सीरिया और यूक्रेन के बाद अब अफगानिस्तान पर पुतिन की नजर?

गुरुवार, 5 जनवरी 2017 (11:27 IST)
अफगानिस्तान में रूस की बढ़ती दिलचस्पी से बहुत से विश्लेषक हैरान हैं। युद्ध से तबाह इस देश में रूस क्या हासिल करना चाहता है? क्या सीरिया के बाद अफगानिस्तान अमेरिका और रूस के बीच जोर आजमाइश का अखाड़ा बनेगा?
हाल के समय में रूस ने अफगानिस्तान में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। बहुत से विश्लेषक इस बात से हैरान हैं क्योंकि रूस ने कई सालों तक अफगानिस्तान में जारी संकट से दूरी बना कर रखी थी। यहां तक कि रूस ने 2001 में अफगानिस्तान में होने वाले अमेरिकी हमले और वहां तालिबान की सत्ता खत्म किए जाने का भी समर्थन किया था। पूर्व अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई ने कभी कहा था कि अफगानिस्तान ही अकेली ऐसी जगह है जहां अमेरिका और रूस के हित एक दूसरे से नहीं टकराते।
 
लेकिन अब इस इलाके में नए भूराजनीतिक समीकरण उभर रहे हैं और लगता है कि रूस ने तटस्थ ना रहने का फैसला किया है। हाल में अफगानिस्तान के मुद्दे पर मॉस्को में रूस, चीन और पाकिस्तान की बैठक हुई। यह बैठक अफगानिस्तान में रूस की बढ़ती दिलचस्पी का साफ संकेत देती है।
 
रूस ने पहली बार 2007 में तालिबान नेतृत्व के साथ संपर्क स्थापित किया और अफगानिस्तान की सीमा से लगने वाले मध्य एशियाई देशों में नशीले पदार्थों की तस्करी पर चर्चा की। अब फिर ऐसी खबरें है कि रूस तालिबान के संपर्क में है। विश्लेषकों की राय है कि इस बार वह सिर्फ नशीले पदार्थों की तस्करी पर बात नहीं कर रहा है। उनके मुताबिक रूस को लगता है कि अफगानिस्तान में अमेरिकी नीतियां नाकाम हो गई हैं और इसीलिए वह हस्तक्षेप कर रहा है।
 
वॉशिंगटन स्थित वूड्रो विल्सन इंटरनेशनल सेंटर फॉर स्कॉलर्स में विशेषज्ञ माइकल कूगेलमन ने डीडब्ल्यू को बताया, "रूस कई दशकों से अफगानिस्तान के घटनाक्रम पर नजर रखे हुए है। लेकिन अब लगता है कि वह वहां चल रहे घटनाक्रम का फिर से हिस्सा बनना चाहता है, वह भी बड़े तरीके से।"
 
रूस को आशंका है कि इराक और सीरिया के बाद अफगानिस्तान तथाकथित इस्लामिक स्टेट के लिए नई सुरक्षित शरणस्थली बन सकता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि रूस मध्य एशिया के पड़ोस में इस्लामिक स्टेट को नहीं चाहता।
 
पूर्व अफगान राजनयिक अहमद सैदी ने डीडब्ल्यू से कहा, "रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अफगानिस्तान में आईएस की मौजूदगी को अपने हितों के लिए बड़ा खतरा मानते हैं।" उनका कहना है कि रूस और तालिबान, दोनों आईएस को लेकर चिंतित हैं और उनके करीब आने की भी यही वजह है। पिछले दो साल के दौरान कई बार तालिबान और आईएस के लड़ाकों की झड़पें हुई हैं। दोनों ही गुट अफगानिस्तान में अपना दबदबा कायम करना चाहते हैं।
 
लेकिन कुगेलमन की राय है कि रूस तालिबान के साथ नजदीकी बढ़ाकर जोखिम मोल ले रहा है। वह कहते हैं, "रूस नॉन स्टेट एक्टर्स को मजबूत कर रहा है जो आईएस का प्रतिद्वंद्वी है, क्योंकि रूस को आईएस से ज्यादा डर सता रहा है।" लेकिन अफगानिस्तान में रूस की बढ़ती सक्रियता से क्षेत्र में भूराजनीतिक जटिलताएं बढ़ेंगी। हालांकि रूसी राजनयिक मानते हैं कि तालिबान के साथ उनके संपर्क सिर्फ शांति वार्ता को आगे बढ़ाने के लिए हैं। लेकिन पश्चिमी अधिकारियों का कहना है कि रूस और तालिबान के रिश्ते बहुत आगे निकल गए हैं।
 
वॉल स्ट्रीट जरनल ने अफगान और पश्चिमी अधिकारियों के हवाले से लिखा है कि रूस अफगान सरकार और तालिबान से अलग हो चुके पूर्व वारलॉर्ड गुलबुद्दीन हिकमतयार के बीच समझौता नहीं होने दे रहा था। कभी काबुल के कसाई के नाम से कुख्यात रहे गुलबुद्दीन ने पिछले साल अफगान सरकार के साथ शांति समझौता किया था। अफगानिस्तान चाहता है कि हिकमतयार का नाम संयुक्त राष्ट्र की ब्लैकलिस्ट से हटा दिया जाए, लेकिन वॉल स्ट्रीट जनरल के मुताबिक रूसी अधिकारी इसमें बाधा डाल रहे हैं।
 
जानकारों का कहना है कि रूस तालिबान का इस्तेमाल कर अमेरिका पर दबाव बढ़ाना चाहता है। कुगेलमन कहते हैं कि यह तय कर पाना मुश्किल है कि तालिबान के साथ रूस की बढ़ती नजदीकियों का असल मकसद क्या है। उनके मुताबिक, "हो सकता है कि रूस 'दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है' की नीति पर चल रहा हो।"
 
पूर्व अफगान राजनयिक सैदी मानते हैं कि यूक्रेन और सीरिया के बाद अफगानिस्तान रूस और अमेरिका की तनातनी नया अखाड़ा बन रहा है। विशेषज्ञ कहते हैं कि इससे युद्ध से तबाह अफगानिस्तान का कुछ भला नहीं होगा क्योंकि उसे तो स्थिरता और शांति चाहिए।
 
रिपोर्ट:- मसूद सैफुल्लाह

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