5 छोटी अमेरिकी कंपनियों ने हिला दिए ट्रंप के टैरिफ

DW

शुक्रवार, 30 मई 2025 (08:16 IST)
विवेक कुमार
अमेरिका के वर्मोंट प्रांत में एक ऑनलाइन साइकिल स्टोर चलाने वाले एक छोटे व्यापारी, न्यूयॉर्क की वाइन आयातक कंपनी और वर्जीनिया की एक इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी समेत कुल पांच छोटे व्यापारियों ने अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की पूरी आर्थिक नीति की चूलें हिला दी हैं।

इन कंपनियों की अपील पर अमेरिका की इंटरनेशनल ट्रेड कोर्ट ने ट्रंप के टैरिफ को अवैध बताते हुए रद्द कर दिया। हालांकि ट्रंप सरकार ने फैसले के खिलाफ अपील कर दी है, लेकिन अमेरिका में ट्रंप के टैरिफ के खिलाफ उठती आवाजों को इस फैसले से मजबूती मिली है।
 
वाइन इंपोर्टर कंपनी वीओएस सेलेक्शंस की अगुआई में अमेरिकी छोटे व्यापारियों ने राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की वैश्विक टैरिफ नीति को अदालत में चुनौती दी थी। कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति ने अपने संवैधानिक अधिकारों से आगे जाकर यह फैसला लिया, जिससे व्यापारियों को आर्थिक नुकसान हुआ।
 
एक छोटी कंपनी, एक बड़ी लड़ाई
न्यूयॉर्क स्थित पारिवारिक वाइन आयातक कंपनी वीओएस सेलेक्शंस ने अमेरिकी न्याय प्रणाली में एक ऐतिहासिक कदम उठाया। ट्रंप द्वारा लगाए गए व्यापक टैरिफों के खिलाफ उन्होंने अदालत में याचिका दायर की, जिसे वर्मोंट के एक ऑनलाइन साइकिल स्टोर और वर्जीनिया की एक इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माता कंपनी का भी समर्थन मिला।
 
वीओएस सेलेक्शंस ने कहा, "ये टैरिफ न केवल हमारे व्यवसाय को खतरे में डालते हैं, बल्कि उन पारिवारिक किसानों की आजीविका पर भी असर डालते हैं, जिनकी वाइन हम अमेरिका में बेचते हैं।" कंपनी ने अपने बयान में यह भी कहा कि इस नीति से छोटे और मंझोले आयातकों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है, क्योंकि वे बड़े कॉर्पोरेशनों की तरह कीमतों में बदलाव नहीं झेल सकते।
 
राष्ट्रपति ट्रंप ने अप्रैल में आयात पर एकतरफा और वैश्विक टैरिफ लगाने का ऐलान किया था, जिनमें 10 फीसदी की सामान्य दर से लेकर चीन और यूरोपीय संघ जैसे भागीदारों पर 150 फीसदी तक शुल्क शामिल थे। इन टैरिफों को उन्होंने राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति बताते हुए लागू किया, और इसका आधार बनाया 1977 का अंतरराष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्तियों अधिनियम को।
 
कोर्ट ने तय की राष्ट्रपति की सीमाएं
अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय व्यापार अदालत ने बुधवार को दिए अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा कि राष्ट्रपति ने इस कानून का दुरुपयोग किया। अदालत ने कहा कि 1977 का अधिनियम राष्ट्रपति को असीमित टैरिफ लगाने का अधिकार नहीं देता है।
 
तीन जजों की बेंच ने अपने फैसले में लिखा, "कोर्ट यह नहीं मानती कि अधिनियम राष्ट्रपति को इतनी असीमित शक्तियां देता है कि वह दुनिया के लगभग हर देश से आने वाले सामान पर मनमाने टैरिफ लगा सकें।” अदालत ने ट्रंप द्वारा लगाए गए ज्यादातर टैरिफों को अवैध करार दिया और कहा कि यह कांग्रेस के 'पावर ऑफ द पर्स' यानी बजट नियंत्रित करने के अधिकारों का उल्लंघन है।
 
फैसले के अनुसार, व्हाइट हाउस को 10 दिनों में टैरिफ हटाने की प्रशासनिक प्रक्रिया पूरी करनी होगी। हालांकि इनमें से कई टैरिफ पहले ही अप्रैल की शुरुआत में 90 दिन के लिए स्थगित किए जा चुके हैं। अदालत के फैसले के बाद यदि अपील में भी यही निर्णय कायम रहता है, तो जिन व्यापारियों ने टैरिफ का भुगतान किया है, उन्हें ब्याज सहित उसका रिफंड मिल सकता है।
 
राजनीतिक घमासान और भविष्य की राह
व्हाइट हाउस ने इस फैसले को चुनौती देने की घोषणा की है और तुरंत अपील दायर कर दी है। मामला अब वॉशिंगटन डीसी स्थित फेडरल सर्किट कोर्ट और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट तक भी जा सकता है।
 
व्हाइट हाउस के प्रवक्ता कुश देसाई ने फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा, "राष्ट्रपति ट्रंप ने अमेरिका को सबसे पहले रखने का वादा किया था और यह प्रशासन उस वादे को पूरा करने के लिए हर कार्यकारी शक्ति का प्रयोग करेगा।" वहीं, ट्रंप के करीबी सलाहकार स्टीफन मिलर ने इसे "न्यायपालिका का तख्तापलट" करार देते हुए सोशल मीडिया पर इसकी तीखी आलोचना की।
 
डेमोक्रेटिक पार्टी के वरिष्ठ सांसद ग्रेगरी मिक्स ने अदालत के फैसले का स्वागत करते हुए कहा, "यह स्पष्ट है कि ये टैरिफ राष्ट्रपति द्वारा कार्यपालिका शक्ति का अवैध प्रयोग हैं। ट्रंप ने एक नकली राष्ट्रीय आपातकाल का सहारा लेकर वैश्विक व्यापार युद्ध छेड़ा जो पूरी तरह से असंवैधानिक था।"
 
विश्लेषकों का मानना है कि अगर टैरिफ जारी रहते हैं, तो इनका बोझ अंततः अमेरिकी उपभोक्ताओं पर पड़ेगा, जिससे महंगाई बढ़ सकती है और फेडरल रिजर्व ब्याज दरें लंबे समय तक ऊंची रख सकता है। इसका असर ना केवल घरेलू बाजार पर, बल्कि वैश्विक वित्तीय बाजारों पर भी पड़ सकता है। दक्षिण कोरिया के सेंट्रल बैंक ने अपने ब्याज दर में कटौती कर इसका संकेत दे दिया है।

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी