महाराष्ट्र में अनपेक्षित मोड़ लिया सत्ता के खेल ने

बुधवार, 13 नवंबर 2019 (11:51 IST)
महाराष्ट्र में चल रही राजनीति में एक के बाद एक ऐसे मोड़ आ रहे हैं जिन्होंने सबको चौंका दिया है। किसी भी समीक्षक को ये उम्मीद नहीं थी। विधानसभा चुनावों के नतीजों की घोषणा के 16 दिन बाद भी राज्य में सरकार नहीं बन पाई है।
 
24 अक्टूबर को आए नतीजे साफ दिख रहे थे, हालांकि किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिला था, लेकिन भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के गठबंधन को बहुमत हासिल हो गया था। बीजेपी को सबसे ज्यादा सीटें मिली थीं और शिवसेना नंबर 2 पर थी। चूंकि दोनों पार्टियां पहले से गठबंधन में थीं, उम्मीद थी कि दोनों साथ मिलकर सरकार बना लेंगी।
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पर शिवसेना ने 50:50 फॉर्मूला के तहत सरकार चलाने की मांग कर के बीजेपी को चौंका दिया। इसका मतलब था कि बीजेपी और शिवसेना ढाई ढाई साल के लिए सरकार का नेतृत्व करते। इसके बाद दोनों पार्टियों में खींचतान शुरू हो गई है। फिर भी समीक्षकों को उम्मीद थी कि कुछ न कुछ समझौता हो जाएगा, क्योंकि दोनों पार्टियां स्वाभाविक घटक थीं और लगभग पिछले 25 सालों से गठबंधन में थीं।
 
लेकिन अनपेक्षित रूप से दोनों पार्टियों के बीच कोई समझौता नहीं हो पाया और बीजेपी सरकार बनाने की कोशिशों से पीछे हट गई। शिवसेना ने दावा किया कि वो कुछ और पार्टियों और विधायकों की मदद से सरकार बना लेगी और राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी ने उसे न्योता भी दिया, पर वह राज्यपाल द्वारा दी गई 24 घंटे की अवधि में आवश्यक संख्या में विधायकों के समर्थन पत्र नहीं दिखा पाई और उन्हें जुटाने के लिए 3 दिन का समय मांगा। राज्यपाल ने अतिरिक्त समय देने से इंकार कर दिया और विधायकों की संख्या की दृष्टि से तीसरे नंबर की पार्टी एनसीपी को सरकार बनाने का न्योता दिया।
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शिवसेना ने सबको चौंकाया
शिवसेना और मराठा नेता शरद पवार की एनसीपी ने मिलकर सरकार बनाने की बात की, लेकिन पर्याप्त सीटें न होने की वजह से कांग्रेस से भी समर्थन की गुजारिश की। इस नए गठबंधन को लेकर अटकलें तो कई दिनों से चल रही थीं लेकिन शरद पवार ने शिवसेना से बीजेपी के नेतृत्व वाला गठबंधन छोड़ने की शर्त रखी और शिवसेना ने इसे पूरा करने के लिए केंद्र सरकार में अपने इकलौते मंत्री का इस्तीफा दिलवाकर समीक्षकों को चौंका दिया। सेना के इस कदम से नई अटकलों ने जन्म लिया और इसे कांग्रेस के भावी समर्थन का संकेत माना जाने लगा।
 
खबर ये भी आई कि सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के बीच फोन पर बातचीत भी हुई लेकिन इसके बावजूद सोमवार रात तक कांग्रेस ने सेना को समर्थन देने की घोषणा नहीं की। मंगलवार सुबह कांग्रेस के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने ट्वीट करके जानकारी दी कि सोनिया गांधी ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार से बात की है और उसके बाद उन्होंने वेणुगोपाल सहित कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल और मल्लिकार्जुन खड़गे को शरद पवार के साथ और बातचीत करने के लिए नियुक्त किया है। वेणुगोपाल ने यह सूचना भी दी कि वे तीनों तुरंत मुंबई जाएंगे और एनसीपी अध्यक्ष से मिलेंगे।
 
क्यों पसोपेश में है कांग्रेस?
 
माना जा रहा है कि कांग्रेस इस गठबंधन को समर्थन देने को लेकर पसोपेश में इसलिए है, क्योंकि पार्टी के कई नेता शिवसेना के साथ रिश्ता जोड़ने के समर्थन में नहीं हैं। उनका मानना है कि सेना की जिस तरह की विचारधारा है और उसकी जिस तरह की पृष्ठभूमि है, उसकी वजह से उसके साथ जुड़ने पर कांग्रेस की साख गिर जाएगी। लेकिन कई समीक्षक मान रहे हैं कि बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए और हिन्दुत्ववादी शक्तियों में विभाजन कराने के लिए कांग्रेस को इस गठबंधन से जुड़ जाना चाहिए। वहीं राजदीप सरदेसाई जैसे पत्रकारों का यह भी मानना है कि महाराष्ट्र में अब राष्ट्रपति शासन की ही संभावना लग रही है।
 
घटनाक्रम बहुत तेजी से बदल रहा है। राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी ने मंगलवार शाम 8.30 बजे तक की समयसीमा निर्धारित की है। सरकार बनाने की इच्छुक पार्टियां अगर तब तक कोई समाधान नहीं निकाल पाईं तो राष्ट्रपति शासन लागू होना तय लगता है।
 
रिपोर्ट : चारु कार्तिकेय

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