क्या पटना साहिब में "शॉटगन" अब "खामोश" हो रही है?

गुरुवार, 16 मई 2019 (11:11 IST)
बीजेपी समर्थक माने जाने वाले कायस्थों की बहुलता वाली सीट पटना साहिब में इस बार मुकाबला दो कायस्थों के बीच फंसा है। नीतीश कुमार का काम और एनडीए का नाम रविशंकर का सहारा है तो स्टार छवि और दो बार की जीत शत्रुघ्न के साथ।
 
 
पटना शहर में एक चीज बड़ी खूबसूरत है। यहां की सरकारी इमारतों और सार्वजनिक दीवारों पर मधुबनी पेंटिंग्स बना दी गई हैं। इन पेंटिंग्स को बनाने की वजह शहर की गंदी हो चुकी दीवारों को खूबसूरत दिखाना है। हालांकि इन पेंटिंग्स से शहर की असमानता नहीं छिप पा रही है। शहर के फ्लाईओवरों के नीचे ही कच्ची बस्तियां बस चुकी हैं। शहर में अब भी बड़ी संख्या में साइकिल रिक्शा चल रहे हैं। शहर में चल रहे कुछ बड़े निर्माण कार्यों से लगता है कि शहर अभी शहर बन रहा है। पटना में दो लोकसभा सीटें आती हैं। पटना साहिब और पाटलीपुत्र। पटना साहिब में पटना शहर का बड़ा इलाका आता है। पटना साहिब कहने की वजह है यहां पर स्थित सिखों का धर्मस्थल हरमिंदर साहिब जहां सिखों के दसवें गुरू गुरू गोविंद सिंह पैदा हुए थे।
 
 
इस सीट पर मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच में हैं। 6 अप्रैल को भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए मौजूदा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं। उन्हें चुनौती दे रहे हैं केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद। पटना साहिब सीट 2009 के चुनाव में अस्तित्व में आई थी। इस सीट से पिछले दोनों लोकसभा चुनावों में शत्रुघ्न जीते हैं।
 
 
रविशंकर प्रसाद लगभग चार दशक बाद चुनावी राजनीति में वापस आए हैं। इससे पहले वो छात्रसंघ का चुनाव लड़े थे। शत्रुघ्न 2009 में जीते और 2014 में जीत के अंतर को और बढाया। शत्रुघ्न के लिए चिंता का पहला विषय है बिहार में चलने वाली एक कहावत। पिछले कई चुनावों से माना जाता है कि पटना, किशनगंज और नालंदा पार्टियों की सीटें हैं। पटना भाजपा, किशनगंज कांग्रेस और नालंदा जनता दल यूनाइटेड किसी को भी टिकट देकर जीत सकती है। ऐसे में शत्रुघ्न सिन्हा को मनोवैज्ञानिक स्तर पर यह चिंता में डालने वाली बात है।
 
 
टना के लोग शत्रुघ्न की इस चिंता को और बढ़ा रहे हैं। पार्क की सफाई का काम करने वाले घनश्याम ठाकुर का कहना है कि शत्रुघ्न सिन्हा यहां कम आते हैं और मुंबई ज्यादा रहते हैं। ठाकुर ने कहा, "वो एक्टर तो अच्छे लगते हैं पर लोगों के बीच कम दिखाई देते हैं। पिछली बार मोदी लहर की वजह से वो ज्यादा वोट से जीत गए थे। इस बार मोदी ने प्रसाद को उतारा है तो उनको वोट देंगे। होने को तो प्रसाद भी पटना में नहीं दिखे पर मोदीजी के लिए हम उनको वोट देंगे।"
 
 
बाजार से खरीदारी कर लौट रहीं रंजना देवी कहती हैं कि 15 साल पहले शाम को छह बजे बाद सड़क पर निकलने में भी डर लगता था। रंजना देवी के मुताबिक, "अपराध बहुत ज्यादा था लेकिन नीतीश कुमार के आने के बाद अपराध कम हुआ है। हालांकि पिछले एक दो सालों में फिर से बढ़ा है लेकिन पहले से बहुत कम है।" इसलिए वो एनडीए का समर्थन कर रही हैं।
 
 
शत्रुघ्न सिन्हा का स्टारडम आज भी कायम है। एक टीवी इंटरव्यू के लिए शत्रुघ्न पटना के कारगिल चौक पर गाड़ी से उतरते हैं तो उनको देखने के लिए भीड़ लग जाती है। लोग उन्हें बिहारी बाबू कहकर नारे लगाते हैं। लोग लगातार उनके साथ सेल्फी लेते हैं। शत्रु भी अपने प्रशंसकों को नाराज नहीं करते। हालांकि ये सेल्फी लेने वाले वोट देंगे या नहीं यह कहना मुश्किल है।
 
 
सेल्फी ले रहे एक उत्साही प्रशंसक से जब हमने वोट का पूछा तो वो बोलते नजर आए "शत्रुघ्न हमारे चहेते अभिनेता हैं लेकिन वोट मोदी को दूंगा।" कांग्रेस के साथ पिछड़े तबके के लोगों का समर्थन तो है लेकिन इस बार वो भी उज्ज्वला, आवास और आयुष्मान के लाभ के चलते मोदी की तरफ झुक रहे हैं।
 
बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद से निचले तबके के लोग खुश हैं। उनका कहना है कि पहले शराब पीकर अपराध भी ज्यादा होते थे और शराब की लत के चलते आर्थिक नुकसान भी हो रहा था। अब शराब बंद होने से शराबियों का सड़क पर घूमते मिलना बंद हो गया है क्योंकि पुलिस ने सख्ती से इसे लागू करवाया। हालांकि ये अवैध तरीके से अभी चल रही है। अवैध तरीके से ये शराब बहुत महंगी दरों पर मिलती है। साथ ही पकड़े जाने का डर रहता ही है।
 
 
आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव फिलहाल जेल में हैं। उनके दोनों बेटे तेज प्रताप, तेजस्वी और बेटी मीसा भारती राजनीति में सक्रिय हैं। बार-बार इनके बीच मनमुटाव की खबरें आती रहती हैं। हालांकि लालू के समर्थकों को इससे समस्या नहीं है। वो कहते हैं कि घर में झगड़े तो होते रहते हैं। वो कहते हैं कि लालू जी की कमी चुनावों में खल रही है। तेजस्वी परिपक्व हो रहे हैं। लेकिन लालू जैसा बनने में उन्हें समय लगेगा। लालू के जेल जाने को उनके समर्थक भाजपा की साजिश बता रहे हैं। वो लालू को पिछड़ों का मसीहा जैसी संज्ञा भी देते हैं।
 
 
पटना का जाति समीकरण इस बार उलझा हुआ है। सबसे बड़ा वोट कायस्थ जाति का है। साढ़े बीस लाख मतदाताओं में से करीब छह लाख कायस्थ मतदाता हैं। दोनों प्रमुख उम्मीदवार इसी जाति से आते हैं। ये जाति परंपरागत रूप से भाजपा की वोटर मानी जाती है। लेकिन इस बार वोट बंट सकता है। रविशंकर फिलहाल राज्यसभा सांसद हैं। उनका करीब पांच साल का कार्यकाल बच रहा है।
 
 
शत्रुघ्न के समर्थक कायस्थ समाज में एक की जगह दो सांसद की बात कर रहे हैं। उनका कहना है कि रविशंकर हारते हैं तो भी संसद में रहेंगे। इसलिए शत्रुघ्न को वोट करें जिससे समाज के दो सांसद संसद में हों। एक फैक्टर भाजपा के राज्यसभा सांसद आर के सिन्हा का भी है। वो अपने बेटे के लिए टिकट मांग रहे थे। रविशंकर को टिकट मिलने के बाद वहां आर के सिन्हा के समर्थकों से प्रसाद के समर्थकों की बड़ी झड़प हुई थी। फिलहाल दोनों के बीच सुलह हो गई है।
 
 
रविशंकर गली-गली जाकर जनसंपर्क कर रहे हैं वहीं शत्रुघ्न सिन्हा थोड़ी देर से चुनाव प्रचार में सक्रिय हुए हैं। वो दूसरी सीटों पर स्टार प्रचारक के रूप में काम कर रहे थे। अब वो पटना पहुंचे हैं। अब देखना यह है कि नए-नए कांग्रेसी शत्रुघ्न मुकाबला जीतते हैं या जनसंघ के संस्थापक सदस्य रहे ठाकुर प्रसाद के पुत्र और पहली बार चुनावी राजनीति में उतरे रविशंकर प्रसाद।
 
रिपोर्ट ऋषभ कुमार शर्मा
 

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी