70 साल के विभाजन ने इतिहास में इंसानों के सबसे बड़े विस्थापन की इबारत लिखी। इसके बाद भी पाकिस्तान से हिंदुओं का भारत आना जारी है। हिंदू बहुल देश में सरकारी अधिकारी उनसे 'पाकिस्तानी एजेंट' जैसा सलूक करते हैं। पाकिस्तान में रहने वाले जोगदास कई दशकों से हो रहे उत्पीड़न से बचने के लिए भारत आने का सपना देखा करते थे। सीमा पार करने के बाद जब सच का सामना हुआ है तो सारे ख्वाब बिखर गए हैं।
सीमा पर दसियों हजार लोग अस्थायी शिविरों में जिंदगी बसर कर रहे है और उनके पास काम करने का भी कोई कानूनी अधिकार नहीं है। बहुत से लोग मजबूर हो कर पास में मौजूद गैरकानूनी पत्थर की खदानों में काम करते हैं। ये लोग ज्यादा इधर उधर जा भी नहीं सकते क्योंकि प्रशासन इनके आने जाने की कड़ी निगरानी करता है। सीमा पार से आने वाला हर शख्स उनके लिये संदिग्ध है।
हिंदू बहुल देश भारत में रहने का सपना देखने वाले ज्यादातर लोगों ने इस तरह के स्वागत की उम्मीद नहीं की थी। इन लोगों में शामिल 81 साल के जोगदास कहते हैं, "ना काम, ना घर, ना पैसा, ना खाना। वहां हम खेतों में काम करते थे, हम किसान थे। लेकिन यहां हम जैसे लोगों को जीने के लिए पत्थर तोड़ने पड़ते हैं।"
राजस्थान में जोधपुर शहर के बाहर एक शिविर में रह रहे जोगदास ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "हमारे लिए विभाजन अब भी खत्म नहीं हुआ। हिंदू अब भी अपने वतन लौटने की कोशिश में हैं। जब वे यहां आते हैं तो उन्हें कुछ नहीं मिलता।"
1947 में अंग्रेजी शासन से आजाद होने के बाद करीब डेढ़ करोड़ लोग अपनी जड़ों से उखड़ गए। महीनों तक चले दंगों में कम से कम 10 लाख लोगों की मौत हुई। हिंसा, भारी उपद्रव और अव्यवस्था के बीच पाकिस्तान से सिख और हिंदू भारत की ओर भागे जबकि मुसलमानों ने दूसरी ओर का रुख किया।
भारी संख्या में लोगों के भारत आने के बावजूद पाकिस्तान में हिंदू वहां सबसे बड़ा धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय है। आंकड़ों की मानें तो 20 करोड़ की आबादी वाले पाकिस्तान में करीब 1.6 फीसदी हिंदू ही बचे हैं। बहुत से लोगों का कहना है कि पाकिस्तान में हिंदुओं को भेदभाव का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं अपहरण, बलात्कार और जबरन शादी जैसी घटनाएं भी अकसर होती हैं।
जोगदास कहते हैं, "विभाजन के साथ ही हमारे साथ दुर्व्यवहार शुरू हो गया।" जोगदास का परिवार विभाजन से कुछ ही महीने पहले भयानक बाढ़ से बचने के लिए उस जगह गया था जिसे अब पाकिस्तान कहते हैं। वह कहते हैं, "वहां एक दिन ऐसा नहीं बीता जब हम शांति से रहे हों। मैं अपने हिंदू भाइयों के साथ रहने के लिए वापस आना चाहता था।"
पाकिस्तान से आने वाले ज्यादातर शरणार्थी सिंध प्रांत से आते हैं। थार मरुस्थल से चार घंटे की ट्रेन यात्रा कर वह जोधपुर पहुंचते हैं। इन लोगों के खानपान और रीती रिवाज और भाषा राजस्थान के लोगों जैसे ही हैं इसलिए इन्हें यहां आकर घर पहुंचने का अहसास होता है। हालांकि सच्चाई ये है कि वह स्थानीय लोगों से दूर बने शिविरों में रहते हैं और सरकारी अधिकारी इन्हें शक की निगाह से देखते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्रवादी सरकार ने कहा है कि वह ऐसे लोगों के लिए भारत में शरण लेना आसान बनाएगी। पिछले साल नियमों में बदलाव कर यह सुविधा दी गयी कि वो अब सीधे उसी राज्य में नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं जहां उन्हें रहना है। इसके लिए उन्हें केंद्र सरकार के पास जाने की जरूरत नहीं है। पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थियों को भारत जल्दी नागरिकता देता है लेकिन फिर इसके लिए उन्हें सात साल देश में रहना पड़ता है। हालांकि इसके लिए उन्हें अफसरशाही का सामना करना पड़ता है और इसमें भी देर लगती है।
64 साल के खानारामजी 1997 में पाकिस्तान से भाग कर आए और 2005 में उन्हें यहां की नागरिकता मिली। उनका कहना है बहुत से लोगों ने तो उम्मीद छोड़ दी और पाकिस्तान लौट गए। भारत की जिंदगी से उनका मोह भंग हो गया। वह कहते हैं, "सरकार से कोई सहायता नहीं मिलती। हम उन पशुओं की तरह हैं जिनका कोई मालिक नहीं। हम किसी तरह खुद से जी रहे हैं।"
ये लोग गरीबी से ज्यादा अधिकारियों की शक्की नजर से परेशान होते हैं। खानारामजी कहते हैं, "जिनके पास नागरिकता नहीं है उन्हें खुफिया एजेंसियां तंग करती हैं। उनसे हमेशा पाकिस्तानी एजेंटों की तरह व्यवहार किया जाता है। वे जो कुछ कमाते हैं उसका सबसे बड़ा हिस्सा पुलिस थाने और सेना के दफ्तरों के चक्कर काटने में खर्च होता है।"
जोधपुर में पाकिस्तानी हिंदुओं के लिए चैरिटी संस्था चलाने वाले हिंदू सिंह सोढा कहते हैं कि उन्हें मोदी सरकार से बहुत उम्मीद थी लेकिन वह अब निराश हैं। भारत पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ने पर पाकिस्तान से आने वाले प्रवासियों की निगरानी और तेज हो जाती है। मोदी सरकार में इस तरह के मौके बहुत आए हैं। उनका कहना है, "उनकी जिंदगी नारकीय हो गई है। क्योंकि उनके घर, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार सब पर इसका असर होता है।"
हालांकि इतने पर भी कुछ लोग है जो इसे सहन करने को तैयार हैं। होरोजी अपने दो जवान बेटों के साथ पाकिस्तान से भाग आए क्योंकि उनके मुस्लिम पड़ोसी उन्हें मारने की धमकी दे रहे थे। 65 साल के होरोजी कहते हैं, "अपनी जिंदगी बचाने के लिए हमें भाग कर भारत आना पड़ा। मेरे दादा उस ओर काम करने गए थे लेकिन उन्होंने कहा था कि जब सही समय आए तो भारत चले जाना क्योंकि उन्होंने उसी वक्त जान लिया था कि वह जगह हिंदुओं के लिए सुरक्षित नहीं है।"