण हैं।
अरुण कहते हैं, "अमेरिका नौकरियों को अपने नागरिकों के लिए रखना चाहता है। भारतीय स्टूडेंट और उनके परिजनों के दिमाग में अमेरिका की अच्छी छवि नहीं रही है। डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा की फीस बढ़ा दी है। वहां भारतीयों के खिलाफ अपराध और रेसिज्म बढ़ा है। आए दिन भारतीयों की हत्या की खबर आ रही है। इसी साल अमेरिका ने 104 भारतीय नागरिकों को डिपोर्ट किया था। जो फोटो सामने आईं, उनमें इन लोगों के हाथों में हथकड़ी और पैरों में जंजीरें बंधी हुई थीं।"
तो अब छात्र कहां पढ़ने जाएंगे?
इतनी अनिश्चिताओं के बीच भारतीय छात्र अब दूसरे देशों का रुख कर रहे हैं। कई देश इस स्थिति का फायदा उठाना चाहते हैं। वे भारतीयों को अपने देश बुला रहे हैं। इसके लिए उन्होंने वीजा नियम और एडमिशन प्रोसेस में बदलाव किए हैं। विपिन मोकदम केसी ओवरसीस एजुकेशन के सहायक उपाध्यक्ष (ऑपरेशन) हैं। वो कई सालों से छात्रों को विदेश पढ़ने जाने में मदद कर रहे हैं।
वह डीडब्लू को बताते हैं, "कनाडा जैसे देशों में भारतीय छात्रों को आकर्षित करने के लिए कई प्राइवेट कॉलेज खुल गए थे। उनकी फीस भी कम थी। लेकिन अब कोई देश कम योग्य या अप्रशिक्षित अप्रवासियों को नहीं चाहता। यूके ने साल 2024 में एक नियम निकाला। अंडरग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट स्टूडेंट्स अब अपनी पढ़ाई के दौरान अपने पार्टनर या बच्चे को डिपेंडेंट वीजा' पर नहीं ला सकते। इसके अलावा एक वजह भारतीय रुपये का कमजोर होना भी है। जिसके चलते विदेश में शिक्षा का खर्च 20 फीसदी तक बढ़ गया है।"
ऐसे माहौल में छात्र अब ऑस्ट्रेलिया और यूएई में पढ़ाई के विकल्प को गंभीरता से देख रहे हैं। शिक्षा के लिए इन देशों का वीजा मिलने की प्रक्रिया सरल है। जर्मनी भी एक अच्छा विकल्प बना हुआ है। विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी के अधिकांश कॉलेजों में ट्यूशन फीस या तो बहुत कम होती है या पूरी तरह से माफ होती है। इसके अलावा वहां कुशल श्रमिकों की भारी कमी है, जिस कारण स्टूडेंट्स के पास पढ़ाई के बाद नौकरी पाने के अच्छे अवसर होते हैं। लगभग पांच वर्षों के अनुभव के बाद परमानेंट रेजिडेंसी मिल जाती है, इससे शेंगेन क्षेत्र के अन्य देशों में भी काम करने के रास्ते खुल जाते हैं।
कई छात्र साइप्रस जाने में भी रूचि दिखा रहे हैं। साइप्रस में कॉलेज और यूनिवर्सिटी की फीस अन्य पश्चिमी देशों की तुलना में काफी कम है। वहां पांच से छह लाख रूपए में पढ़ाई हो जाती है। यूरोप में होने के कारण पढ़ाई के बाद छात्रों के लिए पूरे यूरोपियन यूनियन में काम करने के दरवाजे खुल जाते हैं। हालांकि यूरोप में भी पढ़ाई के लिए आने वाले स्टूडेंट्स से धोखाधड़ी के मामले कम नहीं हैं। ऐसे में जानकार पूरे रिसर्च के बाद ही विदेश में पढ़ाई का कदम उठाने की सलाह देते हैं।