स्विट्जरलैंड की एक युवती बार बार श्रीलंका जाती है। वहां की महिलाओं में वह अपनी बायोलॉजिकल मां को खोजने की कोशिश करती है। यूरोप में ऐसे हजारों बच्चे हैं जो गैरकानूनी तरीके से गोद लिए गए।
स्विस नागरिक ओलिविया राम्या टानेर ने छुट्टियों में श्रीलंका जाने का फैसला किया। स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख शहर में पली बढ़ी ओलिविया को लगा कि श्रीलंका में वह बीच का आनंद उठाएंगी। आयुर्वेदिक रिट्रीट करेंगी। साथ ही वह अपनी बायोलॉजिकल मां की खोज के लिए भी वक्त निकालेंगी। लेकिन वहां पहुंच कर ओलिविया को पता चला कि उनकी अब तक जिंदगी झूठों से भरी हुई है। इन झूठों की शुरुआत उनके बर्थ सर्टिफिकेट के साथ ही शुरू हो गई थी।
जन्म देने वाली मां को खोज ओलिविया ने अप्रैल 2016 में शुरू की। एक आईटी कंपनी में काम करने वाली ओलिविया ने स्विट्जरलैंड में एक निजी जांचकर्ता की मदद ली। इसी दौरान ओलिविया की छोटी बहन गेराल्डिने भी अपनी बायोलॉजिकल मां की तलाश में बड़ी बहन के साथ जुड़ गई।
कुछ समय बाद निजी जांचकर्ता का फोन आया। उसने बताया कि गेराल्डिने की मां मिल गई है। जन्म देने वाली मां से मुलाकात का कार्यक्रम तय किया गया। तब तक ओलिविया की मां का कोई अता पता नहीं चला था। इसके बावजूद ओलिविया ने तय किया वह अपनी बहन गेराल्डिने के साथ जाएंगी। दोनों श्रीलंका के रत्नापुरा जनरल हॉस्पिटल में पहुंचे।
वहां जाकर पता चला कि ओलिविया का बर्थ सर्टिफिकेट ही फर्जी है। ओलिविया कहती हैं, "उन्होंने मुझसे कहा कि मैं वहां रजिस्टर ही नहीं हूं, मेरा सर्टिफिकेट असली नहीं है। मैं सन्न रह गई।"
श्रीलंका में स्थानीय और राष्ट्रीय रिकॉर्डों में भी कुछ नहीं मिला। ओलिविया अपने अस्तित्व को लेकर उलझ गईं, "मेरी पूरी पहचान धराशायी हो रही थी। मैं बहुत ही बुरी स्थिति में थी।" इसके एक साल बाद हॉलैंड के एक टेलिविजन चैनल ने बच्चों के बायोलॉजिकल माता पिता खोजने वाला कार्यक्रम प्रसारित करना शुरू किया। कार्यक्रम से पता चला कि ओलिविया अकेली नहीं हैं, ऐसे हजारों बच्चे हैं, जिन्हें फर्जी कागज बना कर गोद लिया गया।
इसके बाद स्विस शहर सेंट गालेन के प्रशासन की रिपोर्ट में भी यह बात साफ कही गई कि 1970 से 1990 के दशक तक श्रीलंका से गोद लिए गए ज्यादातर बच्चे फर्जी कागजों के आधार पर यूरोप आए। 750 में से 70 फीसदी बच्चे गैरकानूनी तरीके से गोद लिए गए।
इस दौरान श्रीलंका से यूरोप, अमेरिका और कनाडा के लोगों ने करीब 11,000 बच्चे गोद लिए। श्रीलंका में कुछ मांओं को भ्रष्ट अधिकारियों ने गुमराह किया। अस्पताल के कुछ अधिकारियों ने प्रसव के बाद महिलाओं से कहा कि उनका बच्चा प्रसव के दौरान मारा गया। कुछ महिलाओं से कहा गया कि उनके शिशु की हालत बहुत नाजुक है, उसे स्पेशल केयर की जरूरत है। बाद में इन शिशुओं को गोद लेने वालों को दे दिया गया।
श्रीलंका में कई युवतियां उस दौरान शादी से पहले गर्भवती भी हो गई थीं। लोकलाज के भय से वे घर से भागीं और बच्चे को एडॉप्शन के लिए दे दिया। गोद लेने के लिए बच्चे बेचने वाले दलाल झुग्गियों, अस्पतालों और रेलवे स्टेशनों तक में सक्रिय थे। स्विस रिपोर्ट के मुताबिक कुछ मौकों पर तो महिलाओं को अपना बच्चा देने के लिए मजबूर भी किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक, "इन सब बच्चों को निर्यात के लिए रखा गया था।"
स्विस रिपोर्ट के मुताबिक स्विट्जरलैंड में एलिस होनेगर नाम की महिला सबसे बड़ी एडॉप्शन सर्विस चला रही थी। वह सेंट गालेन से भी काम कर रही थी। 1996 में होनेगर की मौत हो गई। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि एडॉप्शन कार्यक्रम के चलते एक साल में होनेगर ने करीब 97,000 डॉलर कमाए।
ओलिविया की बहन गेराल्डिने का कानूनी एडॉप्शन होनेगर ने ही कराया था। ओलिविया को सिर्फ इतना पता चला कि उसके जन्म के बाद श्रीलंका में दा सिल्वा नाम की एक महिला ने एडॉप्शन के कागज तैयार करवाए। दा सिल्वा ने खुद को ट्रैवल एजेंट, टूर ऑपरेटर और एडॉप्शन एजेंट बताया। ओलिविया ने दा सिल्वा से मुलाकात की। दा सिल्वा अब 80 साल के पार हैं। इस रिपोर्ट को लेकर दा सिल्वा की प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की गई, लेकिन उन तक नहीं पहुंचा जा सका।
दा सिल्वा से मुलाकात के बारे में ओलिविया कहती हैं, "उन्हें लगता है कि उन्होंने अच्छा काम किया। मेरे लिए यह सुनना सबसे ज्यादा कठिन था। उन्हें कोई मलाल नहीं है। उन्हें साफ तौर पर लगता है कि उन्होंने कुछ भी गैरकानूनी नहीं किया। दूसरों पर वह आसानी से आरोप लगा रही थीं, मसलन उनके पास सप्लायर्स थे जो बच्चे खरीदते थे।"
स्विस अधिकारियों ने बाद में होनेगर की एडॉप्शन सर्विस का परमिट रद्द कर दिया। लेकिन इंटरपोल की रिपोर्ट में कहा गया कि होनेगर ने कोई कानून नहीं तोड़ा है। इसके बाद परमिट फिर जारी कर दिया गया। श्रीलंका के मौजूदा स्वास्थ्य मंत्री मानते हैं कि 1880 से 1990 के दशक के बीच कई किस्म की धांधलियां हुईं।
सेंट गालेन की फैमिली एंड सोशल सर्विस की हेड एलिजाबेथ फ्रोएलिष के मुताबिक, "ऐसी कोई भी एक प्रशासनिक संस्था नहीं थी जो कहे कि "श्रीलंका से इससे ज्यादा एडॉप्शन नहीं होंगे।" हर कोई अपनी जिम्मेदारी से भाग रहा था। उस वक्त सबको यही लग रहा था कि बच्चों को प्यार करने वाले मां बाप मिल रहे हैं। इसे ऐसे दिखाया जा रहा था जैसे तीसरी दुनिया के पिछड़े देश से बच्चों को बचाने के लिए समाज कुछ अच्छा काम कर रहा है।"
अच्छा काम, ओलिविया ऐसा नहीं मानतीं। उन्हें लगता है जैसे उन्हें बाजार में मिलने वाले किसी सामान की तरह बेचा गया हो, "डिमांड, सप्लाई को नियंत्रित करती है। निश्चित रूप से जिन लोगों को नवजात बच्चे चाहिए थे, उनके लिए शिशुओं की व्यवस्था करनी थी।"
डीएनए टेस्ट के जरिए अपने बायोलॉजिकल मां बाप को खोजना सबसे सटीक तरीका है। स्विट्जरलैंड में बच्चों को इसका कानूनी हक है। ओलिविया के मुताबिक, सिर्फ वही अपनी मां को नहीं खोज रही हैं, बल्कि ऐसी कई महिलाएं हैं जो 30 साल पहले पैदा किए अपने बच्चे तक पहुंचना चाहती हैं।
ओलिविया को गोद लेने वाले माता पिता भी दुखी हैं। ओलिविया के मुताबिक उन्हें भी पता नहीं था कि एडॉप्शन के कागज फर्जी थे, "मेरे पिता बुरी तरह व्यथित हैं। उनकी मंशा बहुत अच्छी थी।" अभिभावकों को गर्व है कि उनकी बेटी खुद इस मुद्दे को उठा रही हैं।
ओलिविया खुद को '120 फीसदी स्विस' मानती हैं। वह अपने स्विस मां बाप और बहन से प्यार करती हैं। लेकिन दिल में एक टीस है, जो पीछा नहीं छोड़ती। ओलिविया जब कभी श्रीलंका जाती हैं तब 50 साल से ज्यादा उम्र की कई महिलाओं में वह अपनी जन्मदायी मां को खोजने की कोशिश करती हैं और फिलहाल ये खोज अंतहीन सी दिखती है।