हदें तोड़ उन्मुक्त आकाश में उड़तीं मुस्लिम लड़कियां

DW

सोमवार, 4 अक्टूबर 2021 (08:39 IST)
रिपोर्ट : फैसल फरीद
 
मुस्लिम लड़कियां अपनी छवियां तोड़ रही हैं। अपने धर्म के साथ-साथ आधुनिक समाज में कदम से कदम मिला कर चल रही हैं। शहरों के अलावा वो पिछड़े ज़िलों से भी निकल कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं। घुड़सवारी, निशानेबाज़ी, वॉल पेंटिंग, स्टेज पोएट्री, हज़ारों किलोमीटर दूर जा कर पढ़ना जैसे उन सब कामों में मुस्लिम लड़कियां तेजी से आगे बढ़ी हैं, जिन्हें कथित आधुनिकता से जोड़कर देखा जाता है।
 
बिहार के पिछड़े जनपद सीवान की रहने वाली शायका तबस्सुम ने लीक से हट कर अपना करियर चुना है। वह एक वॉल ग्रैफिटी आर्टिस्ट हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों और अन्य विभागों के लिए वह ऊंची ऊंची दीवारों पर पेंटिंग बनाती हैं। छोटे शहर से, जहां इतनी सुविधाएं नहीं थीं, निकल कर ऐसा करियर चुनना आसान नहीं था।
 
वह बताती हैं कि जब उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में फाइन आर्ट्स में प्रवेश लिया तो सबसे पहले विरोध उनको रिश्तेदारों का ही झेलना पड़ा। वह कहती हैं कि यहां तक कहा गया कि अगर नहीं पढ़ना है तो किसी तरह ग्रैजुएशन कर लो।
 
सभी बाधाओं को पार करने के बाद शायका ने दिल्ली में आर्टिस्ट ट्री के नाम से अपनी कंपनी शुरू कर दी। हालांकि उन्हें आज भी सुनना पड़ता है। वह कहती हैं कि सबसे पहले तो अपने समुदाय से ही सुनना पड़ा क्यूंकि वे लोग आर्ट के विषय में ज़्यादा नहीं जानते हैं। रिश्तेदार भी कुछ न कुछ कहा करते हैं। फिर इंडस्ट्री में लोग मेरी 5 फुट 2 इंच की लम्बाई देख कर कहते हैं कि मैं ऊंची दीवारों पर काम कैसे कर पाऊंगी, और क्या मैं कामगारों को संभाल पाऊंगी।
 
पर शायका को इन सबसे अब कोई फर्क नहीं पड़ता। वह पेंटिंग पार्टी का आयोजन भी करती हैं जिसमें लोग टिकट लेकर जाते हैं और निर्देशानुसार पेंटिंग बनाते हैं।
 
सीमाएं तोड़ने की चाहत
 
तूबा जुनैद अलीगढ़ में रहती हैं और फिलहाल नैशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर से मास्टर्स कर रही हैं।  लेकिन उनको निशानेबाजी पसंद है। वह 50 और 300 मीटर राइफल शूटिंग में पारंगत हैं। उनकी अब तक की सर्वोच्च राष्ट्रीय रैंकिंग 12 आ चुकी है। कई बार वह राज्य और नैशनल शूटिंग चैंपियनशिप में हिस्सा ले चुकी हैं। तूबा बताती हैं कि जब हम खुद पहल करेंगे तो ये धार्मिक स्टीरियोटाइप इमेज टूटेगी। हालांकि शूटिंग एक बहुत प्रतिस्पर्धात्मक खेल है और इसमें बहुत पैसा लगता है जिसके कारण परिवार का सहयोग आवश्यक है।
 
इस खेल में लड़कियां और विशेषकर मुस्लिम लड़कियां कम ही दिखती हैं। उनको यह खेल अत्यधिक पसंद है क्यूंकि उनके अनुसार आपको ऐसे पशु पर नियंत्रण करना है जो आपसे अधिक समझदार है, और बड़ा भी।
 
रेजावी बताती हैं कि मैं इस खेल में पुरुषों से किसी प्रकार की स्पर्धा के कारण नहीं हूं। इस प्रकार लड़कियों की स्तुति भी नहीं करनी चाहिए। इसमें किसी स्टीरियोटाइप को तोड़ने जैसी बात नहीं लानी चाहिए।  इसको बिलकुल सामान्य लेना चाहिए। विश्व में महिलाओं का जीवन जीना मुश्किल है, और विशेषकर अगर आप भारत में हैं, और मुसलमान हैं। हमेशा आपको ये साबित करना पड़ेगा कि आप पुरुषों की ही तरह कार्य कर सकती हैं।
 
लखनऊ की आइशा अमीन का जूनून तेज रफ्तार बाइक चलाना है। उनकी पिछली स्पीड 210 किलोमीटर प्रति घंटा तक थी। वह रॉयल एनफील्ड, सुकाती, बीएमडब्लू, केटीएम, हायाबूसा जैसी सुपरबाइक चला चुकी हैं। इनमें से रॉयल एनफील्ड के अलावा सभी बाइक 1000 सीसी या उससे अधिक हैं।
 
आइशा बताती हैं कि वह बचपन से बाइक रेसिंग के बारे में सोचती थीं। उन्हें लगता था कि लड़कियां सिर्फ गुड़िया और किचन सेट से ही क्यों खेलती हैं। फिर उन्होंने 2015 से बाइक चलाना शुरू किया। खास बात ये है कि आइशा बुर्का पहन कर बाइक चलाती हैं। उनके अनुसार उन्हें इस क्षेत्र में गैर मुस्लिम लोगों से अत्यधिक सहयोग मिला और उन्हीं लोगों द्वारा 'बुर्का राइडर' का टैग दिया गया है।
 
वह कहती हैं कि मैं खुशकिस्मत थी कि मेरे परिवार ने मेरा सहयोग किया और मैंने इसके अलावा किसी रिश्तेदार की सुनी ही नहीं। आज मुझे शहर में सभी लोग जानते हैं।
 
पढ़ने की चाह
 
कोलकाता की रहने वाली हयात फातिमा ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से इंग्लिश में स्नातक किया है और वह अपने शौक कविता लेखन के प्रति पूर्णतयः समर्पित हैं। उनकी कविताएं राजनीतिक और उनके एक मुस्लिम लड़की होने के नाते स्वयं के अनुभव पर आधारित होती हैं। वह आठ साल की उम्र से कविता लिख रही हैं और अब बाकायदा स्टेज पर कविताएं पढ़ती हैं।
 
वह बताती हैं कि लोग कविता में मौलिकता पसंद करते हैं और नई पीढ़ी इसको काफी प्रोत्साहित कर रही है। लेकिन ये सब आसान नहीं था। फातिमा के अनुसार सबसे पहले तो रिश्तेदारों की एक आम धारणा होती है कि बाहर न जाएं, जिस शहर में रहती हैं वहीँ पढ़ें, एक उम्र के बाद शादी कर दी जाए आदि।
 
वह कहती हैं कि इन सब बाधाओं को तो तोडना ही पड़ता है। इसके बाद बाहर वालों से विरोध आता है।  मुस्लिम महिला होने के नाते अगर आप अपने समुदाय के विरुद्ध कुछ बोल दें तो फिर एक प्रोपेगैंडा शुरू कर दिया जाता हैं। बातों को तोड़ मरोड़ दिया जाता है। लेकिन इन सब के बीच ही आपको आगे बढ़ना है।  मुझे अक्सर लोग कहते हैं कि आप हिजाब पहनती हैं, फिर आपको इतना सब कुछ कैसे आता है।
 
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में बलिया जनपद की रहने वाली उज़्मा सरवत के अनुसार शिक्षा ही सब बाधाओं का हल है। वह इस समय आईआईटी गांधीनगर, गुजरात से कॉग्निटिव साइंस में मास्टर्स कर रही हैं।  बलिया से पढ़ने वह पहले 800 किलोमीटर दूर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी आईं और अब 1,500  किलोमीटर दूर पढ़ाई कर रही हैं। अब वह पीएचडी करना चाहती हैं।
 
उज्मा बताती हैं कि समाज में बातें होती रहती हैं कि कितना पढ़ाएंगे लड़की को, लेकिन इन सब पर कभी ध्यान नहीं दिया जाता। उज्मा की कविताएं भी खूब चर्चित होती हैं। उन्हीं के शब्दों में कि फर्ज करो तुम चिड़िया हो, आजाद, बेखौफ, उन्मुक्त। फर्ज करो, बस इतना ही।
 
अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में थियोलॉजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रेहान अख्तर के अनुसार मुस्लिम लड़कियां आजकल आगे आ रही हैं, यह एक अच्छा संकेत है। वह कहती हैं कि इसमें कुछ नया नहीं है। मुस्लिम महिलाएं जंगों में जनरल से लेकर विदूषियों तक सब कुछ रह चुकी हैं। इस्लाम में भी शुरू से महिलाएं बराबरी का दर्जा रखती हैं लेकिन फिर भी कुछ चीजें हैं जिनसे शरीयत लिहाज करती है, उनसे समझौता नहीं किया जा सकता।

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