क्या कोरोना लॉकडाउन जानवरों के लिए वरदान है?

शनिवार, 18 अप्रैल 2020 (14:03 IST)
रिपोर्ट स्तुति मिश्रा
 
कोरोना वायरस के कहर के बीच जहां दुनियाभर की सभी सार्वजनिक जगहों पर ताला लगा हुआ है, वहीं सभी जू और नेशनल पार्क भी बंद हैं। नेशनल पार्कों और चिड़ियाघरों में रह रहे जानवरों को तालाबंदी के बीच भी देखरेख की जरूरत पड़ती है।
 
लॉकडाउन से जिंदगी शांत भले ही दिख रही हो, घरों की चहारदीवारियों और इंसानों के अंदर बहुत ही उथल-पुथल हो रही है। जानवरों की जिंदगी भी सामान्य नहीं रही। कोरोना वायरस का खतरा भी अब जानवरों तक पहुंच गया है।
 
भारत में तालाबंदी से खाने-पीने और कई जरूरी सामानों की सप्लाई चेन बुरी तरह प्रभावित हुई है। यह मुसीबत सिर्फ इंसानों के लिए नहीं, बल्कि इंसानों पर निर्भर जानवरों के लिए भी है। मार्च के महीने से ही भारत के कई राज्यों में लगी अलग-अलग पाबंदियों के चलते देश के सभी बड़े-छोटे चिड़ियाघर बंद हैं। फिर 5 अप्रैल से लागू देशव्यापी लॉकडाउन के चलते सभी कसाईघरों को भी बंद कर दिया गया है।
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चिड़ियाघरों के अंदर बंद जानवर बाहर से लाए हुए खाने पर ही निर्भर रहते हैं। जाहिर है बाघ, तेंदुए जैसे कई मांसाहारी जानवरों के खानेभर का मांस जुटा पाना चिड़ियाघरों के प्रशासन के लिए मुश्किल हो गया है। उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह जू में भी शहर के सभी कसाईघरों के बंद होने की वजह से मुसीबतें बढ़ी हैं। प्रशासन को जानवरों के खाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है।
 
जू के डायरेक्टर आरके सिंह का कहना है कि जू में पहले की तरह संसाधन अब आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। जानवरों के लिए जू प्रशासन को कई किलोमीटर दूर से फ्रोजन मीट मंगवाकर देना पड़ रहा है, जो इस वक्त मांसाहारी जानवरों के खाने का अकेला साधन है।
दिल्ली के जू का भी बुरा हाल
 
राजधानी दिल्ली के चिड़ियाघर में भी यही समस्या थी, जहां गाजीपुर कसाईखाने के बंद होने की वजह से जानवरों को खाने की भारी कमी झेलनी पड़ी। गाजीपुर कसाईखाने में रोजाना करीब 5,000 जानवरों का वध होता है जिसमें से बकरी और भेड़ों जैसे करीब 1,000 छोटे जानवरों का मीट अकेले चिड़ियाघर प्रबंधन को ही हर दूसरे या तीसरे दिन सप्लाई होता है। इस कसाईखाने के बंद होने के बाद जानवरों के खाने का इंतजाम करने के लिए जू के अंदर ही मांस का इंतजाम करने के लिए छोटे जानवरों का वध करने की इजाजत लेनी पड़ी।
 
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ऐसा सिर्फ दिल्ली के जू का हाल नहीं है, बल्कि देशभर के जू इसी समस्या से जूझ रहे हैं जिसे लेकर देश की सर्वोच्च अदालत में एक पीआईएल भी दाखिल हुई है। इसमें लॉकडाउन के बीच कैद जानवरों के खाने और मेडिकल जरूरतों को ध्यान में रखकर और रियायतें देने की अपील की गई है।
 
नेशनल पार्क में रहने वाले जानवरों की समस्याएं अलग हैं। जंगल के जानवरों की इंसानों पर निर्भरता जू के जानवरों जितनी नहीं होती। लेकिन यहां भी कर्मचारी कई तरह से जानवरों की जिंदगी आसान करने और जंगल में संतुलन बनाए रखने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं।
 
काजीरंगा नेशनल पार्क के डायरेक्टर पी. शिवकुमार कहते हैं कि यहां रहने वाले स्टाफ के पास कुछ वक्त के लिए तो पर्याप्त राशन है, लेकिन उन्हें कुछ स्टाफ के छुट्टी पर होने और आने वाले वक्त में राशन खत्म होने की चिंता है।
कई तरह से इंसानों पर निर्भर हैं जानवर
 
भारत समेत दुनिया के कई देशों में लॉकडाउन की अवधि बढ़ा दी गई है। दुनियाभर में लगे ट्रैवल बैन के जल्द हटने की संभावना भी कम ही है। ऐसे में जिन सेक्टरों पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा है, वो है पर्यटन। पर्यटन उद्योग के ठप हो जाने का असर जानवरों से जुड़े पर्यटन पर भी होगा और जू या नेशनल पार्कों को सैलानियों से होने वाली आमदनी नहीं होगी।
 
लंबे लॉकडाउन का मतलब होगा नेशनल पार्क और चिड़ियाघरों का घाटा बढ़ेगा और संरक्षण के प्रयासों को झटका लगेगा। ज्यादातर नेशनल पार्क अपने सीजन के दौरान आने वाले पर्यटकों पर अपनी सालभर की कमाई के लिए निर्भर रहते हैं।
 
पर्यटन बिजनेस से नेशनल पार्क और उसके आस-पास के इलाकों के लोगों का रोजगार चलता है। नेशनल पार्क के करीब रहने वाले वहां के रिजॉर्ट्स में, ड्राइवर या टूर गाइड के तौर पर काम करके अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं। पर्यटकों से आया मुनाफा विलुप्त होती प्रजातियों के संरक्षण के लिए इस्तेमाल होता है। टाइगर, बारहसिंघा, हाथी और राइनो जैसी प्रजातियों को संरक्षित करने के लिए साल-दर-साल कई करोड़ की रकम लगती है जिसका मूल स्रोत पर्यटन के जरिए आया पैसा है।
 
लेकिन कुछ इलाकों की हालत कोरोना से पहले भी बहुत अच्छी नहीं थी। काजीरंगा नेशनल पार्क के डायरेक्टर पी. शिवकुमार कहते हैं कि इस साल पहले असम में नागरिकता कानून को लेकर हुई हिंसा और उसके बाद अब कोरोना लॉकडाउन में पार्क ने पर्यटन के पीक सीजन के 6 महीने में से 4 महीने का व्यवसाय गंवा दिया।
 
घटते पर्यटन और कम देखरेख के बीच अवैध शिकार की घटनाएं बढ़ने की भी आशंका प्रशासन को परेशान कर रही है। हाल ही में राइनो का शिकार करने की कोशिश में 8 पोचर्स को काजीरंगा नेशनल पार्क से गिरफ्तार किया गया। चीन में राइनो के सींग का इस्तेमाल कोरोना वायरस की दवा बनाने के लिए किए जाने की अफवाहों के बाद काजीरंगा नेशनल पार्क की सुरक्षा भी बढ़ा दी गई है।
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वायरस से जानवरों को खतरा
 
कोरोना वायरस मूल रूप से एक जूनॉटिक बीमारी है यानी ये जानवर से इंसानों में फैली है। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि यह वायरस इंसानों से जानवरों के बीच भी फैल सकता है। अमेरिका के न्यूयॉर्क में स्थित ब्रांक्स जू में एक बाघ को कोरोना वायरस होने का पहला मामला कुछ ही दिनों पहले सामने आया। किसी बाघ के कोरोना से संक्रमित होने का ये दुनिया का पहला मामला है। ऐसा माना जा रहा है बाघ को संक्रमण जू के ही एक कर्मचारी से हुआ है।
 
इससे पहले भी हांगकांग में 2 कुत्ते और बेल्जियम में 2 बिल्लियां कोरोना पॉजिटिव पाई गई थीं यानी फरवरी तक साफ हो गया कि जिसे पहले सिर्फ इंसानों के लिए खतरा माना जा रहा था, वो बीमारी जानवरों के लिए भी घातक हो सकती है।
 
लखनऊ जू के डायरेक्टर आरके सिंह का कहना है कि वायरस के खतरे से निपटने के लिए पूरे जू को डिसइंफेक्ट किया गया है और साथ ही जू में आईसोलेशन सेंटर की भी व्यवस्था की गई है। वेटरनरी डॉक्टर लगातार जू में मौजूद हैं और उनके पास निजी सुरक्षा उपकरण पीपीई भी उपलब्ध है। ऐसे इंतजाम सिर्फ जू ही नहीं, नेशनल पार्क में भी शुरू हो गए हैं।
 
इस खतरे के बीच भारत का सबसे पुराना नेशनल पार्क जिम कार्बेट पहला ऐसा नेशनल पार्क बन गया है, जहां जानवरों में कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए क्वारंटाइन सेंटर्स बनाए गए हैं। इसके अलावा कान्हा नेशनल पार्क में भी इस तरह के इंतजाम किए गए हैं। पार्क के डायरेक्टर एल. कृष्णमूर्ति का कहना है कि पार्क में लगातार वेटरनरी डॉक्टर मौजूद हैं और साथ ही आईसोलेशन सेंटर की भी व्यवस्था कर ली गई है।
 
किसी भी जानवर में कोरोना वायरस के लक्षण पाए जाने पर उसे यहां आईसोलेशन सेंटर में रखा जाएगा, वहीं काजीरंगा नेशनल पार्क के डायरेक्टर पी. शिवकुमार का कहना है कि जंगली जानवरों में जू में कैद जानवरों से ज्यादा इम्युनिटी होती है इसलिए कोरोना का खतरा उनके लिए कम है।
 
जानवरों की जरूरतों की अनदेखी
 
दुनिया के कुछ सबसे प्रदूषित शहर भारत में हैं। यहां पहली बार वायु गुणवत्ता सूचकांक 0-50 के बीच पहुंचा है, जो शायद बिना लॉकडाउन के असंभव था। यमुना के पानी की क्वालिटी फैक्टरियों के बंद होने से बेहतर हुई है। जाहिर है साफ हवा-पानी, घटता प्रदूषण, हर तरफ उड़ती चिड़िया और सड़क पर घूमते जानवर- ये सब देखकर दुनियाभर में कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन के फायदों के बारे में लगातार बात हो रही है।
 
ऐसा भी कहा जा रहा है कि इंसानों के घर में बंद रहने से दुनिया की कई समस्याएं दूर हो गई हैं। खासकर जानवरों के लिए, जो अब जंगलों में छुपकर रहने की जगह बाहर निकल रहे हैं।
 
सोशल मीडिया पर वायरल कई तस्वीरों में कहीं बेंगलुरु में हाथी घूमते नजर आ रहे हैं या मुंबई के जंगलों के पास के इलाकों में तेंदुओं के दिखने की बात हो रही है। लेकिन दूसरी तरफ हाल ही में वायरल हुआ छत्तीसगढ़ का वीडियो भी है जिसमें डस्टबिन खंगालते भालू नजर आ रहे हैं। यह वीडियो इस बात का सबूत है कि जानवर किस तरह इंसानों पर कई तरीकों से निर्भर हैं।
 
जाहिर है बेहतर पर्यावरण का फायदा जानवरों के लिए भी है। लेकिन जरूरी फंडिंग की कमी के चलते विलुप्त होती प्रजातियों के संरक्षण के लिए ईको-टूरिज्म बेहद जरूरी है। वहीं जू के पिंजरों में बंद बेजुबान जानवर अपनी हर जरूरत के लिए इंसानों पर ही निर्भर हैं, जो बेहतर व्यवसाय के जरिए ही उन्हें बेहतर सुविधाएं देते हैं।

जाहिर है कोरोना का कहर जानवरों के लिए भी कोई अच्छी खबर नहीं!

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