लाहौर की हीरामंडी में अब सिर्फ देह बिकती है

सोमवार, 17 जुलाई 2017 (13:36 IST)
16वीं सदी में लाहौर की देह मंडी को मुगलों ने शुरू किया था, अंग्रेजी हुकूमत से लेकर विभाजन और पाकिस्तान में हालिया इस्लामीकरण के बावजूद ये बाजार सजा रहा लेकिन यहां के बाशिंदे कहते हैं कि ये पहले जैसा नहीं रहा।
 
आधी रात हो चली है लेकिन पाकिस्तान में लाहौर की हीरामंडी के लिए तो जैसे अभी दिन शुरू हुआ है। इस पुराने शहर में ज्यादातर लोग जब नींद के आगोश में जा चुके होते हैं तो हीरामंडी की दुकानों का सजना शुरू होता है। इसके बाद बारी आती है यौनसुख का वादा करती मादक अदाओं और मनमोहक नाच की, जो यहां सदियों से होता आ रहा है।
 
हीरामंडी दक्षिण एशिया के पारंपरिक देह बाजार का सबसे पुराना और बड़ा ठिकाना है। घरों के भीतर जीवंत संगीत, रंगीन कपड़ों में सजी औरतें बालकनी में बने खास झरोखों से झांकती रहती हैं और नीचे दलाल गली से गुजरने वालों को "बेहतरीन सौदा" दिलाने का वादा कर अपनी ओर खींचने में लगे रहते हैं।
 
संकरी गलियों में जगह जगह फूलों की दुकान भी दिखती है क्योंकि इन औरतों को फूल पेश करना यहां की रिवायत है। लाल और सफेद फूलों का ही यहां चलन है और दुकानों से उनकी खुशबू उड़ती रहती है। यह जगह कभी उन संगीतकारों और नर्तकियों का गढ़ थी जहां सेक्स नहीं परोसा जाता था। लंबे समय से यहां रहते आए लोग कहते हैं कि हीरामंडी ने अपनी असल पहचान खो दी है। हीरामंडी में काम करने वाले संगीतकार गोगी बट कहते हैं, "पहले यह जगह ऐसी नहीं थी, यह कलाकारों की जगह थी लेकिन अब तो यह बस चकलाघर बन गया है।"
 
बाजार की आपाधापी के बीच गली में एक तरफ लकड़ी के बेंच पर बैठी करीब 50 साल की रूबीना तारिक पुराने दौर को याद करते हुए कहती हैं कि एक जमाने में वह हीरामंडी की सबसे मशहूर तवायफ थीं। 1960 के दशक में पास के ओकारा शहर से जब रूबीना यहां आयी थीं तो वो किशोरी थीं। वह कहती है, "तवायफें अब सेक्सवर्कर बन गई हैं अब वे नाचने वाली नहीं रहीं।"
 
लाहौर के इस रेडलाइट इलाके ने 16वीं सदी में शुरू होने के बाद कई तूफान झेले हैं। हीरामंडी वास्तव में मुगल नवाबों का दिल बहलाने के लिए बसायी गयी थी। नवाबों का मनोरंजन करने वाली तवायफों को भी समाज में इज्जत मिलती थी और उनका रसूख होता था। इस्लामाबाद में रहने वाले एंथ्रोपोलॉजिस्ट नदीम उमर कहते हैं कि हीरामंडी को बसाने के पीछे एक वजह कला, साहित्य, संगीत और संस्कृति को विकसित होने के लिए अवसर देना भी था। नेशनल कॉलेज ऑफ आर्ट से जुड़े उमर ने कहा, "तवायफें खुबसूरत होती थीं, अच्छा गाती, नाचती और कविताएं लिखती थीं और इन सबका इस्तेमाल वो खुद को जोरदार तरीके से पेश करने में करती थीं।"
 
अंग्रेजी हुकूमत आने के बाद शासकों ने इसे अपने सैनिकों के लिए वेश्यालयों में बदल दिया। इसके बाद बड़ा बदलाव उस वक्त भी आया जब पाकिस्तान की सरकार ने 1980 के दशक में नैतिक वजहों का हवाला दे कर इसे बंद करने की कोशिश की। नतीजा यह हुआ कि तवायफें अपना शरीर बेचने पर मजबूर हो गयीं। उमर कहते हैं, "उसके बाद कोई फर्क नहीं रह गया। लोग यहां संगीत सुनने या नाच देखने नहीं आते हैं। यहां अब सिर्फ सेक्स बिकता है।"
 
हीरा मंडी में रहने वाले परिवारों की हजारों जवान लड़कियां बार, होटल और दुबई, आबू धाबी या फिर मलेशिया जैसे देशों में नाच कर पैसे कमाना ज्यादा बेहतर समझती हैं। 27 साल की सोनम मलिक दुबई और मलेशिया में डांस करने जाती हैं। वह कहती हैं, "यहां अब कोई कला को नहीं सराहता, तो इसलिए ऐसी जगह पर ही जाना अच्छा है जहां कम से कम आपको अच्छे पैसे मिलें।" सोनम की मां भी हीरामंडी में नाचती थीं। उनका कहना है कि उन्होंने अपनी बेटी को नाचना इसलिए सिखाया ताकि ये पारिवारिक विरासत कायम रहे। सोनम कहती हैं, "मैं जानती हूं कि दुबई जैसी जगहों पर यौन शोषण का खतरा है लेकिन वहां काम करना फिर भी ठीक है, यहां काम करने का मतलब होगा कि आखिर में मुझे भी मां की तरह सेक्स वर्कर मान लिया जाएगा।" 
- एनआर/एके (डीपीए)

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