पश्चिम बंगाल में बीजेपी से मिलने वाली कड़ी चुनौती के बावजूद जीत की हैट्रिक बनाने के बाद तृणमूल कांग्रेस की निगाहें अब पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा पर हैं। ममता की पार्टी सत्ताधारी बीजेपी को कड़ी चुनौती दे रहे हैं।
तृणमूल कांग्रेस के तमाम नेता, सांसद और मंत्री बीते करीब डेढ़ महीने से लगातार इस पर्वतीय राज्य का दौरा कर रहे हैं जहां बिप्लब देब के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार चल रही है। अब राज्य में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) संगठन को मजबूत करने के लिए ममता बनर्जी ने कांग्रेस के पूर्व दिग्गज संतोष मोहन देव की पुत्री सुष्मिता देव को पार्टी की जिम्मेदारी सौंपी है। वह खुद भी कांग्रेस सांसद रह चुकी हैं।
बीते दिनों कोलकाता में टीएमसी का दामन थामने के बाद ही सुष्मिता फिलहाल दो सप्ताह के दौरे पर त्रिपुरा पहुंच गई हैं। अब शायद बीजेपी भी टीएमसी की चुनौती को गंभीरता से लेने लगी है। शायद यही वजह है कि इस सप्ताह हुए मंत्रिमंडल विस्तार में कई असंतुष्ट नेताओं को जगह दी गई है।
बंगाल की राजनीति पहुंची त्रिपुरा : कुछ महीने पहले पश्चिम बंगाल में जो राजनीतिक लड़ाई चल रही थी वह अब त्रिपुरा पहुंच गई है। फर्क बस यही है कि जिन दोनों राजनीतिक दलों टीएमसी और बीजेपी के बीच यह लड़ाई चल रही है, उनका पक्ष बदल गया है। बंगाल में जहां सत्तारूढ़ टीएमसी को बीजेपी से चुनौती मिल रही थी, वहीं त्रिपुरा में टीएमसी ने सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं।
त्रिपुरा में भी 'खेला होबे' के कामयाब नारे के साथ मैदान में उतरी टीएमसी और बीजेपी के बीच जगह-जगह हिंसक झड़पें होने लगी हैं। राज्य सरकार ने सरकारी कामकाज में बाधा पहुंचाने के आरोप में ममता के भतीजे सांसद अभिषेक बनर्जी समेत कई नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीजेपी पर त्रिपुरा में भी केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाया है।
कोलकाता के भवानीपुर इलाके में गुरुवार को आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन में ममता ने कहा, "बीजेपी हर उस राज्य में केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है जहां वह सत्ता में है। बंगाल में सत्ता में नहीं होने के बावजूद पार्टी के नेताओं को लगातार परेशान किया जा रहा है। पार्टी इससे पहले मुलायम सिंह यादव, शरद पवार और कांग्रेस के खिलाफ भी यही तरीका आजमाती रही है।" मुख्यमंत्री का आरोप है कि बीजेपी राजनीतिक रूप से टीएमसी का मुकाबला करने में नाकाम रही है। इसलिए वह केंद्रीय एजेंसियों के कंधे पर बंदूक रख कर चला रही है।
बीते दिनों कई बार त्रिपुरा का दौरा कर चुके टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी कहते हैं, "बिप्लब देब सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी भारी बहुमत से जीत कर सरकार बनाएगी।"
त्रिपुरा में वही हो रहा है जो कुछ महीने पहले बंगाल में हुआ। पहले बंगाल में जिस तरह टीएमसी से बीजेपी में शामिल होने की होड़ लगी थी वही हालत अब त्रिपुरा में देखने को मिल रही है। अब तक कांग्रेस और बीजेपी के सैकड़ों नेता और कार्यकर्ता टीएमसी का दामन थाम चुके हैं।
कौन होगा चेहरा : त्रिपुरा बीजेपी के प्रवक्ता नबेंदु भट्टाचार्य का दावा है कि पार्टी को टीएमसी से कोई चुनौती नहीं मिलेगी। वह कहते हैं, "राज्य में टीएमसी ने अब तक ब्लॉक-स्तरीय समितियों का भी गठन नहीं किया है। उनके पास नेतृत्व के लिए कोई स्थानीय चेहरा तक नहीं है।"
हालांकि राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि स्थानीय चेहरा नहीं होना कोई बड़ी कमी नहीं है। वर्ष 2018 में जब बीजेपी ने वामपंथियों को हटा कर सत्ता हासिल की थी तब उसके पास भी कोई बड़ा या लोकप्रिय चेहरा नहीं था।
बीते महीने टीएमसी में शामिल होने के बाद पूर्व कांग्रेस सांसद सुष्मिता देव लगातार संगठन को मजबूत करने में जुटी हैं। वह कहती हैं, "फिलहाल हम संगठन को मजबूत करने पर ध्यान दे रहे हैं। बीजेपी ने वर्ष 2018 में जो चुनावी वादे किए थे उनमें से एक भी पूरा नहीं हुआ है। इसलिए लोग अब बदलाव चाहते हैं।"
सुष्मिता को राज्य में पांव जमाने के लिए अपने पिता की विरासत का भी सहारा है। उनके पिता संतोष मोहन ऐसे सांसद रहे हैं जो असम और त्रिपुरा दोनों राज्यों में सक्रिय रहे। वह सात बार में से पांच बार सिलचर (असम) और दो बार त्रिपुरा पश्चिम से सांसद रहे थे।
टीएमसी ने बंगाल की तरह त्रिपुरा में भी कांग्रेस का विकल्प बनने का फैसला किया है। अब सुष्मिता त्रिपुरा की राजनीति में सक्रिय होने से कांग्रेस कांग्रेस की मुश्किलें और बढ़ने का अंदेशा है। अगरतला में टीएमसी कार्यकर्ताओं के साथ पहली बैठक में देव ने त्रिपुरा में कांग्रेस सरकार स्थापित करने में अपने पिता की भूमिका याद दिलाई और कहा कि 2023 के चुनावों में ममता बनर्जी लोगों को इस कुशासन से मुक्त कराएंगी।
देव अपनी सभाओं में असम के मौजूदा सीएम हिमंत बिस्वा सरमा पर भी झूठे वादों के जरिए लोगों को लुभाने के आरोप लगा रही है। वह कहती हैं कि त्रिपुरा के लोग यह नहीं भूले हैं कि कैसे हिमंत ने मिस्ड कॉल के बदले युवाओं को नौकरी का लालच दिया था।
बीजेपी ने चौबीस घंटे बिजली, विकसित सड़क संपर्क और जनता के लिए बेहतर सुविधाओं का वादा किया था, लेकिन तमाम वादे खोखले साबित हुए हैं। इसी तरह सरकारी कर्मचारियों को सातवें केंद्रीय वेतन आयोग का लाभ देने का वादा किया गया था। लेकिन अब तक कुछ भी नहीं मिला है।
बीजेपी की मुश्किल : टीएमसी से मिलने वाली चुनौतियों के बीच बीजेपी सरकार में अपने सहयोगी इंडीजीनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) और पार्टी के अंदरूनी असंतोष से भी जूझ रही है। मुख्यमंत्री बिप्लब देब की ओर से तीन नए मंत्रियों को शामिल करके अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करने के ठीक एक दिन बाद टीएमसी नेता सुष्मिता देव और ब्रात्य बसु त्रिपुरा दौरे पर पहुंचे हैं।
मार्च, 2018 में विधानसभा चुनावों में वामपंथियों को हरा कर सत्ता में आने वाले बीजेपी-आईपीएफटी गठबंधन के सत्ता में आने के बाद यह पहला विस्तार है। त्रिपुरा में सत्तारूढ़ बीजेपी विधायकों और नेताओं के एक वर्ग ने नाराजगी जताई है। मंत्रिमंडल का विस्तार मंगलवार दोपहर को हुआ लेकिन बीजेपी के कई असंतुष्ट विधायकों और नेताओं ने शपथ ग्रहण समारोह का बहिष्कार किया।