क्या है नरेन्द्र मोदी को चुभने वाली खान मार्केट गैंग?

Webdunia
रविवार, 2 जून 2019 (11:02 IST)
एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खान मार्केट गैंग का बार-बार जिक्र किया। मोदी के शब्द उनके समर्थकों को तो खूब भाए लेकिन दिल्ली के खान मार्केट में दुकान चला रहे दुकानदारों को एक नई चिंता दे गए।
 
तस्वीर में नजर आ रहा राजधानी दिल्ली का खान मार्केट इलाका विभाजन के वक्त पाकिस्तान से आए रिफ्यूजियों के लिए बसाया गया था। लेकिन सालों बाद भी राजनीति ने इसका पीछा नहीं छोड़ा है। आज तंग गलियों में सिमटा यह बाजार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समर्थकों के लिए लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हारे उनके विरोधियों के जख्मों पर नमक छिड़कने का एक तरीका है।
 
इस पूरे मुद्दे ने चुनाव प्रचार के दौरान उस वक्त तूल पकड़ा, जब एक इंटरव्यू में मोदी ने अपने राजनीतिक विरोधियों के लिए 'खान मार्केट गैंग' शब्द का इस्तेमाल किया। प्रधानमंत्री ने यह शब्द अंग्रेजी भाषी राजनीतिक एलीट क्लास पर निशाना साधने के लिए इस्तेमाल किया था। मोदी का यह कहना उस दौर की याद दिलाता है, जब ब्रिटेन की लेबर पार्टी के नेतृत्व को 'शैम्पेन सोशलिस्ट' कहा जाता था और लंदन के इसलिंग्टन इलाके को इनके घर का टैग दे दिया गया था।
 
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मोदी की जीत को लोक-लुभावन राजनीति के दौर में बढ़ता हुआ कदम बताया जा रहा है। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप, ब्राजील में जाइर बोल्सोनारो, यूक्रेन में कॉमेडियन-एक्टर से राष्ट्रपति बने वोलोदिमीर जेलेंस्की, तुर्की में रेचेप तैयप येर्दोवान जैसे पॉपुलिस्ट नेताओं में शामिल मोदी राजनीतिक एलीट क्लास को चुनौती देते हैं।
 
खान मार्केट के डबल स्टोरी कॉम्प्लेक्स के बीच बने बंगले और अपार्टमेंट विशेष तौर पर सांसदों और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के लिए आरक्षित हैं। साथ ही इस इलाके में स्थित रेस्तरांओं में विदेशी जायका खूब मिलता है। रोजमर्रा का सामान भी अन्य बाजारों की तुलना में काफी महंगा है। मशहूर और नामचीन ब्रांड भी अब इस बाजार का रुख कर रहे हैं। राजनेता, वकील, वरिष्ठ अधिकारी और पत्रकारों के लिए खान मार्केट गप्पे मारने से लेकर नीतियां तय करने का अड्डा है।
 
रियल इस्टेट बाजार के मुताबिक खान मार्केट भारत की सबसे महंगी प्रॉपर्टियों में से एक है। लेकिन बाजार कोई खास व्यवस्थित नहीं है। बाजार का ऊबड़-खाबड़ फुटपाथ, सिर पर लटकते केबल और संकरी सीढ़ियां और दरवाजे शायद लोगों को डराकर रख दें। लेकिन मोदी के 'खान मार्केट गैंग' जैसे शब्द ने इस बाजार को चर्चा में ला दिया।
 
'इंडियन एक्सप्रेस' अखबार को दिए इंटरव्यू में मोदी ने कहा था, 'मोदी की छवि खान मार्केट गैंग या लुटियंस दिल्ली ने नहीं, बल्कि 45 साल के उनके काम ने बनाई है। काम अच्छे हों या बुरे आप- उसको नकार नहीं सकते।'
 
क्या है लुटियंस दिल्ली?
ब्रिटिश आर्किटेक्ट सर एडिवन लुटियंस नई दिल्ली को तैयार करने वाले वास्तुकार थे। लुटियंस ने जिस योजना की रूपरेखा तैयार की थी, उसमें खान मार्केट भी शामिल था। 'इंडियन एक्सप्रेस' को दिए इंटरव्यू में मोदी ने खान मार्केट का जिक्र तकरीबन 6 बार किया। इस जिक्र के पीछे मोदी विपक्षी नेताओं, बुद्धिजीवियों और कम्युनिस्ट नेताओं पर निशाना साध रहे थे।
 
यहां तक की बीजेपी की जीत के बाद कई मोदी समर्थक खान मार्केट जश्न मनाने भी पहुंचे। टि्वटर पर कहा गया कि इस जश्न से ज्यादा उदारवादियों को कुछ परेशान नहीं करेगा। बीजेपी के प्रवक्ता तजिंदर सिंह बग्गा कहते हैं, 'खान मार्केट कुछ खास लोगों का इलाका नहीं रह सकता, अब यह हमारे लिए भी चहलकदमी का ठिकाना बनेगा।'
 
खान मार्केट का इतिहास
भारत सरकार ने इस इलाके का नाम 'अब्दुल जब्बार खान' के नाम पर रखा था। अब्दुल जब्बार स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय नेता और महात्मा गांधी के मित्र अब्दुल गफ्फार खान के भाई थे। अब्दुल गफ्फार खान को 'फ्रंटियर गांधी' भी कहा जाता था।
 
खान मार्केट ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष संजीव मेहरा ने बताया कि अब्दुल जब्बार खान को यह सम्मान विभाजन के वक्त किए गए उनके कामों के लिए दिया जाता है। विभाजन के वक्त सांप्रदायिक तनाव के माहौल में अब्दुल जब्बार लाखों हिन्दुओं को पाकिस्तान से सुरक्षित निकालकर भारत लाए थे।
 
खान मार्केट में बनी दुकानों का मालिकाना हक करीब 70 लोगों के पास है, जो दुकानों के ऊपर बने घरों में रहते हैं। सभी के परिवार पाकिस्तान छोड़कर भारत आ गए थे। अधिकतर दुकानदार ये नहीं मानते कि मोदी का खान मार्केट बोलना उनके ऊपर कोई निशाना था। हालांकि वे ये जरूर कहते हैं कि मोदी का निशाना उन चंद लोगों पर था, जो खान मार्केट में चाय-कॉफी पीने आते हैं और घंटों बैठकर राजनीतिक बहसें करते हैं।
 
हालांकि अधिकतर दुकानदार इस बात पर जरूर सहमत हैं कि एक बीजेपी नेता की ओर से दिए गए नाम बदलने के प्रस्ताव ने अब बहुत बड़ी बहस का रूप ले लिया है। ट्रेडर एसोसिएशन के अध्यक्ष संजीव मेहरा कहते हैं, 'इस जगह का एक समृद्ध इतिहास रहा है और दुकान मालिकों ने बाजार का नाम बनाने के लिए बहुत मेहनत की है।' उन्होंने कहा कि नाम बदलने का एक आदेश सारी विरासत को धराशायी कर सकता है।

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