चीनी पुलिस से नहीं बच पा रहे विदेशों में रहने वाले उइगुर
बुधवार, 24 जुलाई 2019 (11:31 IST)
चीन के शिनचियांग प्रांत से भागकर विदेश पहुंचे उइगुर मुसलमान अब भी डर के साये में जी रहे हैं। ये लोग कहते हैं पश्चिमी देशों के पासपोर्ट भी उन्हें चीनी सरकार के वैश्विक धमकी अभियान से नहीं बचा पा रहे हैं।
अपने धमकी भरे टेक्सट और वॉयस मैसेज के साथ डरा-धमका कर चीन की सरकारी सुरक्षा इकाई ने अमेरिका, न्यूजीलैंड जैसे देशों में रह रहे उइगुर मुसलमानों तक पहुंच बना ली है। इस अभियान का मकसद उइगुर समाज के लिए आवाज उठाने वालों को शांत करना और मुखबिरों की भर्ती करना है।
पिछले लंबे वक्त से चीन सरकार पर उइगुर मुसलमानों को हिरासत केंद्रों में बंद करके रखने का आरोप लग रहा है। दुनिया भर की मानवाधिकार संस्थाएं इस मुद्दे पर चीन की आलोचना कर रही हैं। अनुमान है कि चीन के हिरासत केंद्रों में 10 लाख से भी अधिक उइगुर मुसलमान बंदियों की तरह जीवन गुजार रहे हैं।
हालांकि जो जैसे-तैसे भाग कर सुरक्षित स्थान पाने के लिए विदेश आ गए हैं वे भी चीन में अपने परिवारों को परेशान किए जाने की बात करते हैं। कनाडा भाग कर पहुंची गुली महसूत ने बताया जब उन्हें शिनचियांग पुलिस से परिवार को परेशान करने वाले धमकी भरे मैसेज आने लगे तो उनके भीतर आत्महत्या की प्रवृति पैदा होने लगी। इसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया।
एक मैसेज में लिखा था, "आपको अधिक सहयोगी होना चाहिए। टोकसून में अपने रिश्तेदारों और परिवार के लिए दुर्भाग्य ना साबित हों। आपको अपने परिवार पर और अधिक विचार करना चाहिए।" इस मैसेज को भेजने वाले का नाम आधिकारिक नाम था कैसर।
37 साल की महसूत मानती हैं कि उन्हें निशाना बनाया गया क्योंकि उन्होंने ऑनलाइन अधिकारियों के खिलाफ बात की थी। साथ ही नागरिकता विहीन उइगुरों को विदेश से मदद लेने में सहयोग किया था। हाल में उन्हें रिश्तेदारों समेत अपनी बहन का भी एक मैसेज मिला जो उनसे प्रशासन के साथ सहयोग करने की अपील कर रही थी। महसूत उन चंद उइगुर मुसलमानों में हैं जिनसे समाचार एजेंसी एएफपी ने बातचीत की।
महसूत की तरह ही ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले शीर मोहम्मद हसन भी परेशान हैं। साल 2017 में हसन ऑस्ट्रेलिया भाग गए। ऑस्ट्रेलिया में उन्हें शरणार्थी दर्जा मिल गया। इतने सब के बाद उन्हें लगा कि अब वह सुरक्षित हैं। लेकिन एक साल बाद ही खतरनाक संदेशों का सिलसिला शुरू हो गया। उन्होंने एक मैसेज पढ़कर बताया जिसमें लिखा था, "मुझे लगता है कि आपके परिवार ने आपको पहले ही बता दिया होगा कि मैं आपको खोज रहा हूं?"
स्थानीय उइगुर भाषा में आए एक अन्य मैसेज में लिखा था, "मैंने आपसे आपकी संक्षिप्त जानकारी का ब्यौरा भेजने को कहा था लेकिन आपने ऐसा नहीं किया।" मैसेज का यह सिलसिला हसन के साथ चलता रहा लेकिन पिछले छह महीने से अचानक बंद हो गया। उन्हें अब भी इस बात का डर है कि पता नहीं ये फिर से कब दोबारा शुरू हो जाए। एएफपी के पास मैसेजों को भेजने वाले स्रोत की पुष्टि करने का स्वतंत्र तरीका नहीं था। ये मैसेज इनक्रिप्टेड व्हाट्सऐप अकाउंट से भेजे गए थे। व्हाट्सऐप के नंबर हांगकांग के बंद मोबाइल नंबरों से जुड़े थे।
चीन के विदेश मंत्रालय और शिनचियांग सरकार ने अब तक इस मसले पर कोई टिप्पणी नहीं की है। मेलबर्न की ला ट्रोब यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और चीन के जातीय संबंधों के विशेषज्ञ जेम्स लीबोर्ड कहते हैं कि इस तरह से धमकाना बेहद ही व्यवस्थित है। उन्होंने कहा चीन सरकार अब बेहद ही शक्तिशाली है। कुछ मामलों में यह अन्य देशों की संप्रभुता में दखल दे रही है, मसलन अन्य देशों के नागरिक मामलों में दखल दे रही है।
लीबोर्ड कहते हैं कि जो लोग विदेश चले गए हैं उन्हें चीन सरकार सुरक्षा के लिए संभावित खतरा मानती है। उन्होंने कहा, "बीजिंग चाहता है कि लोग इस मुद्दे पर चुप रहें, समर्थन जुटाने के लिए किसी भी तरह की लॉबी ना करें, मीडिया से बात ना करें और कुल मिलाकर चीनी दूतावास और कॉन्सुलेट के लिए परेशानी खड़ी ना हो।"
कुछ अमेरिकी अधिकारियों ने भी अमेरिका में रह रहे उइगुर मुसलमानों को धमकी मिलने की बात तो मानी, लेकिन आधिकारिक रूप कुछ भी कहने से साफ इनकार कर दिया।